आम लोग आज डरे हुए हैं, वे आतंकित हैं।
उन्हें लगता है कि वे ख़तरे में हैं। चोर, डाकू, अपहरणकर्ता, स्मग्लर, नशेड़ी और आतंकवादी हर तरफ़ घूम रहे हैं। उनकी जान, माल और उनकी औलाद महफ़ूज़ नहीं है। अफ़सर रिश्वतख़ोर हो गए हैं। उन्हें नेताओं की छत्रछाया मिली हुई है, जिन्हें जनता ख़ुद चुनती है। जनता बेचारी है, जाए तो कहां जाए, वह करे तो क्या करे?
आम लोगों को कोई बताता है कि हमारे नेता पूंजीपतियों से मिले हुए हैं, जो जनता का ख़ून चूस रहे हैं और मिली-भगत करके मोटी मलाई अंदर कर रहे हैं। हर तरफ़ बेईमानी और लूटमर मची हुई है। जो जितना बड़ा बेईमान है, वह उतने ही बड़े पद पर पहुंच रहा है।
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आज यह अक्सर आम लोगों की मानसिकता है, जो एक दिन में नहीं बनी है बल्कि ‘सिमसिम‘ यानि तिल तिल करके बनी है। यह ख़ुद नहीं बनी है बल्कि इसे बनाया गया है।
यह नकारात्मक मानसिकता बहुत घातक है। यह घातक मानसिकता उन सूचनाओं से बनाई गई है, जो कि जनता के सामने टी.वी., रेडियो, इंटरनेट और अख़बारों के ज़रिये परोसी जाती है।
हमारा माइंड इस सारे डाटा को लेकर प्राॅसेस करता है और फिर नतीजा (conviction) निकालता है। केवल नकारात्मक डाटा पर विचार करने के बाद फ़ैसला हमेशा नकारात्मक ही निकलेगा। यह तय है।
उसी डाटा में थोड़े सी पाॅजि़टिव ख़बरें भी डाल दी जाएं तो आखि़री फ़ैसला (conviction) बदल जाएगा।
पाॅजि़टिव डाटा को ज़्यादा कर दिया जाए, तो आखि़री फ़ैसला और ज़्यादा पाॅजि़टिव हो जाएगा।
यह सब डाटा की अदला बदली का कमाल है जबकि रिएलिटी यानि हक़ीक़त अपनी जगह वही रहती है, जो कि है।
आम जनता हक़ीक़त नहीं जानती। वह उस डाटा को जानती है, जो कि उसे दिया जाता है। आम लोगों को यह पता ही नहीं चलता कि उनके माइंड से खेला जा रहा है। उन्हें वही सोचने के लिए मजबूर किया जा रहा है जो कि ‘एलीट क्लास’ उनसे चाहती है कि आम जनता यह सोचे और यह निर्णय ले।
आम जनता को ‘एक ख़ास फ़ैसला’ लेने के लिए मजबूर किया जाता है और वह लेती रहती है। यह मानसिक ग़ुलामी (psychic enslavement) है।
हमारे मीडिया की अक्सरियत ‘नकारात्मकता’ पर है।
पूरे दिल्ली में लाखों फैमिली रहती हैं। सब घरों में बहू-बेटियां महफ़ूज़ हैं। उनकी हिफ़ाज़त मीडिया के लिए ख़बर नहीं बनती। दस-बीस जगहों पर रेप हो गया तो मीडिया के लोग दौड़कर जाएंगे और इसे छापकर हर तरफ़ फैला देंगे।
यही हाल चोरी, लूट, और डकैती का है। सबकी दुकानें और सबका माल दिन रात महफ़ूज़ है। दिल्ली में हर तरफ़ पुलिस के सैकड़ों अधिकारी और हज़ारों सिपाही दिन-रात, सर्दी-गर्मी और बारिश में अपनी ड्यूटी पर लगे हुए हैं। यह हिफ़ाज़त और यह ड्यूटी देना मीडिया में जगह नहीं पाता लेकिन चोरी, लूट और डकैती की एक घटना को मीडिया सुखिऱ्यों में जगह देती है।
सरकारी कर्मचारी जो काम करते हैं, उसे पूरा फ़ोकस और सम्मान नहीं मिलता लेकिन उनकी बेईमानी और निकम्मेपन को हाईलाईट किया जाता है।
हमारे नेता, चाहे वे किसी भी पार्टी के हों, लोगों की फ़रियाद भी सुनते हैं और अपने अपने इलाक़ों में विकास के काम भी करते हैं। उन्हें भी देखा जाना चाहिए।
आतंकवाद की गिनी चुनी घटनाएं सिर्फ़ चन्द जगहों पर होती हैं। उनके अलावा हर तरफ़ हर समय शान्ति ही रहती है। हर तरफ़ लोग एक दूसरे से प्रेम और हमदर्दी का बर्ताव कर रहे हैं। एक दूसरे की ज़रूरत में काम आ रहे हैं। ज़रूरत पड़ने पर अपना ख़ून और अपने अंग तक दान कर रहे हैं। भोजन-कपड़ा और रूपया ज़रूरतमंदों को दान करना तो हरेक आदमी की आदत है। रोज़मर्रा के जीवन का ढर्रा यही है। इस महान अचीवमेंट को मीडिया में जगह नहीं मिलती लेकिन आतंकवाद की घटनाओं को प्रमुखता दी जाती है।
मीडिया की डिज़ायनिंग जिसने की है, उसने ऐसे ही की है। ऐसा उसने अपने मक़सद को पूरा करने के लिए किया है लेकिन इससे आम जनता का मक़सद पूरा नहीं होता। आम जनता का भला मीडिया की इस ‘नकारात्मकता’ से नहीं होता बल्कि इससे उसका बुरा ही होता है। इससे लोगों के दिलों में डर और तनाव पैदा होता है। बार बार बरसों यही सब रिपीट होने से यह उसके मन में जम जाता है।
डर और तनाव 95 प्रतिशत बीमारियों की जड़ है।
हक़ीक़त यही है कि बीमारियों की असली वजह सिर्फ़ एक ‘भ्रम’ (माया, illusion, वसवसे, बातिल ग़र्र) है, जिसे रिपीट सजेशन के ज़रिए लोगों के मन का विश्वास बना दिया गया है।
‘विश्वास’ का असर यह होता है कि हरेक आदमी को वही अनुभव होने लगाता है, जैसा उसका विश्वास होता है।
मिसालः
अगर चार-पांच लोग एक आदमी से अलग अलग जगहों पर पूछ लें कि क्या बात है भाई, आप कुछ बीमार से दिखाई दे रहे हैं?
तो उसके मन में आएगा कि इतने सारे लोग ग़लत नहीं कह सकते। उसे ज़रूर कुछ न कुछ हो गया है। फिर वह डाॅक्टर के पास जाएगा। डाॅक्टर उसके ब्लड, लिवर, किडनी, बीपी, शुगर, कैल्शियम और वेट की जांच कराएगा। उन सबमें ‘कुछ’ गड़बड़ मिल ही जाएगा। बस जो पहले एक शक था, अब वह उसका यक़ीन बन जाएगा। अब वह एक मरीज़ की तरह महसूस करेगा और एक मरीज़ की तरह ही दवा परहेज़ सब करेगा।
यह सब एक इल्यूज़न है। इसे आप जब चाहें क्रिएट कर सकते हैं।
...और आप जब चाहें तब इसे डिलीट भी कर सकते हैं।
ऐसे ही आप अक्सर बीमारियों को बिना किसी दवा के डिलीट कर सकते हैं।
...क्योंकि हक़ीक़त यह है कि आप सब पूरी तरह स्वस्थ हैं सिवाय उनके जिनमें कोई शारीरिक विकृति है।
साॅल्यूशनः
नकारात्मक मीडिया की ट्राँस से भी आप जब चाहे तब निकल सकते हैं।
1. इसके लिए आप सबसे पहले इनसे सूचनाएं यानि डाटा लेना बंद कर दें और जो पाॅजि़टिव एट्टीट्यूड का टी.वी. चैनल और अख़बार हो, उसे देखें-पढ़ें। आपको कोई ऐसा न मिले तो आप इनसे बचें।
2. जिस चीज़ के बारे में आपके मन में डर समा गया हो, उसे ख़ुद अपने माध्यमों से जानने की कोशिश करें। इससे आपको नए डाटा मिलेंगे और उस चीज़ की ज़्यादा सही तस्वीर आप देख पाएंगे।
3. नई इमेज पुरानी इमेज को मिटा देगी और आप पुरानी इमेज से उपजे डर और तनाव से भी मुक्त हो जाएंगे।
4. आप नेचर को देखिए। आप रोज़ाना निकलते हुए सूरज, खिलते हुए गुलाब, खिलती हुई धूप, बरसती हुई बारिश, बहती नदियों, उगते पौधों को, फलों और सब्जि़यों को देखिए।
आप देखेंगे कि ज़मीन से आसमान तक, हर चीज़ लाईफ़ को सपोर्ट कर रही है।
हर चीज़ आपको सपोर्ट कर रही है।
आप एक ऐसी नेचर में हैं, जो आपको सपोर्ट कर रही है।
आखि़री फ़ैसला अब यह आएगा कि मैं पूरी तरह सही जगह पर हूं और मैं सेफ़ हूँ।
अब आप एक सही बात पर विश्वास कर रहे हैं।
अब आप भ्रम (माया, illusion) से मुक्त हैं। आपको मुक्ति मिल चुकी है। अब आप ‘सत्य के ज्ञानी’ हैं।
अब आप दूसरे अज्ञानियों को भी सत्य का ज्ञान देकर उन्हें मिथ्या माया के अंधकार से, उससे उपजे डर और तनाव से मुक्त होने में मदद कर सकते हैं।
आपका विश्वास आपको आनंद देगा, जो हर पल बढ़ता ही जाएगा।
अब आप अस्तित्व को उपलब्ध हो चुके हैं।
मुबारक हो!
आपके जन्म का उद्देश्य पूरा हुआ। आपकी यात्रा सफल हुई।
अब आपके जीवन में आपके विश्वास के अनुरूप आनंद देने वाले हालात आपको अनुभव होंगे।
नज़रिया बदलते ही अब आपके हालात ख़ुद ब ख़ुद बदलते चले जाएंगे।
इस परम सत्य को ज्ञानियों ने हर काल में हर भाषा में बताया है। आज क्वांटम फि़जि़क्स और सायकोलाॅजी भी यही कह रही है।
यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है कि आपके हर तरफ शान्ति है.
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लोग यह हक़ीक़त, यह सत्य भूल जाते हैं, जब वे मीडिया द्वारा प्रायोजित खबरें देखते और पढ़ते हैं.
उनसे एक भ्रम उत्पन्न होता है, जो नज़र पर पर्दा डाल देता है.
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शान्ति आज का सत्य है और आज ही कल का नतीजा बनकर आयेगा तो कल भी शान्ति ही है.
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हरेक घर में मां अपने लाडलों को चूम रही है.
इस दिव्य प्रेम से इतनी ऊर्जा पैदा हो रही है, जो हरेक जंग और तनाव की नकारात्मकता को ऐसे मिटा देगा जैसे उडती धूल पर बारिश पड़ती है तो वह ज़मीन पर वापस आ जाती है.
From where you grab these knowledge.
Thanks.
आम तौर से लोग लॉजिक पर जीते हैं और अंदर से जो प्रेरणा आती है, उसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं.
इंसान को चाहिए कि वह अपने आप को ठीक से जाने और फिर अपनी तमाम काबिलियत का पूरा इस्तेमाल करे.
प्रेम में जीने को अपना स्वभाव बना लेने से आत्मा के रहस्य खुद ही खुलते चले जाते हैं.
फिर भौतिक वस्तुएं भी खुद ही खिंची चली आती हैं, जिनके लिए दूसरे खून बहा रहे होते हैं या बेईमानी कर रहे होते हैं.
विश्वास (ईमान) से आपको वह सब मिलता है जो आपको अपने वुजूद के क़ायम रखने और तरक़्क़ी करने के लिए ज़रूरी है.
यह नेचर का लॉ है.
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कॉमेंट के लिए आपका शुक्रिया.
यक़ीनन आपका कल सुनहरा है