पिछली पोस्ट मैंने इस्मे आज़म और दुआ की क़ुबूलियत पर लिखी।
20 लोगों ने लाइक किया और 2 लोगों ने कमेंट किया।
कमेंट और शेयर की मुझे हाजत नहीं है लेकिन मेरी पोस्ट को ज़रूरत है और वह इसलिए ताकि वह दूसरों तक पहुंचे और उनका मसला हल हो।
जैसे आक्सीजन और पानी की कमी से लोग मरते हैं।
ऐसे ही दुआ की क़ुबूलियत कम हो तो अंदर से इस यक़ीन की मौत हो जाती है कि रब की मदद से मसला हल हो सकता है। आदमी मायूस हो जाता है और दुआ महज़ रस्म के तौर पर करता है। वह मान लेता है कि इस नमाज़ और दुआ से कुछ नहीं बदलेगा
और
जब इंसान अल्लाह की रहमत से मायूस हो जाता है तो वह शैतान के रंग में रंग जाता है।
इस वक़्त शैतानी रंग में रंगे हुए मायूस लोगों की बड़ी तादाद है।
इस तादाद में कमी लाने के लिए मेरी पोस्ट को लाइक, कमेंट और शेयर की ज़रूरत है।
वर्ना आपमें से एक भी मेरे इल्म की क़द्र नहीं करेगा तो भी मैं लिखूंगा क्योंकि
मुझे लिखना है
और
अपने लिखे हुए को ख़ुद ही पढ़ना है।
मैं अपना शिष्य ख़ुद ही हूँ।
मैं ख़ुद से ख़ुद ही सीखता हूँ।
मैं ख़ुद को ख़ुद ही पढ़ाता हूँ।
मैं अच्छी चीज़ें तलाश करके पढ़ता हूँ और यहाँ जमा करता हूँ।
आपके लिए लिखता हूँ तो भी पहले मैं ख़ुद पढ़ता हूँ।
आपके साथ अच्छी बातें शेयर करने का मुझे फ़ायदा हो चुका है और हो रहा है।
आप इन बातों को शेयर करते तो और बहुत लोगों को यह बात पता चलती कि अगर बाहर के हालात मायूस करें तो भी अंदर की #consciousness एक ऐसी ताक़त है, जिसे डर, ग़म, शक और #limitingbeliefs से पाक कर लिया जाए तो हर हालत पलट सकती है।
इसीलिए अल्लाह #तस्बीह (पाकी) बयान करने का हुक्म देता है।
ला इलाहा इल्लल्लाह में #इस्मे_आज़म है
और इस पैटर्न की हर आयत में इस्मे आज़म है,
चाहे उसमें इस्मे ज़ात 'अल्लाह' हो या उसकी जगह 'हू' या 'अन्ता' हो या कोई और #हरफ़ हो।
यह पता होने के बाद इसकी रियाज़त (साधना) की ज़रूरत है और वह है इसे ज़्यादा पढ़ना।
अगर पाक होकर और पाक रहते हुए #Lailahaillallah या इस पैटर्न और मीनिंग की आयतों को ज़्यादा पढ़ा जाए तो दुआ क़ुबूल होने लगती है।
हर आदमी को फ़लाह से जुड़ी अपनी दुआ की क़ुबूलियत के लिए कोशिश करनी चाहिए।
#अल्लाहपैथी #part_time_vilayat_course #उलमा_ए_हक़ #आत्मनिर्भरता_कोच #मिशनमौजले #क़ानूने_क़ुदरत #अमीर_बनो #wellness_series
#ismeazam
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