सावधान! इस कहानी में एक जवान लड़की, जवान लड़के और उनकी समस्या का ज़िक्र प्रसंगवश किया जाएगा।
इख़्लास और यक़ीन।
ये दोनों दुआ के रुक्न (pillars) हैं कि अगर ये हैं तो एक दुआ, दुआ है और अगर इनमें से एक भी नहीं है तो दुआ हक़ीक़त में दुआ का वुजूद हासिल नहीं कर पाई
जैसे कई भ्रूण बच्चे का रूप लेकर दुनिया में जन्म नहीं ले पाते। वे बच्चा बनने से पहले ख़त्म हो जाते हैं। ऐसे भ्रूण अपने मां-बाप को सहारा नहीं दे पाते। वे पहले ही निपट गए।
ऐसे ही अधिकतर दुआएं पहले ही निपट जाती हैं क्योंकि वे दुआ बन ही नहीं पाईं। इसीलिए वे सहारा और मदद नहीं दे पातीं। रब से मदद पाने का एक बड़ा ज़रिया दुआ है और दूसरा उसका आज्ञापालन है।
दुआ हुई नहीं और आज्ञापालन किया नहीं।
तो आदमी ग़रीब बन गया या घायल हो गया या कोई बदमाश और मुक़द्दमा गले पड़ गया तो अब उस मुसीबत से कैसे निकले?
मुसीबत और #ग़रीबी देखकर दोस्त और रिश्तेदार पहले भाग जाते हैं।
मिसाल के तौर पर एक लड़के ने पढ़ा और उसे नौकरी नहीं मिली। उसने चूड़ी और आर्टिफ़िशियल ज्वैलरी की या छोटे बच्चों के सूट का काम अपने घर के बाहर टेबल डालकर शुरू कर दिया और उसका काम चल पड़ा क्योंकि औरतों की ज़रूरत का काम चल ही पड़ता है
हर गली में औरतें चलती हैं और उन्हें ज़्यादा चीज़ें चाहिएं और सस्ते दाम पर चाहिएं। महंगा भी वही लेती हैं लेकिन वे उसे आधे रेट पर लेती हैं। इसीलिए दुकानदार पहले ही 5 गुनी क़ीमत का स्टिकर चिपका देता है।
यह गेम औरतें दुकानदार से और दुकानदार औरतों से सदियों से खेलते आ रहे हैं।
एक खेल लड़कियों की माएँ भी सदियों से खेलती आ रही हैं और वह यह है कि अगर किसी नौजवान का काम चल पड़ा और उसकी बेटी उससे ख़रीदारी करने लगी और वह लड़का उसे तोहफ़े देने लगा तो उस लड़की की माँ अन्जान बन जाती है और कुछ माँएं अपनी लड़कियों को पहली बार ख़ुद उस दुकान तक ले जाती हैं, जो चल रही होती है और युवा दुकानदार किसी को फाँसने के चक्कर में होता है और वह सफलतापूर्वक एक दिन एक लड़की को फाँस लेता है और ख़ुश होता है कि मैंने फाँस लिया।
जबकि हक़ीक़त में ख़ुद फँस जाता है।
वह लड़की की माँ को आँटी बोलता है और आँटी और आँटी की बेटी उसके तन-धन को चूस लेती हैं और कहीं काटकर फिंकवा देती हैं लेकिन अगर वह कटने से बच गया तो भी उसका बिज़नेस चौपट हो जाता है।
इस्लाम में इस रिलेशनशिप को ज़िना और #संस्कृत में व्याभिचार कहते हैं।
इसे करने के बाद आदमी अचार बेचने के लायक़ तक नहीं बचता।
परमेश्वर की आज्ञा है कि व्याभिचार न करो।
और यह आज्ञा हर धर्म में है।
यही आज्ञा सनातन धर्म में है।
नबी मूसा को परमेश्वर ने पहाड़ पर पत्थर पर 10 नियम खुदवा कर दिए तो उनमें भी था कि व्याभिचार मत करो।
ईसा मसीह आए तो उन्होंने कहा कि मैं मूसा की व्यवस्था का पालन कराने और उसे पूर्ण कराने आया हूँ।
यानी पहले के नियम ज्यों के त्यों रहेंगे कि व्याभिचार तो करना ही नहीं है लेकिन अब यह और करना होगा कि अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम कर। दूसरों से जैसा व्यवहार अपने लिए चाहते हो, वैसा व्यवहार दूसरों से ख़ुद करो।
लोग इसमें फ़ेल रहे।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी व्याभिचार से रोका और परमेश्वर ने इस्लाम को दीने क़य्यिम कहा।
इस्लाम का अर्थ परमेश्वर की आज्ञा का पालन है और 'दीने क़य्यिम' का अर्थ हिंदी-स़स्कृत में #सनातन_धर्म है।
मुझे तो सारे धर्म ही मूल में एक लगते हैं।
और सब लोगों के अंदर एक ही आत्मा दिखती है।
बाइबिल में लिखा है कि शरीर आत्मा का विरोध करता है।
दुकान पर युवा बैठा है और युवती आ गई तो दोनों के शरीर वह काम करने का विचार करेंगे, जिससे हर धर्म ने रोका है या कहें कि हर धर्म के एक ही परमेश्वर ने रोका है।
अब युवक युवती को ले भागा तो उसने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी। सो उसे आज्ञापालन से जो लाभ मिलते, वे न मिलेंगे। लड़की की माँ उसके बाप को साथ लेकर थाने में रपट लिखा देगी और पुलिस उसके, बाप, भाई और दोस्तों को सम्मानपूर्वक पूछताछ के लिए थाने ले आएगी।
अब दुआ की ज़रूरत पड़ेगी।
लड़का #नास्तिक हुआ तो भी इस समय उसकी सोई हुई #आस्था जाग उठेगी क्योंकि विज्ञान इस समय मदद न देगा।
इस संकट में उसे ऊपर वाला ही #Arrahman दिखेगा।
#अर्रहमान यानी बहुत ज़्यादा रहम वाला। यह परमेश्वर का अरबी में एक नाम है। जिसे पढ़ने से हर मुसीबत में हरेक धर्म के आदमी को मदद मिलती है।
अब युवक दुआ करेगा और दुआ में एक या दोनों ही #rukn ग़ायब होंगे तो उसे #दुआ से भी मदद न मिलेगी और सैलून वाला उसकी मदद न करेगा,
जो उसके बाल कलर करता था या चारों तरफ़ से छोटे करके बीच में बाल बड़े और खड़े करके छोड़ देता था।
अब उसके बदन के सारे ही बाल मारे डर के खड़े हो जाएंगे।
वह सोचेगा कि मेरी दुआ क्यों क़ुबूल नहीं हो रही है?
क्यों भाई, क्या तूने #surahmuzzammil की ज़कात दे रखी है, जो तेरी दुआ क़ुबूल ज़रूर होनी चाहिए।
ख़ैर फिर भी वकील उसकी मदद करेगा।
अलवकील भी परमेश्वर का अरबी में एक नाम है।
अब भी परमेश्वर का एक नाम ही काम आ रहा है। उसका बंदा काम आ रहा है तो वही परमेश्वर काम आ रहा है।
अलवकील की न्यूमेरिकल वैल्यू 66 है और अल्लाह नाम की न्यूमेरिकल वैल्यू भी 66 है।
हिलाल नाम की अरेबिक में न्यूमेरिकल वैल्यू भी 66 है।
हिलाल शुरू की तारीख़ के पतले से चांद को कहते हैं।
अब नौजवान पहली तारीख़ को आकाश में चाँद नहीं देखते लेकिन वे शिवजी का चित्र देखेंगे तो उनके सिर पर जो पतला सा चांद नज़र आता है, उस दशा के चांद को अरबी में हिलाल कहते हैं और हिलाल के अक्षरों की जगह बदल दो, इन्हीं अक्षरों से अरबी में अल्लाह लिखा जा सकता है। शिव जी के त्रिशूल को देखोगे तो वह भी आपको अरबी के अल्लाह नाम जैसा दिखेगा।
इस तरह पतला सा चांद हमें परमेश्वर/अल्लाह तक पहुंचा देता है। हमें परमेश्वर तक जाना है या नहीं? यह हमारा मेंटल एटीट्यूड तय करता है।
अल्लाह ने सूरह यासीन में बताया है कि चांद अंत में भी पुरानी खजूर की शाख़ की तरह पतला सा हो जाता है। जिससे चाँद के महीने की 29 तारीख़ सामने आती है। यह तारीख़ रमज़ान के महीने में आए तो यह रात शबे क़द्र हो सकती है वर्ना माह के अंत की तारीख़ तो है ही और क़ारी तैयब साहब ने बताया है कि किसी भी काम के शुरू और अंत के समय में भी दुआ क़ुबूल होती है।
29 के अदद को पलट दें तो 92 बनते हैं और अरबी में 92 की गिनती मुहम्मद नाम की न्यूमेरिकल वैल्यू है। उनकी हर दुआ क़ुबूल है क्योंकि उनकी दुआओं में ज़ाहिरी इस्मे आज़म 'अल्लाहू' है और पोशीदा इस्मे आज़म 'हू' भी है। जोकि अल्लाहू नाम में ही पोशीदा है।
परमेश्वर को 'हू' नाम से विशेष लगाव है।
#बाइबिल में है कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम का नाम पहले #अबराम था और उनकी पत्नी का नाम सारा।
परमेश्वर ने उनके नामों में 'हा' अक्षर जोड़ दिया और अबराम का नाम अब्राहम और सारा का नाम साराह कर दिया। इससे नाम का अर्थ ही बदल गया। उनका नाम आज पूरी दुनिया के हर बड़े धर्म में है।
परमेश्वर ने तौरात में मूसा अलैहिस्सलाम को अपना नाम #याहू बताया था।
#हिब्रू भाषा में इसे लिखें तो इस में 'हा' अक्षर 2 बार आता है। जिसे इंग्लिश में H अक्षर से ज़ाहिर करते और एच अक्षर का आकार हिब्रू में H की ध्वनि देने वाले अक्षर ח के क़रीब है। इस हिब्रू अक्षर को विंडो का रूप माना जाता है जैसा कि आप अंग्रेज़ी के H अक्षर को भी एक खिड़की के आकार का ही देख सकते हैं।
#Hebrew में याहू या याहुवाह इस तरह लिखते हैं:
יהוה
इसमें दो बार 'ह' अक्षर आता है। जो 2 खिड़कियों को दिखाता है। ये 2 खिड़कियाँ 2 आँखों का सिम्बल हैं और जब अरबी में हुवा लिखते हैं तो ऐसे लिखते हैं:
ھو
इसमें 'ह' अक्षर की पहचान ही 2 आँखें हैं।
ये 2 आँखें बहुत महत्वपूर्ण हैं। आँखें शरीर में खिड़कियां हैं। इनसे आप बाहरी जगत को देख सकते हैं।
इससे 'हुवा' नाम देखा जा सकता है और आँखें भी 2 टाइप की हैं।
एक बाहर की आँख और दूसरे दिल की आँख।
बहुत लोग बाहर की आँख से देखते हैं लेकिन उनके दिल अंधे हैं। वे दिल से नहीं देख पाते। अगर दिल पाक हो तो दिल से रब को देखा जा सकता है।
बाइबिल में #sacredheart का चर्चा है।
हदीस में आता है कि दिल मुहब्बत में भी अंधा हो जाता है। दिल में दुनिया की किसी चीज़ की मुहब्बत भर जाए तो उसे कुछ दिखाई नहीं देता। लड़के के दिल में किसी लड़की की मुहब्बत समा जाए तो उसे अपने माँ-बाप दिखाई देने बंद हो जाते हैं। वह घर से रुपए चुराकर अपनी #mashuka के खर्चे पूरे करता है। युवक को अपनी ग़लती का उस दिन एहसास होता है, जिस दिन उसके प्रेम प्रसंग के कारण उसके बाप और भाई पर डंडा बजता है।
डंडा भी अल्लाह के नाम का पहला अक्षर है। किसी को राजा या स्वामी बनाते हैं तो उसके हाथ में डंडा ज़रूर देते हैं। हर नबी ने पशुपालन किया है और वे डंडे से ही पशुओं को नियंत्रित करते थे। इनमें सबसे मशहूर डंडा हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का डंडा है। जो कि एक मिरेकल था। वह एक बड़े अजगर में बदल जाता था और जादूगरों की सब रस्सियों को खा जाता था, जिन्हें जादूगर पब्लिक को #hypnotized करके साँप दिखाते थे जैसे आजकल मीडिया के जादूगर लाभदायक को घातक दिखा देते हैं और जो आदमी नुक़्सान दे रहा है, उसका चर्चा नहीं करते। वे ज़्यादा करेंगे तो चर्च पर चर्चा कर लेंगे। चर्च के पादरी भी हाथ में डंडा रखते हैं और कई पादरी ऐसा डंडा रखते हैं जो हज़रत मूसा के डंडे की याद दिलाता है।
यहूदियों की WORLD ORGANISATION
#WHO पर पकड़ मज़बूत हुई तो उन्होंने उसका #logo बदल दिया और उसके लोगो में दुनिया के नक़्शे पर हज़रत मूसा की लाठी और एक साँप रख दिया। जो कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के मिरेकल को दर्शाता है।
आपने देखा कि डाक्टरों का लाठी-डंडे से काम नहीं है लेकिन उनकी सबसे बड़ी संस्था का निशान भी डंडा है।
इसलिए जब आप घर में हों तो दरवाज़े के पीछे डंडा रखें और जब घर से निकलें तो डंडा या Folding batton साथ लेकर चलें।
जब प्रेम में पड़े हुए युवक का बाप पिटता है और युवक की दुआ से कुछ होता नहीं है तो वह सूफ़ी जी की तरफ़ भागता है।
सूफ़ी जी 'हू' का ज़िक्र करते हैं। जिसमें 2 आँखें हैं। उनके दिल की आँख भी खुली हुई होती है।
वह परेशान हाल आदमी को #panjtanpak की नियाज़ करने के लिए कहते हैं क्योंकि इन पाँच लोगों की यह आदत थी कि ये हरेक आदमी के तोहफ़े, खाने या सलाम के बदले में उससे बेहतर लौटाते थे और मरने के बाद भी आदमी अपनी आदत और फ़ितरत पर क़ायम रहता है। रूह को मौत आती नहीं है और ऐसे लोगों के जिस्म को भी मिट्टी खाती नहीं है।
#Niyaz
कुछ दिन युवक नियाज़ करता है तो उसकी मुसीबत टल जाती है।
सूफ़ी जी मर जाते हैं तो उनका बेटा लोगों को #फ़ातिहा क़ुल और नियाज़ बताता रहता है। फ़ातिहा और क़ुल में दो आँखों वाली 'हा' है। सो उसके काम अल्लाह करता रहता है। सूफ़ी जी को दुआ पहुँचती होगी तो वह उसके जवाब में दुआ दे सकते हैं, बस।
लोगों के काम होते रहते हैं। वे समझते हैं कि सूफ़ी जी मरने के बाद उसके काम बना रहे हैं जबकि काम बनाने वाला अल्लाह है। जिसने हमें 'आँख' खोलने का हुक्म दिया है।
आँख खोलना ही जागरूकता है और जागरूकता ही ध्यान है।
ध्यान सनातन धर्म और #योग का आधार है।
#भारत योग और #अध्यात्म का देश है लेकिन यहाँ भी अधिकतर लोग जागरूक नहीं हैं बल्कि मीडिया से #सम्मोहित हैं।
#सम्मोहन विद्या से देश का बहुत नुक़्सान किया जा रहा है लेकिन इसे कौन देखे और जो देख ले तो वह किसे बताए?
#वैज्ञानिक बता रहे हैं कि #उत्तराखंड में #तुर्किए से अधिक तीव्रता वाला यानी 8 point से ज़्यादा तेज़ी वाला भूकंप कभी भी आ सकता है क्योंकि धरती के नीचे की प्लेटें चल रही हैं लेकिन लोग फिर ख़तरे की जगह नहीं छोड़ रहे हैं।
उत्तराखंड में इतनी तीव्रता का भूकंप सैकड़ों साल से नहीं आया और पहले आया होगा तो वहाँ कच्चे मकान थे। तब इतना नुक़सान न हुआ था, जितना अब होगा।
मैं दुआ की पोस्ट इसीलिए लिख रहा हूँ कि
भारी तबाही से तदबीर और दुआ ही बचा सकती है।
लोग बचने की तदबीर करते तो उत्तराखंड छोड़कर निकल आते लेकिन जिन्हें निकलने को कहा गया, वे भी प्रदर्शन कर रहे हैं कि हम यहीं रहेंगे जबकि वहां रहना उनके प्राणों के लिए हानिकारक है।
अब दुआ का सहारा बचा तो लोगों में इख़्लास और यक़ीन नहीं है और शादी-ब्याह में जाकर अधिकतर हराम का माल खाते हैं।
जिससे दुआ, दुआ ही नहीं होती
और #ismeazam ज़ुबान से लेते नहीं हैं कि यह दूसरों के परमेश्वर का नाम है।
इतना भी चल जाता।
इससे आगे बढ़कर उस नाम का मज़ाक़ भी उड़ाते हैं।
परमेश्वर अपने नाम का उपहास एक समय तक सहता है,
उसके बाद हंसने वालों का सारा डेरा बहता है।
आज्ञा न मानने वाले और हंसने वाले विश्व के कई देशों में बह गए लेकिन लोगों की अंदर की आँख नहीं खुल रही है।
जबकि कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय #हरिऔध जी ने माँ के मुँह से बच्चे से कहा है कि
#उठो_लाल_अब_आँखें_खोलो
हम सस्ती फ़ीस के स्कूल में यही कविता पढ़ा करते थे लेकिन अब महंगी फ़ीस देकर पढ़ने वालों को इतनी ज़्यादा अर्थपूर्ण कविता नहीं पढ़ाई जाती।
जितनी आँख पहले खुली हुई थी, आज वह उतनी भी खुली हुई नहीं है।
जब से मोबाईल आए हैं,
तब से आँख कमज़ोर हुई है।
कमज़ोर आँख की एक निशानी यह है कि #पंजतन का नाम लो तो लोग #शिया समुदाय का सदस्य मान लेते हैं।
मैं इसकी परवाह नहीं करता।
मैं यह देखता हूँ कि क्या पंजतन का ज़िक्र किसी आयत में है?
क्या इनका क़ुरआने मजीद से कोई गहरा ताल्लुक़ है?
...तो दोनों बातें हैं
आयतें मुबाहिला में मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अली, फ़ातिमा, हसन, हुसैन; पाँचों का एक साथ ज़िक्र है।
अल्लाह ने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर क़ुरआने मजीद उतारा और बाक़ी 4 ने क़ुरआने मजीद समझने और समझाने में एक बार भी ग़लती नहीं की।
इन पाँचों के नाम अरबी में लिखे जाते हैं और सबके नामों के अक्षरों की टोटल गिनती 19 है। 19 की गिनती किसी से कटती नहीं है। दुनिया में कोई इन्हें झुठला नहीं सकता, चाहे कितनी ही कोशिश कर ले। ऐसी कोशिश करने वाला अपना ही नुक़सान करता है। जो इन्हें नहीं मानता, वही मस्जिद और स्कूल में बम फोड़ता है और इस्लाम को बदनाम करता है।
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम में भी 19 अक्षर हैं।
यह एक और संकेत है। क़ुरआने मजीद से इनके गहरे ताल्लुक़ का। हजरत अली ने कहा है कि जो कुछ पूरे क़ुरआन में है, वह सूरह फ़ातिहा में है और जो सूरह फ़ातिहा में है, वह बिस्मिल्लाहिर्रहमानर्रहीम में है और बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम में बा के नीचे का नुक़्ता (बिंदी) मैं हूं।
क़ुरआने मजीद 'बा' अक्षर से शुरु होता है। बा के नीचे एक नुक़्ता है। पुराने अरब ज्ञानी जब अरबी भाषा में लिखते थे तो वे नुक़्ते नहीं लगाते थे लेकिन मानते और समझते थे कि हाँ, यहाँ नुक़्ता है।
क़ुरआने मजीद शुरू करो और हक़ को समझना चाहो तो अपनी पसंद के सब ज़रूरी काम करो लेकिन हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की ज़िंदगी ज़रूर पढ़ो क्योंकि जिन बातों को उस समय के साहित्यकार और इतिहासकार छिपा गए हैं, वे सब राज़ उनकी ज़िंदगी से ही खुलते हैं और क़ुबूल होने वाली दुआएं भी पता चलती हैं।
शीओं की कुछ बातें ग़लत हो सकती हैं लेकिन मोला अली अलैहिस्सलाम की एक बात भी ग़लत नहीं है।
सारे उम्दा बा-अमल सूफ़ियों का इल्मी शजरा हज़रत अली से मिलता है।
सूफ़ियों का ज़िक्र है 'अल्लाहू'
आधी रात को जाग जाओ
और सुबह तक इस्मे आज़म 'अल्लाहू' कहते रहो।
अगर हराम का माल न खाया तो 120 दिन के बाद से दिल की आंख से नई दुनिया दिखने लगेगी।
इतना जिक्र न कर सके तो हर नमाज़ के बाद 66 बार अल्लाहू पढ़ें। इससे भी आपको बहुत ज़्यादा फ़ायदा होगा और आपकी दुआएं कबूल होगी इन् शा अल्लाह।
अब युवक की घर के बाहर दुकान पर कोई लड़की आएगी और वह पसंद आएगी तो #अल्लाहू पढ़ने वाले युवक के दिल को पता चल जाएगा कि इससे बचना है या इसके घर #निकाह का पैग़ाम भेजना है।
दोस्तो, मुझे आपको अल्लाह के नाम और दुआ के बारे में बताना था। सो आपके माइंड को बाँधने के लिए मैंने शुरू में ही 'जवान लड़की और जवान लड़के' का ज़िक्र कर दिया।
और जो समस्या लिखी है, वह हक़ीक़त में हर मौहल्ले में मौजूद है। उसका समाधान भी लिख दिया है और बड़े सलीक़े से जबरन आपसे पूरी पोस्ट पढ़वा ली है।
अंत में इस तकनीक का ख़ुलासा आपके सबक़ के लिए किया है ताकि आप जान लें कि लोग दीन और दुआ की पोस्ट कम देखते हैं और जवान लड़की की समस्या की पोस्ट ज़्यादा देखते हैं।
आप दोनों को जोड़कर एक नए क़िस्म का लेख लिखेंगे तो वे लड़के भी पढ़ेंगे, जिन्होंने बालों को कलर करवा रखा है।
वैसे मेरी बातें ग़लत भी होती हैं।
इसलिए मानने से पहले चेक ज़रूर करना।
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