17th July 2016, 8:52pm
रिसर्च : डा. अनवर जमाल
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मनचाहा पति कैसे पाएँ?:Practical Training
मीना एक आफ़िस में चपरासी है। वह 8 साल पहले विधवा हुई थी। उसकी शादी के 3 साल बाद ही उसके पति की मौत हो गई थी। उसे अपने पति की मौत के बाद उसके आश्रितों में नौकरी मिल गई थी। तक़रीबन 4-5 सालों से वह सरकारी कागज़ इधर से उधर पहुंचा रही है। उसकी आँखों में ऐसा सूनापन और चेहरे पर ऐसी उदासी छाई रहती थी, जिसे देखकर मैं समझ गया कि इसके सपने मर चुके हैं।
मीना की उम्र ज़्यादा नहीं है। वह ख़ूबसूरत भी है। कोई ऐसी वजह नहीं है कि फिर से उसकी शादी न हो सके। जब कभी मेरी नज़र उस बहन पर पड़ती, मैं मालिक से उसकी शादी और उसके अच्छे भविष्य की दुआ ज़रूर करता।
एक रोज़ मैं अपने एक शागिर्द समर ख़ान से मिलने के लिए उनके आफ़िस गया तो सामने से मीना निकल
कर गई।
मैंने समर ख़ान से कहा कि आप इसकी शादी के लिए दुआ किया करें।
मालिक के करम से तभी मीना कुछ काग़ज़ात
रिसीव कराने के लिए समर ख़ान के आफ़िस में आ गई।
उनकी असिस्टेंट हेमा उससे बात करने लगी।
समर ख़ान ने मीना को मेरी बात बताई कि हमारे भाई आपकी शादी के लिए दुआ करते रहते हैं।
मीना ने कहा कि मैं ख़ुद भी शादी करना चाहती हूं। मेरे रिश्ते आते हैं लेकिन फिर मेरा काम अटक जाता है। ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने मुझ पर कोई जादू वग़ैरह करवा दिया हो।
मैंने कहा कि मेरा ताल्लुक़ देवबन्द से है। मैं जादू-टोने की हक़ीक़त को ख़ूब जानता हूँ। आप पर जादू का असर तो है लेकिन ख़ुद पर यह असर आपका अपना किया हुआ है।
वह बोली- कैसे?
मैंने कहा- आप चाहती हैं कि आपकी दोबारा शादी हो?
मीना बोली- हाँ
मैंने कहा- फिर आपको यह डर भी सताता है कि लोग क्या कहेंगे?
मीना बोली- हाँ
मैंने कहा- यही डर आपका काम अटका रहा है। आप इस डर को अपने दिल से निकाल दीजिए। आपका काम हो जाएगा। समाज के रिवायती लोग तो विधवाओं को तिल तिल करके मरते देखना चाहते हैं।
उनकी ख़ुशी के लिए अपनी ख़ुशियों का गला
घोंटना अक्लमन्दी नहीं है। अब औरतों को विधवा होने के बाद सती और बर्बाद की कोई ज़रूरत
नहीं है। मालिक की दया से आपकी शादी ज़रूर होगी और आपको अच्छा पति मिलेगा।
मीना ने पूछा कि मुझे क्या करना होगा?
मैंने उसे क़ुरआन की सबसे बड़ी दुआ अलफ़ातिहा के ज़रिए हीलिंग इनर्जी दी। ज़िन्दगी के बारे में उसके नज़रिए को सही किया। उसे अल्लाह की मदद का यक़ीन दिलाया।
मैंने कहा- आप उस मालिक को याद कीजिए, जिसने आपको पैदा किया है, जिसकी रहमत से आप ज़िन्दा हैं और हर पल साँस लेती हैं। वही एक रब सबका मालिक है। आप उसी मालिक की प्रॉपर्टी हैं और अपनी प्रॉपर्टी की केयर करना वह खूब जानता है। आप सोने से पहले उसका नाम लीजिए।
आप ‘सबका मालिक एक’ और ‘अल्लाह मालिक’ यह कहिए। उससे अपने काम में मदद माँगिए। इसके बाद जैसा पति आपको चाहिए, उसके गुणों पर विचार कीजिए और उसका स्वरूप, उसकी एक इमेज अपने मन में बनाईये।
अपने नए पति की उम्र, आमदनी, रंग, क़द, आदत और यह कि वह शहरी हो या देहाती, यह सब बिल्कुल साफ़ साफ़ सोच लीजिए। इसे किसी कार्ड पर लिखकर इसे अपने पास रख लीजिए। इसके बाद आप उस पति को अपने मन की आंखों से अपने घर में मौजूद देखिए। यह विचार लेकर आप सो जाईये और फिर सुबह को उठते ही यही विचार कीजिए। दिन में भी आप इस विचार को अपने में ताज़ा करती रहिए। आप यक़ीन कीजिए कि आपका सपना पूरा होगा।
मैं उसे यक़ीन दिलाते दिलाते ख़ुद इतना यक़ीन से भर गया कि मेरे मुँह से यह भी निकल गया कि 'मालिक ने चाहा तो एक हफ़्ते में आपका काम हो जाएगा।'
...और वाक़ई एक हफ़्ते में उसका काम हो गया।
19 नवम्बर 2014 को नन्हे भाई ने ख़बर दी कि मीना ने 18 नवम्बर को एक लड़के के साथ कोर्ट मैरिज कर ली है। दोनों पक्षों की तरफ़ से उनका कोई भी घरवाला शामिल नहीं हुआ।
मैं ख़ुश हुआ कि दोनों पक्षों की तरफ़ से कोई शामिल नहीं हुआ, न सही लेकिन मीना की नैया पार लग गई। जो काम 8 साल से अटका पड़ा था, वह अल्लाह की मदद से 8 दिन में हो गया।
मीना 20 नवम्बर 2015 को अपनी माँग में सिन्दूर लगाकर आई। उसका चेहरा ख़ुशी और मेक अप, दोनों की वजह से लाल हो रहा था। उसने कीमती साड़ी ज़ेवर पहन रखे थे। उसने मुझे, समर ख़ान को और हेमा को बरफ़ी खिलाई। उसका चेहरा खिला हुआ था। उसने बताया कि भाई साहब, मैंने जिस दिन दुआ की उससे अगले दिन ही रिश्ता आ गया था। मेरे पति बहुत सुन्दर हैं। वह सरकारी जॉब में तीसरे ग्रेड पर हैं। उसने अपने मोबाईल में अपने नए पति का फ़ोटो दिखाया। वाक़ई वह एक अच्छी शक्ल का नौजवान है।
मीना बोली- आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
मैंने कहा- अब तो हमारे काम की शुरूआत हुई है। अब हम तुम्हें बहुत से बच्चों का वरदान देते हैं। कम बच्चों की बात कभी मत सोचना। बच्चे जितने ज़्यादा हों, उतना ही अच्छा है। सोचना कि पूरा शहर तुम्हारे बच्चों से भर गया है। तुम्हारे पास दौलत बहुत आएगी।
मीना मुस्कुरा कर सुनती रही।
मैंने यह भी कहा- अपने पति को बचा कर रखना। जब कभी उसके पास तुम्हारे रिश्तेदार बैठें तो वहां मौजूद रहना। कुछ ग़लत क़िस्म के रिश्तेदार ग़लत बातें कह जाते हैं और रिश्ता बिगाड़ देते हैं।
मीना ने हामी भरी और अपने आफ़िस वालों को मिठाई खिलाने चली गई।
मालिक हरेक लड़की को, हरेक विधवा और तलाक़शुद औरत को ज़्यादा से ज़्यादा सुख दे और उनके दिल से दुनिया का डर निकाल दे, जिसने उनका जीवन दुखों से भर दिया है।
अक्सर डर बेकार होते हैं। यह सपने साकार होने की दुनिया है।
आप सपने देखिए, उनके पूरा होने का यक़ीन कीजिए।
अपने मन, वचन और कर्म से अपने सपनों को सपोर्ट कीजिए।
समय आने पर वह सहज ही पूरा हो जाएंगे।
यह ईश्वर अल्लाह की प्राकृतिक व्यवस्था है।
कुंवारी लड़कियां भी इसी विधि से अच्छा पति पा सकती हैं। उन्हें अपने मन से यह डर निकाल देना चाहिए कि उनके पास देने के लिए बहुत सा दहेज नहीं है या उनका क़द छोटा है या उनका रंग सांवला है या उनकी एजुकेशन कम है, इसलिए उन्हें अच्छा पति नहीं मिलेगा।
दिल से हरेक डर निकाल देने के बाद अच्छे पति के बारे में सोचिए कि आपकी नज़र में एक अच्छे पति में क्या गुण होने चाहिएं और फिर अपने मन में उसके साथ अपना विवाह होते हुए देखिए, बस। हो गया काम।
एक आसान काम को बेवजह के डर ने इतना मुश्किल बना दिया है कि बहुत सी लड़कियां उस आदमी से शादी कर बैठती हैं, जिसकी सूरत और सीरत को वे पसन्द नहीं करतीं।
औरत हो या मर्द, कोई बूढा हो या बच्चा या फिर चाहे कोई ग़रीब हो या बीमार, उसे अपनी हक़ीक़त और अपने अंदर की शक्ति को पहचानना होगा। अपनी सही पहचान के बाद उसे सारी ख़ुशियां आसानी से मयस्सर होती चली जाएंगी।
पिछले 30 सालों में हमने अपने बुज़ुर्गों की ज़िन्दगी में, अपनी और अपने दोस्तों की ज़िन्दगियों में अल्लाह की क़ुदरत के ऐसे सैकड़ों चमत्कार और मौज्ज़े देखे हैं। सैकड़ों लोगों को हम रोज़ वेलनेस कोचिंग देते हैं। अल्लाह उनकी भी मुरादें पूरी करता है। वह उनके भी बिगड़े काम बनाता है।
सब कुछ सही जानकारी और उस पर यक़ीन व अमल पर
मन की मुरादें पाएँ, यक़ीन की ताक़त से
जब इंसान के दिल में किसी चीज़ की ख़्वाहिश बार बार गश्त करती है तो वह मुराद बनकर उसके मन में क़ायम हो जाती है।
यह पहला मरहला होता है
यह एक Vision होता है
दूसरा मरहला यक़ीन का होता है।
जब आदमी को यक़ीन होता है कि यह चीज़ मिल सकती है तो वह उसे पाने के रास्ते और ज़रिये तलाश करता है, अंदरूनी और बाहरी कोशिश करता है। नतीजे में उसका conscious mind उस चीज़ पर focus हो जाता है। वह ख़ुद को उस चीज़ के साथ देखता है।
मानो वह चीज़ उसके पास इसी वक़्त मौजूद है।
इस तरह की images उसके mind में बार बार बनती हैं तो वे subconscious mind में commands की तरह दाख़िल हो जाती हैं।
जिस चीज़ पर conscious mind फोकस हो जाता है subconscious mind उसे attract कर लेता है, या उसे पाने के साधनों को, means को attract कर लेता है।
तीसरा मरहला चीज़ पा लेने का मरहला है।
जब चीज़ ज़ाहिरी दुनिया में पास आ जारी है तब मुराद पूरी हो जाती है। हर मुराद ऐसे ही पूरी होती है। अल्हम्दुलिल्लाह
जिस चीज़ के मिलने के बारे में आदमी को शक हो जाता है, तो मन की मुराद पूरी होने री natural process रुक जाती है और तीसरा मरहला नहीं आता। वह चीज़ physical world में ज़ाहिर नहीं हो पाती।
शक, दरअसल यक़ीन होता है चीज़ के न मिलने का।
हर आदमी बचपन से एक ख़ास तरह के माहौल में चीज़ों को होता हुआ देखता है। इससे उसका एक 'यक़ीन' बन जाता है की कौन सी चीज़ हो सकती है और कौन सी चीज़ नहीं हो सकती।
हर इंसान को उसकी ज़िन्दगी में उसके यक़ीन के मुताबिक़ ही चीज़ें मिलती है।
इंसान अपने यक़ीन से unconscious है, unaware है। उसका यक़ीन माहौल के असर से ख़ुद ब ख़ुद बन चुका होता है। अक्सर उसे अपने साथ 'कुछ बुरा' होने का डर लगा रहता है।
क्यों ?
...क्योंकि वह दूसरों के साथ 'बुरा' होते हुए देखता है और उसके साथ भी कुछ बुरा हो चुका होता है।
इससे उसका एक यक़ीन बन जाता है की यह दुनिया एक ऐसी जगह है जहाँ ज़िन्दगी में कभी भी 'कुछ बुरा' हो सकता है। इस यक़ीन की वजह से उसके साथ 'कुछ बुरा' होता रहता है।
उसके साथ 'कुछ बुरा' होते देखकर दूसरे लोगों को भी यक़ीन हो जाता है कि इस दुनिया में किसी के साथ कभी भी 'कुछ बुरा' हो सकता है।
उनके इस यक़ीन की वजह से उनके दिल में डर पैदा होता है कि 'फुलां' आदमी के साथ ऐसा हुआ, कहीं ऐसा हमारे साथ हो गया तो क्या होगा ?
बीमारी, accident, और नौकरी छिन जाने के वाकेआत देख कर वह खुद के बीमार, ज़ख़्मी या jobless होने की तस्वीरें अपने मन में देखने लगते हैं।
सब का मन बेक़ाबू है। सबके मन में डर है। किसी के मन में एक तरह का डर है और किसी के मन में दूसरी तरह का डर है। आज डर और ग़म इंसान के वुजूद में समा चुके हैं।
अक्सर इंसान ऐसी बातों से डरता है, जो शायद उसके साथ कभी न हों, लेकिन अपने डर की वजह से वह उन्हें अपनी ज़िन्दगी में वुजूद बख़्श देता है।
जहाँ डर होता है, वहाँ ग़म ज़रूर होता है।
जहाँ ग़म होता है, वहाँ ग़ुस्सा, मायूसी, बेचैनी और शिकायतें भी होती हैं।
जहाँ ग़ुस्सा और शिकायतें होती हैं।
वहाँ लड़ाई - झगड़े भी होते हैं।
जहाँ लड़ाई - झगड़े होते हैं, वहाँ नफ़रत भी होती है।
जहाँ दूसरों से नफ़रत होगी वहाँ दूसरों का बुरा चाहने की बात भी ज़रूर पायी जाएगी।
जब आदमी ग़म, ग़ुस्से और नफ़रत से भरा होगा और दिल से अपने दुश्मनों का बुरा चाहता होगा तो उसके दिल में बुराई बैठ जाएगी। वह बुराई ख़ुद उसके वुजूद का, उसके being का हिस्सा बन जाती है। तब उसके अपने ही साथ बुरे हादसे और नुक़्सान ख़ुद ब ख़ुद होने लगते हैं।
जब वह अपने बारे में कुछ बुरा होने से डरता है, तब भी उसके साथ कुछ बुरा हो जाता है।
आदमी नहीं जानता कि उसके मन के बेक़ाबू होने से उसका डर, ग़म, ग़ुस्सा और नफ़रत सब कुछ बेक़ाबू है।
आदमी को जब ख़ुद पर ही क़ाबू नहीं है तो उसे अपने काम और उसके अंजाम पर भी क़ाबू नहीं हो सकता।
बुराई का अंजाम बुरा होता है।
बुरे अंजाम से बचना है तो भलाई को चुनें।
बुराई को भलाई से बदलें।
जब आपको अपने साथ कुछ बुरा होने का डर सताए तब अल्लाह की ख़ूबियों को याद करें, जिसने आपको 'अलक़' से पैदा किया। जिसने ज़मीनो-आसमान की हर चीज़ को पैदा किया। उनकी हिफाज़त की है और कर रहा है। जिसने सय्यिदना नूह अ0 की नाव की हिफाज़त की, जिसमें हमारे बुजुर्ग़ सवार थे। वे बुजुर्ग़ न बचते तो आज यहाँ हम भी न होते।
जब हमारी हिफाज़त के लिए अल्लाह हमारे साथ है तो हम अल्लाह के सिवा किसी ऐसी चीज़ से क्यों डर रहे हैं, जिससे डरने के लिए अल्लाह ने मना किया है ?
हम ऐसा ग़म क्यों कर रहे हैं, जिससे अल्लाह ने रोका है ?
हम इस बात पर ख़ुश क्यों नहीं होते कि अल्लाह हमारे साथ है, जो हर चीज़ पर क़ादिर (समर्थ) है।
वह रब हमारा भला करना चाहे तो कोई हमारा बुरा नहीं कर सकता और अगर वह हमारा कुछ नुक़्सान करना चाहे तो कोई हमें नफ़ा नहीं पहुँचा सकता।
... और अल्लाह जिसके साथ जो कुछ करता है, अपने क़ानून के मुताबिक़ करता है।
अल्लाह का क़ानून यह है कि जो लोग भलाई के काम करते हैं, उन्हें भलाई ही नसीब होती है।
आप अपने यक़ीन के मुताबिक़ ही अमल करते हैं।
आपके आमाल भी आपके यक़ीन के मुताबिक़ ही कामयाब होते हैं।
आपका यक़ीन, आपके आमाल और उनके अंजाम हर जगह काम करते हैं। आख़िरत में भी और उससे पहले दुनिया में भी।
आपको आपके यक़ीन के मुताबिक़ ही मिलता है और मिलेगा।
अब यह बात हर तरफ़ कही जा रही है कि अगर आप कहते हैं ‘I can’ तो आप सच कहते हैं, अगर आप कहते हैं ‘I cannot’ तो भी आप सच कहते हैं।
ख़ुद के बारे में आपका जो भी यक़ीन है, वह सामने आता है।
ख़ुद के बारे में आप अपना यक़ीन अच्छा बनाएं।
आपके मन में बचपन से माहौल के असर से जो यक़ीन ख़ुद ब ख़ुद बनता चला आया है, उसने आपके अपने बारे में भी आपका एक यक़ीन बना दिया है कि आप कैसे आदमी हैं ?
आप कैसी चीज़ें, कैसी सेहत, कितनी इज़्ज़त, कितनी दौलत और कितनी ख़ुशी और कामयाबी पाने के 'हक़दार' हैं ?
आपके मन की जो मुरादें आपके इस यक़ीन के मुताबिक़ होती हैं, वे ज़रूर पूरी होती हैं।
आम तौर पर आदमी की ज़िन्दगी में ऐसे वाक़ये हुए होते हैं कि उसने किसी के साथ बुरा किया होता है, या उसके साथ किसी ने बुरा किया होता है।
वह ख़ुद एहसासे जुर्म और शर्मिंदगी के साथ जीता है।
वह अपने आपको अच्छा आदमी नहीं मानता।
उसके अन्दर ख़ुद से नफ़रत का जज़्बा होता है।
यह जज़्बात उसके अन्दर सज़ा का तक़ाज़ा करते हैं और उसका subconscious mind उसके लिए ऐसे बुरे हालात पैदा करता है जिनसे वह दुःख दर्द महसूस करता है।
आदमी इस बात unconscious रहता है कि अपने आपको वह ख़ुद जज कर रहा है और ख़ुद को ख़ुद ही सज़ा दे रहा है और यह कि वह जब चाहे अपने आपको माफ़ कर सकता है। वह जब चाहे ख़ुद पर रहम कर सकता है।
self compassion से वह अपने हालात बदल सकता है।
वह जब चाहे self-concept बदल सकता है।
वह जब चाहे अपने अक़ीदे, अपने beliefs बदल सकता है।
जिस बात को आप सच मानते हैं वह आपका belief है।
आपका belief system ही आपका paradigm है।
आपका paradigm आपके कल्चर की देन है।
आप अपनी मुराद पूरी होने पर यक़ीन या शक भी अपने paradigm के मुताबिक़ ही करते हैं।
अगर आप कोई चीज़ चाहते हैं और वह, आपको काफ़ी वक़्त गुज़रने के बाद, अभी तक नहीं मिली है तो इसका मतलब यह है कि आपका paradigm आपकी मुराद को support नहीं कर रहा है।
आपको अपना paradigm चेंज करना होगा।
paradigm चेंज होता है, नई ख़बरों से।
नई जानकारी हासिल करें ताकि आपका मन नई जानकारी को process करके नए नतीजों का यक़ीन कर सके।
ऐसे लोगों के साथ रहें या उनके बारे में पढ़े, जिन्होंने इन चीज़ों को हासिल किया है। उनके तरीक़ों को आज़माएं।
कुछ महीनों तक लगातार ऐसा करते रहने से paradigm चेंज हो जाता है।
आपके self respect और self worth महसूस करने के लिए ख़ुद को ख़ुदा की नज़र से देखें।
अल्लाह ने सय्यिदना आदम अ0 की औलाद को इज़्ज़त बख़्शी है।
जुर्म के एहसास की वजह से shame & guilt के जज़्बात हों, ख़ुद से घिन आती हो तो तौबा करके इन्हें ख़ुद से दूर कर लें।
अपना नज़र, दिल, बदन, लिबास और जगह को पाक रखें।
अल्लाह तौबा करने वालों को और बहुत पाक रहने वालों को महबूब रखता है।
दूसरों को माफ़ करना सीखें।
ख़ुद को माफ़ करना भी सीखें।
आज तक जो कुछ बुरा आपने किसी के साथ किया या किसी ने आपके साथ किया वह सब आपके लिए एक सबक़ था। जो सबक़ आपको सीखना था वह आप सीख चुके हैं। अब उन दुख देने वाली यादों को मन में दोहराने की कोई ज़रूरत नहीं है।
अल्लाह ने आपको तौबा की तौफ़ीक़ दी, इस पर शुक्र अदा करें।
ज़मीन से लेकर आसमान तक अल्लाह ने हर चीज़ को आपको नफ़ा पहुंचाने में लगा रखा है।
हर तरफ़ से आप हर पल बेशुमार नेमतों से घिरें हुए हैं। आप नेमतों को देखिये, उनका बयान कीजिये, उन पर शुक्र अदा कीजिये।
सुबह को सबसे पहला अमल शुक्र का कीजिए।
रात को सोने से पहले सबसे आख़री अमल शुक्र का कीजिए।
दिन में भी आप बार बार नेमतों पर शुक्र कीजिए।
आपके शुक्र के एहसास को कितनी शिद्दतसे महसूस करेंगे, उतनी जल्दी आपको बरकत हासिल होगी।
शुक्र का मतलब यह भी है कि ज़िन्दगी की और नेमतों की क़द्र की जाए। उनकी केयर की जाए। उनका इस्तेमाल हमेशा भलाई में किया जाए।
इस अमल से आपकी state of consciousness ही चेंज हो जाती है।
जब आप अपने being पर काम करते हैं तो उसका असर आपके doing पर पड़ता है, और फिर having पर भी पड़ता है।
आपके मन की मुराद पूरी हो जाती है।
अगर आपको health चाहिए तो आपको health consciousness डेवलप करनी होगी।
अगर आपको wealth चाहिए तो आपको wealth consciousness डेवलप करनी होगी।
अगर आपको power चाहिए तो आपको power consciousness डेवलप करनी होगी।
अगर आपको success चाहिए तो आपको success consciousness डेवलप करनी होगी.
अगर आपके ख़ुशी चाहिए को आपको ख़ुशी की consciousness डेवलप करनी होगी।
आपको जो चीज़ दरकार है, आपको ख़ुद में उसी चीज़ की consciousness डेवलप करनी होगी।
इसका तरीक़ा imagination है, जिसे creative visualization भी कहते हैं। यह पूरी तरह scientific है।
participant बनकर मन चाही चीज़ या हालत को मन में देखना और उसे sound, taste, touch और smell के साथ real feel करना उस चीज़ या हालत की consciousness को develop करता है।
यह बीज बोने की तरह है।
जो बीज आप आज बो रहे हैं, future में आप उनकी फ़सल ही काटेंगे।
आप अंजीर बोएंगें तो अंजीर की फ़सल ज़रूर मिलेगी।
आपके पास 'आज' है, 'अब' है और 'यहाँ' है।
आप 'आज अब यहाँ' जो कर रहे हैं, उससे कुछ बन रहा है।
आप 'आज अब यहाँ' ख़ुद को जैसा feel कर रहे हैं, future में आप वैसे ही बन जायेंगे।
इंशाअल्लाह
Quantum physics कहती है कि आपके देखने का असर energy पर पड़ता है।
जिस चीज़ को आप देख रहें हैं आप उसे जन्म दे रहे हैं।
आप energy को जानिए,
आप अपने मन को जानिए
अपने मन में डूबकर पा जा सुराग़ ए ज़िन्दगी
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन
अल्लामा इक़बाल रह0
Allahpathy क़ुरआन से इलाज करने के बदले माल लेने के बारे में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हुक्म और उनके सहाबा रजि़. का तरीक़ा
इमाम इब्ने क़य्यिम रहमतुल्लाहि अलैह लिखते हैं-
इमाम बुख़ारी रहमतुल्लाहि अलैह और इमाम मुस्लिम रहमतुल्लाहि अलैह ने सहीहैन में हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रजि़यल्लाहु अन्हु से रिवायत की है। उन्होंने बयान कियाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सहाबा की एक जमात एक सफ़र में निकल पड़ी। सफ़र करते करते अरब के एक क़बीले में उतरे और उनसे मेज़बानी क़ुबूल करने की दरख़्वास्त की। उन्होंने मेज़बानी क़ुबूल करने से इन्कार कर दिया। इतने में उनके सरदार को डंक लगा। उन्होंने हर मुमकिन तदबीर कर डाली मगर कोई तदबीर कारगर साबित न हुई। उस क़बीले के बाज़ लोगों ने कहा कि यह क़ाफि़ला जो तुम्हारे यहां आया है उनके पास चलो। शायद उनमें से किसी के पास कोई तदबीर हो।
चुनांचे वे सहाबा ए रसूल स. के पास आए और उनसे कहा-‘ऐ क़ाफि़ले के लोगो! हमारे सरदार को डंक लग गया और हर मुमकिन तदबीर हमने कर डाली मगर कुछ फ़ायदा न हुआ। क्या तुम में से किसी के पास इसका इलाज है?
उनमें से बाज़ ने कहा कि हाँ, अल्लाह की क़सम मैं झाड़ फूंक करता हूँ, मगर ज़रा सोचो कि हमने तुमसे मेहमानदारी करने की दरख़्वास्त की तो तुम लोगों ने हमारी इस दरख़्वास्त को ठुकरा दिया और हमारी मेज़बानी न की। मैं दम उस पर उसी वक़्त कर सकता हूँ, जब तुम उस पर कुछ उजरत मुक़र्रर करोगे।
चुनाँचे भेड़ों की एक तादाद पर मामला तय हो गया। उन्होंने उस पर ‘अल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन’ पढ़ते हुए दम करना शुरू किया। उसका असर यह हुआ कि वह ऐसा चंगा हो गया गोया कि उसे किसी बन्धन से रिहाई मिली हो और वह चलने फिरने लगा। उसे कोई तकलीफ़ न थी। फिर उसने कहा कि इन लोगों को उनकी तयशुदा पूरी पूरी उजरत दे दो। चुनाँचे उन्होंने उजरत दे दी।
उसमें बाज़ सहाबा ने कहा कि आपस में इसे बाँट लो। इस पर दम करने वाले शख़्स ने कहा कि जब तक हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास न पहुँच जाएं, उस वक़्त तक कुछ न करो और हम आपके हुक्म के मालूम हो जाने तक उससे तवक़्क़ुफ़ करेंगे। चुनाँचे सब लोग रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आए और उन्होंने पूरा वाक़या बयान किया।
यह सुनकर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि तुमने ठीक ही किया। अब इसे आपस में बाँट लो और इसमें मेरा भी एक हिस्सा लगाना।’
-तिब्बे नबवी पेज 218 व 219 उर्दू तर्जुमाः हकीम अज़ीज़ुर्रहमान आज़मी
उर्दू से हिन्दी अनुवादः डा. अनवर जमाल यूसुफ़ ज़ई
अल्लाह की मदद रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में भी माँगिए
कामयाबी का नतीजा बहुत जल्दी आता है। कभी कभी तो फ़ौरन ही नतीजा आ जाता है। यह सब आपके यक़ीन पर है। जैसा कि आपने सहाबा रज़ि. के वाक़ये में देखा है।
अलफ़ातिहा के ज़रिये आप हर तरह के मामलों में अल्लाह से मदद मांग सकते हैं। आप रोज़मर्रा के घरेलू मामलों में भी अल्लाह से मदद मांग सकते हैं।
हमारी वाईफ़ अक्सर इस शक्तिशाली दुआ के ज़रिये अपने मामलों में अल्लाह की मदद पाती रहती हैं। जब हमारे बेटे अब्दुल्लाह ख़ान दो साल के हुए तब वह प्रेग्नेंट थीं। वह अब्दुल्लाह का दूध छुड़ाना चाहती थीं लेकिन अब्दुल्लाह ख़ान किसी तरह भी माँ का दूध छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे।
हमारी वाईफ़ ने हमसे पूछा कि क्या करूँ?
हमने कहा कि अल्लाह से मदद माँगो।
उन्होंने रात का इस बरकत वाली दुआ के ज़रिये मदद माँगी कि अब्दुल्लाह ख़ान माँ का दूध छोड़ दें।
उन्होंने इस दुआ की इस आयत को बहुत ज़्यादा रिपीट किया-
‘इय्याका ना‘बुदु व इय्याका नस्तईन’
यानि हम आप ही की इबादत करते हैं और आप ही से मदद चाहते हैं।
सुबह को अल्लाह ने अपनी क़ुदरत का यह करिश्मा दिखाया कि अब्दुल्लाह ख़ान ने माँ का दूध छोड़ दिया।
जो काम नामुमकिन दिख रहा था। वह बहुत आसानी से हो गया।
अल्लाह का शुक्र है।
अल्लाह से मदद माँगने और पाने का बहुत आसान तरीक़ा
1. आप जो भी मुराद पाना चाहें, उसे किसी काग़ज़ पर लिखकर अपने पास रख लीजिए। इससे आपके मन में यह साफ़ हो जाएगा कि आप क्या चाहते हैं?
इसके बाद आप दुनिया की सबसे बड़ी दुआ अलफ़ातिहा 41 बार पढ़कर अल्लाह से मदद माँगिए।
आप किसी भी वक़्त इस दुआ को पढ़ सकते हैं। सबसे अच्छा वक़्त सुबह की अज़ान के आस पास का वक़्त है जो कि सूरज निकलने से डेढ़-दो घंटा पहले होता है। इस वक़्त दिल में सुकून होता है। कन्सन्ट्रेशन ज़्यादा होता है।
इस आयत को इसका मतलब समझकर यक़ीन के साथ चलते फिरते हुए भी ज़्यादा से ज़्यादा पढ़िए-‘इय्याका ना‘बुदु व इय्याका नस्तईन’
यानि हम आप ही की इबादत करते हैं और आप ही से मदद चाहते हैं।
अगर आपमें से कोई इस दुआ को पढ़ नहीं सकता तो वह मोबाईल में इन्टरनेट से क़ुरआन की यह दुआ डाउनलोड करके इयरफ़ोन के ज़रिए सुन ले।
कम से कम 41 बार सुने। इससे ज़्यादा सुने तो और ज़्यादा फ़ायदा होगा। नेगेटिव इनर्जी दूर होगी और पाॅज़िटिव इनर्जी बढ़ेगी। इससे आपकी मुराद ज़्यादा जल्दी पूरी होगी।
2. सिर्फ़ एक रब की ताक़त पर और उसकी रहमत पर पूरा यक़ीन रखें कि वह आपके साथ है और आपकी दुआ का जवाब हमेशा ‘हाँ’ में देता है। जिस रब ने आपको ज़मीनो आसमान दिया, परिवार और रिश्ते दिए, रूह और जिस्म दिए, बेशुमार नेमतें दीं, सबसे बड़ी दुआ दी। वह आपको आपके मन की मुराद ज़रूर देगा।आप सब्र के साथ अपना यक़ीन बनाए रखें। आपका यक़ीन ही वह ताक़त है जो अल्लाह की ग़ैबी मदद को अट्रैक्ट करता है। बहुत जल्दी आपको रास्ते खुलते हुए नज़र आएंगे। कभी कभी तो काम ही तैयार हो कर सामने आ जाता है। शक न करें कि कैसे होगा या कब होगा?
3. आप अपने काम के बारे में जो भी जायज़ कोशिश कर सकते हैं, ज़रूर करें और अगर कुछ नहीं कर सकते तो रास्ते खुलने का इन्तिज़ार करें।
कोई बात पूछनी हो तो आप हमें ईमेल कर सकते हैं, काॅल कर सकते हैं।
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