कल रात बिजली कड़की, बादल बरसे और ओले पड़े।
रब का शुक्र है कि मेरे पास घर है और मैं अपने परिवार के साथ घर में था।
बहुत लोगों के पास घर नहीं है।
जिनके पास घर नहीं है,
उनकी पीड़ा वे नहीं समझ सकते, जिनके पास घर है।
लेकिन मैं उनकी तकलीफ़ को थोड़ा सा समझ सकता हूँ क्योंकि मैंने उस तकलीफ़ का एक हिस्सा झेला है।
पहले हमारा घर काफ़ी बड़ा था। वह पुराने स्टायल का मकान था। जिसमें बड़ा आँगन था और कड़ियों की छत थी। जिस पर हर साल मिटटी डालनी पड़ती थी और न डालो तो टपकने लगती थी। जब कभी बेमौसम बारिश होती थी तो छत टपकने लगती थी। हम दूसरे कमरे में जाकर रात काट लेते थे और अगले दिन छत ठीक कर लेते थे।
बंटवारे के बाद जगह कम हो गई।
एक रात बिना तैयारी के अचानक बारिश हो गई और छत टपकने लगी।
दूसरे कमरे में जाने का हक़ ख़त्म हो चुका था।
छत चार पाँच जगह से टपक रही थी। जो बिस्तरों पर गिर रहा था।
लेटने और सोने के लिए कोई जगह नहीं थी।
तब मेरा निकाह नहीं हुआ था।
वालिद मरहूम, वालिदा साहिबा, भाई, बहन और मैं; सब रात भर जागते रहे।
अपने वालिद और वालिदा को इस तरह तकलीफ़ में देखना मुझे बहुत दुख दे रहा था।
मैंने अपने जीवन में कष्ट भरी जो चार पाँच रातें काटी हैं,
उनमें यह दूसरी रात थी।
हम अपने घर के सामने बहुत अच्छी लोकेशन पर लगभग डेढ़ सौ गज़ का प्लाट ले चुके थे। हम उसे बनाने की तैयारी कर रहे थे।
मैं सेल्फ़ एम्प्लॉयमेंट से स्टूडेंट लाईफ़ में ही काफ़ी अच्छा कमाना शुरू कर चुका था।
अल्हमदुलिल्लाह!
तभी वालिद साहब ने मेरा निकाह कर दिया। मैंने निकाह और वलीमा इतना सादा किया कि घर के सब लोग मामा, चाचा, फूफा वग़ैरह और क़रीबी दोस्त भी न आ सके।
मेरे सामने तब यह सवाल था कि या तो शेख़ी दिखाने के लिए रूपया शादी की फ़ालतू रस्मों पर बर्बाद कर दिया जाए कि लोग क्या कहेंगे?
या फिर वह रूपया बचाकर नया घर बना लिया जाए,
जहाँ बारिश आए तो मैं अपने वालिद, वालिदा, भाई, बहन और बीवी को आराम से रख सकूँ। मेरी नज़र में ऐसा करना इबादत है।
मैंने अपने वालिद, वालिदा, भाई, बहन और बीवी को आराम देना पसंद किया और 'लोग क्या कहेंगे?' को दिल से निकाल दिया।
यह #peer_pressure होता है।
इसी #पीयर_प्रेशर में लोग सिगरेट और शराब पीने लगते हैं। इसी के कारण लोग बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड बन जाते हैं। दूसरों जैसे मॉडर्न दिखने के चक्कर में ही लड़कियाँ और लड़के लुट और मर भी जाते हैं।
एक बार आपको यह पता हो जाए कि यह #peer_pressure है,
और आपके सामने goal क्लियर हो कि करना या पाना क्या है और इरादा अटल या मिज़ाज में ज़िद हो तो फिर पीयर प्रेशर आपको क़ाबू न कर पाएगा।
दीनी ज़ुबान में #पीयर_प्रेशर को रस्मों की ग़ुलामी कहा जाता है।
जब हम 'ला इलाहा इल्लल्लाह' यानि
अल्लाह के सिवा कोई नियामक विधाता माबूद नहीं है, कहते हैं तो हम हर चीज़ की ग़ुलामी से रिहाई पाते हैं।
जो कि हमें सुखी होने रोक रही थी और दुख दे रही थी।
अल्लाह का शुक्र है कि उसने मुझे क़ुरआने पाक की शक्ल में अपनी नज़र दी और अपना नज़रिया दिया।
मैंने अपनी ज़िन्दगी में पढ़ाई और तजुर्बात से यह सीखा है कि हमारा सुख और हमारे पास सुख के साधनों का आना, सब कुछ हमारे नज़रिए पर डिपेंड है।
एक सही नज़रिया सबके लिए निकाह, मकान, भोजन, सम्मान, सेहत और सलामती का इंतेज़ाम कर सकता है
और
अगर नज़रिया ग़लत हो तो आदमी घर से बेघर हो सकता है और रोटियों के लाले पड़ सकते हैं। जैसा कि हम लोक डाऊन के पीरिएड में देख रहे हैं।
ये सब हालात अचानक आ जाते हैं, ऐसा लगता है लेकिन ऐसा नहीं है। हमारा अपना व्यक्तिगत नज़रिया क्या है और देश और दुनिया को जो लोग अपने पीछे लेकर चल रहे हैं, उनका नज़रिया क्या है? उससे वे हालात हमारी ज़िन्दगी में आते हैं, जो हमें सुख और दुख देते हैं।
हम अपना व्यक्तिगत नज़रिया जब चाहें, तब बदल सकते हैं और इससे हालात में काफ़ी अच्छा बदलाव आ जाएगा।
मैं अब सुखी हूँ, रब का शुक्र है।
अपने निजी जीवन के हालात बताने से मेरा मक़सद यह है कि
अगर आप अपने जीवन में रूपए या सुख या किसी भी चीज़ के अभाव से गुज़र रहे हैं तो आप उस चीज़ या उस बात के बारे में अपना नज़रिया बदल कर और स्मार्ट वर्क करके वह चीज़ पा सकते हैं।
मैं हरेक ग़रीब को दौलत, हरेक बेघर को घर और हरेक को उसके दुश्मन से पनाह नहीं दे सकता लेकिन मैं हरेक को अल्लाह का नज़रिया, उसका पाक कलाम दे सकता हूँ; जो हरेक ग़रीब को दौलतमंद बनने, हरेक बेघर को घर बनाने और दुश्मन से डरे हुए हरेक आदमी को सलामती पाने की राह दिखाता है।
...और जिसे अल्लाह देता है तो वह नेमत कई नस्लों तक टिकती है और बढ़ती है, उससे वह नेमत कोई छीनने वाला नहीं है।
जो कोई छीनने की कोशिश करता है, वह ख़ुद ही मिट जाता है।
क़ुरआने पाक अल्लाह की सबसे बड़ी नेमत है,
जो उसने हमें दी है और जिसने इसे छीनना चाहा, वह मिट गया।
ऐसे बहुत से ज़ालिमों का नाम इतिहास में दर्ज है और नए नाम इसमें और बढ़ जाएंगे।
सलामती का नज़रिया आपको सलामत भी रखता है।
आपकी ज़िन्दगी के हालात आपके नज़रिए का साया भर हैं।
क़ुरआने करीम से मुझे तौहीद, रहमत, बरकत, सलामती, माफ़ी, मुहब्बत, मदद, सब्र, शुक्र और दान का नज़रिया मिला है।
जब ये गुण आत्मिक जगत (आलमे अम्र) से लौकिक जगत (आलमे ख़ल्क़) में मौक़ों, घटनाओं और साधनों के रूप में रेफ़्लेक्ट होते हैं तो आपको वे सब चीज़ें ख़ुद मिल जाती हैं, जो गुणों के रूप में आपका नज़रिया और आपका स्वभाव थीं।
परहेज़:
अपने दिल को डर, ग़म, शक, जल्दबाज़ी, मायूसी, नाराज़गी, ग़ुस्से, नफ़रत, जलन, नाजायज़ लालच, अवैध संबंध के रूझान और अपने साथ कुछ बुरा होने के वसवसों से पाक करते रहो।
नीयत:
जब क़ुरआने करीम पढ़ो तो उसकी रौशनी में अपनी ज़िन्दगी के मसलों का हल तलाश करो। नबियों ने उन मसलों को कैसे हल किया, यह देखो।
हर काम पहले ही किया जा चुका है।
आपको सिर्फ़ उसे तलाश करके रिपीट करना है।
मैंने जितने लोगों को यह बात बताई है और जिन्होंने इसे माना है,
उन सबने अपनी मुराद पाई है।
अल्हमदुलिल्लाह!
ट्रैज्डी:
आज आदमी बेघर होने से, दौलत की कमी, बेरोज़गारी, भुखमरी, बीमारी, ज़ालिम की दबंगई, मुक़द्दमेबाज़ी और निकाह न होने से परेशान हैं लेकिन इन बातों को उनका दुनियावी मसला मानकर मस्जिदों में उन्हें हल करना नहीं सिखाया जाता।
नतीजा यह होता है कि मस्जिदों में लोग कम आते हैं और जो आते हैं, उन्हें भी किसी सूरह का मतलब पता नहीं चलता कि रब ने किस सूरह में क्या कहा और उसके नाज़िल होने के बाद दुनिया में क्या हुआ!
ऐसे लोग बड़े दीनदार और अल्लाह के दरबार में मक़बूल समझ लिए जाते हैं जो दुखी बीमार ग़रीब डरे हुए अधमरे आदमियों का कोई मसला हल नहीं करते, उल्टे उन्हें अपने तब्लीग़ी मिशन में जोत लेते हैं और उनके दिल से दुनिया की मुहब्बत निकालने के बजाय उनके विज़न से दुनिया ही निकाल देते हैं।
रब की ख़ुशी:
आप जायज़ कमाई से अपना लिबास, गाड़ी, मकान और दुकान बनाएं। आप निकाह करें और अपने माँ, बाप, भाई, बहन और परिवार को सुख दें। यह इबादत है क्योंकि अल्लाह ने ऐसा करने के लिए कहा है और जब आप उसके बंदों को ख़ुशी देते हैं तो रब ख़ुश होता है। उसका आप पर फ़ौरन यह असर होता है कि आपको भी ख़ुशी मिलती है।
अपने परिवार के बाद आप अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और दूसरे अजनबी ज़रूरतमंदों की भी मदद करें। अपना दायरा बढ़ाएं। आपकी माली मदद से ज़्यादा लोगों को एक सही नज़रिए की ज़रूरत है, जो हर चीज़ दे सके, जो हर मसले का हल दे सके।
आप लोगों तक रब का नज़रिया, उसका कलाम पहुंचाएं।
इस पहुंचाने का नाम तब्लीग़ है।
लोग तब्लीग़ के नाम पर जाने क्या क्या करते रहते हैं और लोगों को दुख से रिहाई पाने और सुखी होने की तालीम नहीं देते।
शायद इसी वजह से दुनिया सुखी नहीं हो पाई।