नफ़रत के शब्दों से नफ़रत फैलती है और प्रेम के शब्दों से प्रेम।
नफ़रत आग लगाती है जबकि प्रेम नफ़रत की आग को बुझाता है।
नफ़रत दिलों को तोड़ती है जबकि प्रेम दिलों को जोड़ता है। फिर जैसी हालत दिल की होती है, वही समाज में अपना असर ज़ाहिर करती है।
जिस समाज के सदस्य प्रेम की वाणी बोलते हैं, वह समाज जुड़ा रहता है। यही सूफ़ी-संतों का पैग़ाम हम सबके नाम सदा से रहा है। इसी में सबका हित है।
...लेकिन सूफ़ी-संतों की बात सब नहीं मानते। ये नफ़रत की बातें करते हैं और समाज में नफ़रत फैलाते हैं। जनता को भ्रम में डालने के लिए ये दीन-धर्म की रक्षा और प्रचार की आड़ लेते हैं।
इस विचारधारा के संगठनों के मुखिया चाहते हैं कि वे जनता का भला कुछ भी न करें लेकिन फिर भी जनता उन्हें सत्ता सौंप दे क्योंकि वे अमुक जाति या वंश के हैं या प्राचीन काल में उनकी बड़ी तूती बोलती थी।
अपने ग़लत मक़सद के लिए वे लोगों को भड़काते और आपस में लड़ाते हैं। ये सब समाज में भयानक बीमारियाँ फैलाते हैं।
दीन से फ़लाह होती है यानि धर्म से कल्याण होता है।
फ़लाह यानि कल्याण से ही इस बात की पहचान होती है कि यह बात धर्म की है या अधर्म की?
जो लोग समाज में नफ़रत की आग फैला रहे हैं। वे दीनी-धार्मिक लोग नहीं हैं। इनकी बातों से कभी किसी का कल्याण नहीं हुआ। ये केवल भड़काऊ बातें करते हैं, जिन्हें कहने से इनका दीन-धर्म रोकता है। इनकी बातों से ही जनता इन्हें पहचान लेती है।
जनता लगातार जागरूक होती जा रही है। उसकी चेतना का अपहरण करके उसे अपना दास बनाने की कोशिशें अब सफल नहीं होतीं।
फिर भी अभी कुछ नादान और जज़्बाती लोग हैं, जिन्हें अपने और अपने समाज के हित की समझ नहीं है। बस यही लोग इन अपहरणकर्ताओं के मानसिक दास रह गए हैं। नुक़्सान उठाकर ये भी समय के साथ समझ ही जाएंगे कि प्रेम से ही कल्याण संभव है।
अब धर्म की समझ सबको आती जा रही है। सब कल्याण चाहते हैं। इसीलिए सब प्रेम का व्यवहार करते हैं। सब मिलजुल कर रहते हैं। सबके कल्याण का स्तर पहले के मुक़ाबले लगातार बढ़ता जा रहा है। यह ख़ुशी की बात है।
No comments:
Post a Comment