Featured Post

Allahpathy:THE BLESSING MONEY BAG THAT WOULD HELP EVERYONE TO BE RICH IN THE MONTH OF RAMADAN

By Hazrat Hakeem Mohammad Tariq Mahmood Chughtai Dear Readers! I Bring to you precious pearls and do not hide anything, you shou...

Tuesday, December 15, 2015

Allahpathy यक़ीनन आपका कल (Future) सुनहरा है

प्रश्नः अनवर साहब, आज जो विश्व में हो रहा है, उसका उपसंहार क्या होगा? आप एक क़ाबिल इंसान हैं, आप कल को कैसा पाते हैं?
हमारे ब्लाॅग के एक क़ाबिल पाठक भाई दशरथ दुबे जी ने यह सवाल हमसे पिछली ब्लाॅग पोस्ट पर किया है।
इसके जवाब में यह पोस्ट हाजि़र है।
उत्तरः जो कुछ विश्व में कल हुआ था, उससे आज के हालात बने और ये बहुत अच्छे हालात हैं, इनमें कुछ हालतें जीवन के खि़लाफ़ हैं लेकिन यही हालतें वास्तव मे जीवन को सपोर्ट करती हैं जैसे कि रात का अंधेरा दिन के उजाले के ठीक उलट दिखता है लेकिन रात का अंधेरा हमारे जीवन के लिए उतना ही ज़रूरी है, जितना कि दिन का उजाला।
तनाव, दंगे और जंगें, जो आज दुनिया में दिखाई दे रही हैं, ये सब शांति की शदीद ज़रूरत का एहसास करवा रही हैं।
यहां ‘डिमांड एंड सप्लाई’ का नियम काम कर रहा है। शांति की मांग का मतलब है कि शांति की सप्लाई यक़ीनी है। यह प्रकृति का नियम है। यह हर हाल में हो कर रहने वाली बात है।
आप देखेंगे कि आज विश्व में पहले से कहीं ज़्यादा संस्थाएं विश्व शांति के लिए काम कर रही हैं।
उन सबकी नीयत और मेहनत हमें यक़ीन दिलाती है कि हमारा कल सुरक्षित है और वह सुनहरा भी है।
हक़ीक़त यह है कि हमें दुनिया ठीक नज़र आएगी, अगर हम उसे ठीक नज़रिए से देखना चाहें।
दुनिया की घटनाओं से हमारा विश्वास हरगिज़ प्रभावित न होना चाहिए बल्कि हमें उससे उसकी ज़रूरत को समझकर उसके साॅल्यूशन तक पहुंचना चाहिए और फिर पूरे विश्वास के साथ उस साॅल्यूशन को दुनिया में वुजूद में लाने की कोशिश करनी चाहिए। 
हमारी आज की नीयतें और अमल ही हमारे कल को तय करती हैं।
...और हरेक व्यक्ति को यह देखना चाहिए कि उसने कल के लिए क्या भेजा है?
पवित्र क़ुरआन 59:18

इस पोस्टत पर  कॉमेंट:
dubey
December 15,2015 at 07:53 AM IST
काश !, ऐसा ही हो जैसा आपने कहा.......और हम छोटे लोगों की बात को ऐसा तवज्जो देने के लिये ,आपका आभार...........
जवाब दें

Arun Choudhary
December 15,2015 at 06:04 AM IST
अच्छा लिखे है
जवाब दें

Jawahar Lal Singh
December 15,2015 at 05:15 AM IST
उम्मीद पर दुनिया कायम है - किसी अच्छे दर्शनिक ने ही कहा होगा. आपके आशावादी विचार से प्रेरित ब्लॉग का स्वागत करता हूँ.
जवाब दें
(Jawahar Lal Singh को जवाब )- Anwer Jamal
December 15,2015 at 11:10 AM IST
जवाहर भाई! यह कोरा आशावाद नहीं है. जो कुछ हमने कहा है. वह हक़ीक़त है. आप अपने घर से अपने खेत या अपने कार्यालय तक जहाँ तक जाना चाहें, जाएं. आपको वहां तक शान्ति और व्यवस्था मिलेगी.
यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है कि आपके हर तरफ शान्ति है.
...
लोग यह हक़ीक़त, यह सत्य भूल जाते हैं, जब वे मीडिया द्वारा प्रायोजित खबरें देखते और पढ़ते हैं.
उनसे एक भ्रम उत्पन्न होता है, जो नज़र पर पर्दा डाल देता है.
...
शान्ति आज का सत्य है और आज ही कल का नतीजा बनकर आयेगा तो कल भी शान्ति ही है.
...
हरेक घर में मां अपने लाडलों को चूम रही है.
इस दिव्य प्रेम से इतनी ऊर्जा पैदा हो रही है, जो हरेक जंग और तनाव की नकारात्मकता को ऐसे मिटा देगा जैसे उडती धूल पर बारिश पड़ती है तो वह ज़मीन पर वापस आ जाती है.
धन्यवाद.
जवाब दें

Realize
December 14,2015 at 01:31 PM IST
Hats off to you sir for this valuable message.
From where you grab these knowledge.
Thanks.
जवाब दें
(Realize को जवाब )- Anwer Jamal
December 14,2015 at 05:03 PM IST
राजेश भाई! ज्ञान हरेक के पास है, ज़रूरत है निष्पक्ष होकर उस पर ध्यान देने की. ज्ञान सबकी आत्मा में 'इनबिल्ट' है.
आम तौर से लोग लॉजिक पर जीते हैं और अंदर से जो प्रेरणा आती है, उसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं.
इंसान को चाहिए कि वह अपने आप को ठीक से जाने और फिर अपनी तमाम काबिलियत का पूरा इस्तेमाल करे.
प्रेम में जीने को अपना स्वभाव बना लेने से आत्मा के रहस्य खुद ही खुलते चले जाते हैं.
फिर भौतिक वस्तुएं भी खुद ही खिंची चली आती हैं, जिनके लिए दूसरे खून बहा रहे होते हैं या बेईमानी कर रहे होते हैं.
विश्वास (ईमान) से आपको वह सब मिलता है जो आपको अपने वुजूद के क़ायम रखने और तरक़्क़ी करने के लिए ज़रूरी है.
यह नेचर का लॉ है.
....
कॉमेंट के लिए आपका शुक्रिया.

Source: 

यक़ीनन आपका कल सुनहरा है

Monday, December 14, 2015

Allahpathy अपनी मुक्ति, अपना आनंद अपने हाथ। जानिए कैसे?

आम लोग आज डरे हुए हैं, वे आतंकित हैं।
उन्हें लगता है कि वे ख़तरे में हैं। चोर, डाकू, अपहरणकर्ता, स्मग्लर, नशेड़ी और आतंकवादी हर तरफ़ घूम रहे हैं। उनकी जान, माल और उनकी औलाद महफ़ूज़ नहीं है। अफ़सर रिश्वतख़ोर हो गए हैं। उन्हें नेताओं की छत्रछाया मिली हुई है, जिन्हें जनता ख़ुद चुनती है। जनता बेचारी है, जाए तो कहां जाए, वह करे तो क्या करे?
आम लोगों को कोई बताता है कि हमारे नेता पूंजीपतियों से मिले हुए हैं, जो जनता का ख़ून चूस रहे हैं और मिली-भगत करके मोटी मलाई अंदर कर रहे हैं। हर तरफ़ बेईमानी और लूटमर मची हुई है। जो जितना बड़ा बेईमान है, वह उतने ही बड़े पद पर पहुंच रहा है।
....
आज यह अक्सर आम लोगों की मानसिकता है, जो एक दिन में नहीं बनी है बल्कि ‘सिमसिम‘ यानि तिल तिल करके बनी है। यह ख़ुद नहीं बनी है बल्कि इसे बनाया गया है।
यह नकारात्मक मानसिकता बहुत घातक है। यह घातक मानसिकता उन सूचनाओं से बनाई गई है, जो कि जनता के सामने टी.वी., रेडियो, इंटरनेट और अख़बारों के ज़रिये परोसी जाती है।
हमारा माइंड इस सारे डाटा को लेकर प्राॅसेस करता है और फिर नतीजा (conviction) निकालता है। केवल नकारात्मक डाटा पर विचार करने के बाद फ़ैसला हमेशा नकारात्मक ही निकलेगा। यह तय है।
उसी डाटा में थोड़े सी पाॅजि़टिव ख़बरें भी डाल दी जाएं तो आखि़री फ़ैसला (conviction) बदल जाएगा।
पाॅजि़टिव डाटा को ज़्यादा कर दिया जाए, तो आखि़री फ़ैसला और ज़्यादा पाॅजि़टिव हो जाएगा।
यह सब डाटा की अदला बदली का कमाल है जबकि रिएलिटी यानि हक़ीक़त अपनी जगह वही रहती है, जो कि है।
आम जनता हक़ीक़त नहीं जानती। वह उस डाटा को जानती है, जो कि उसे दिया जाता है। आम लोगों को यह पता ही नहीं चलता कि उनके माइंड से खेला जा रहा है। उन्हें वही सोचने के लिए मजबूर किया जा रहा है जो कि ‘एलीट क्लास’ उनसे चाहती है कि आम जनता यह सोचे और यह निर्णय ले।
आम जनता को ‘एक ख़ास फ़ैसला’ लेने के लिए मजबूर किया जाता है और वह लेती रहती है। यह मानसिक ग़ुलामी (psychic enslavement) है।
हमारे मीडिया की अक्सरियत ‘नकारात्मकता’ पर है।
पूरे दिल्ली में लाखों फैमिली रहती हैं। सब घरों में बहू-बेटियां महफ़ूज़ हैं। उनकी हिफ़ाज़त मीडिया के लिए ख़बर नहीं बनती। दस-बीस जगहों पर रेप हो गया तो मीडिया के लोग दौड़कर जाएंगे और इसे छापकर हर तरफ़ फैला देंगे।
यही हाल चोरी, लूट, और डकैती का है। सबकी दुकानें और सबका माल दिन रात महफ़ूज़ है। दिल्ली में हर तरफ़ पुलिस के सैकड़ों अधिकारी और हज़ारों सिपाही दिन-रात, सर्दी-गर्मी और बारिश में अपनी ड्यूटी पर लगे हुए हैं। यह हिफ़ाज़त और यह ड्यूटी देना मीडिया में जगह नहीं पाता लेकिन चोरी, लूट और डकैती की एक घटना को मीडिया सुखिऱ्यों में जगह देती है।
सरकारी कर्मचारी जो काम करते हैं, उसे पूरा फ़ोकस और सम्मान नहीं मिलता लेकिन उनकी बेईमानी और निकम्मेपन को हाईलाईट किया जाता है।
हमारे नेता, चाहे वे किसी भी पार्टी के हों, लोगों की फ़रियाद भी सुनते हैं और अपने अपने इलाक़ों में विकास के काम भी करते हैं। उन्हें भी देखा जाना चाहिए।
आतंकवाद की गिनी चुनी घटनाएं सिर्फ़ चन्द जगहों पर होती हैं। उनके अलावा हर तरफ़ हर समय शान्ति ही रहती है। हर तरफ़ लोग एक दूसरे से प्रेम और हमदर्दी का बर्ताव कर रहे हैं। एक दूसरे की ज़रूरत में काम आ रहे हैं। ज़रूरत पड़ने पर अपना ख़ून और अपने अंग तक दान कर रहे हैं। भोजन-कपड़ा और रूपया ज़रूरतमंदों को दान करना तो हरेक आदमी की आदत है। रोज़मर्रा के जीवन का ढर्रा यही है। इस महान अचीवमेंट को मीडिया में जगह नहीं मिलती लेकिन आतंकवाद की घटनाओं को प्रमुखता दी जाती है।
मीडिया की डिज़ायनिंग जिसने की है, उसने ऐसे ही की है। ऐसा उसने अपने मक़सद को पूरा करने के लिए किया है लेकिन इससे आम जनता का मक़सद पूरा नहीं होता। आम जनता का भला मीडिया की इस ‘नकारात्मकता’ से नहीं होता बल्कि इससे उसका बुरा ही होता है। इससे लोगों के दिलों में डर और तनाव पैदा होता है। बार बार बरसों यही सब रिपीट होने से यह उसके मन में जम जाता है।
डर और तनाव 95 प्रतिशत बीमारियों की जड़ है।
हक़ीक़त यही है कि बीमारियों की असली वजह सिर्फ़ एक ‘भ्रम’ (माया, illusion, वसवसे, बातिल ग़र्र) है, जिसे रिपीट सजेशन के ज़रिए लोगों के मन का विश्वास बना दिया गया है।
‘विश्वास’ का असर यह होता है कि हरेक आदमी को वही अनुभव होने लगाता है, जैसा उसका विश्वास होता है।
मिसालः
अगर चार-पांच लोग एक आदमी से अलग अलग जगहों पर पूछ लें कि क्या बात है भाई, आप कुछ बीमार से दिखाई दे रहे हैं?
तो उसके मन में आएगा कि इतने सारे लोग ग़लत नहीं कह सकते। उसे ज़रूर कुछ न कुछ हो गया है। फिर वह डाॅक्टर के पास जाएगा। डाॅक्टर उसके ब्लड, लिवर, किडनी, बीपी, शुगर, कैल्शियम और वेट की जांच कराएगा। उन सबमें ‘कुछ’ गड़बड़ मिल ही जाएगा। बस जो पहले एक शक था, अब वह उसका यक़ीन बन जाएगा। अब वह एक मरीज़ की तरह महसूस करेगा और एक मरीज़ की तरह ही दवा परहेज़ सब करेगा।
यह सब एक इल्यूज़न है। इसे आप जब चाहें क्रिएट कर सकते हैं।
...और आप जब चाहें तब इसे डिलीट भी कर सकते हैं।
ऐसे ही आप अक्सर बीमारियों को बिना किसी दवा के डिलीट कर सकते हैं।
...क्योंकि हक़ीक़त यह है कि आप सब पूरी तरह स्वस्थ हैं सिवाय उनके जिनमें कोई शारीरिक विकृति है।
साॅल्यूशनः
नकारात्मक मीडिया की ट्राँस से भी आप जब चाहे तब निकल सकते हैं।
1. इसके लिए आप सबसे पहले इनसे सूचनाएं यानि डाटा लेना बंद कर दें और जो पाॅजि़टिव एट्टीट्यूड का टी.वी. चैनल और अख़बार हो, उसे देखें-पढ़ें। आपको कोई ऐसा न मिले तो आप इनसे बचें।
2. जिस चीज़ के बारे में आपके मन में डर समा गया हो, उसे ख़ुद अपने माध्यमों से जानने की कोशिश करें। इससे आपको नए डाटा मिलेंगे और उस चीज़ की ज़्यादा सही तस्वीर आप देख पाएंगे।
3. नई इमेज पुरानी इमेज को मिटा देगी और आप पुरानी इमेज से उपजे डर और तनाव से भी मुक्त हो जाएंगे।
4. आप नेचर को देखिए। आप रोज़ाना निकलते हुए सूरज, खिलते हुए गुलाब, खिलती हुई धूप, बरसती हुई बारिश, बहती नदियों, उगते पौधों को, फलों और सब्जि़यों को देखिए।
आप देखेंगे कि ज़मीन से आसमान तक, हर चीज़ लाईफ़ को सपोर्ट कर रही है।
हर चीज़ आपको सपोर्ट कर रही है।
आप एक ऐसी नेचर में हैं, जो आपको सपोर्ट कर रही है।
आखि़री फ़ैसला अब यह आएगा कि मैं पूरी तरह सही जगह पर हूं और मैं सेफ़ हूँ।
अब आप एक सही बात पर विश्वास कर रहे हैं।
अब आप भ्रम (माया, illusion) से मुक्त हैं। आपको मुक्ति मिल चुकी है। अब आप ‘सत्य के ज्ञानी’ हैं।
अब आप दूसरे अज्ञानियों को भी सत्य का ज्ञान देकर उन्हें मिथ्या माया के अंधकार से, उससे उपजे डर और तनाव से मुक्त होने में मदद कर सकते हैं।
आपका विश्वास आपको आनंद देगा, जो हर पल बढ़ता ही जाएगा।
अब आप अस्तित्व को उपलब्ध हो चुके हैं।
मुबारक हो!
आपके जन्म का उद्देश्य पूरा हुआ। आपकी यात्रा सफल हुई।
अब आपके जीवन में आपके विश्वास के अनुरूप आनंद देने वाले हालात आपको अनुभव होंगे।
नज़रिया बदलते ही अब आपके हालात ख़ुद ब ख़ुद बदलते चले जाएंगे।
इस परम सत्य को ज्ञानियों ने हर काल में हर भाषा में बताया है। आज क्वांटम फि़जि़क्स और सायकोलाॅजी भी यही कह रही है।

Friday, December 4, 2015

समाज में नफ़रत भड़काने की बीमारी का इलाज क्या है?

नफ़रत के शब्दों से नफ़रत फैलती है और प्रेम के शब्दों से प्रेम।
नफ़रत आग लगाती है जबकि प्रेम नफ़रत की आग को बुझाता है।
नफ़रत दिलों को तोड़ती है जबकि प्रेम दिलों को जोड़ता है। फिर जैसी हालत दिल की होती है, वही समाज में अपना असर ज़ाहिर करती है।
 
जिस समाज के सदस्य प्रेम की वाणी बोलते हैं, वह समाज जुड़ा रहता है। यही सूफ़ी-संतों का पैग़ाम हम सबके नाम सदा से रहा है। इसी में सबका हित है।
...लेकिन सूफ़ी-संतों की बात सब नहीं मानते। ये नफ़रत की बातें करते हैं और समाज में नफ़रत फैलाते हैं। जनता को भ्रम में डालने के लिए ये दीन-धर्म की रक्षा और प्रचार की आड़ लेते हैं।
इस विचारधारा के संगठनों के मुखिया चाहते हैं कि वे जनता का भला कुछ भी न करें लेकिन फिर भी जनता उन्हें सत्ता सौंप दे क्योंकि वे अमुक जाति या वंश के हैं या प्राचीन काल में उनकी बड़ी तूती बोलती थी।  
अपने ग़लत मक़सद के लिए वे लोगों को भड़काते और आपस में लड़ाते हैं। ये सब समाज में भयानक बीमारियाँ फैलाते हैं।
दीन से फ़लाह होती है यानि धर्म से कल्याण होता है।
फ़लाह यानि कल्याण से ही इस बात की पहचान होती है कि यह बात धर्म की है या अधर्म की?
जो लोग समाज में नफ़रत की आग फैला रहे हैं। वे दीनी-धार्मिक लोग नहीं हैं। इनकी बातों से कभी किसी का कल्याण नहीं हुआ। ये केवल भड़काऊ बातें करते हैं, जिन्हें कहने से इनका दीन-धर्म रोकता है। इनकी बातों से ही जनता इन्हें पहचान लेती है।
जनता लगातार जागरूक होती जा रही है। उसकी चेतना का अपहरण करके उसे अपना दास बनाने की कोशिशें अब सफल नहीं होतीं।
फिर भी अभी कुछ नादान और जज़्बाती लोग हैं, जिन्हें अपने और अपने समाज के हित की समझ नहीं है। बस यही लोग इन अपहरणकर्ताओं के मानसिक दास रह गए हैं। नुक़्सान उठाकर ये भी समय के साथ समझ ही जाएंगे कि प्रेम से ही कल्याण संभव है।
अब धर्म की समझ सबको आती जा रही है। सब कल्याण चाहते हैं। इसीलिए सब प्रेम का व्यवहार करते हैं। सब मिलजुल कर रहते हैं। सबके कल्याण का स्तर पहले के मुक़ाबले लगातार बढ़ता जा रहा है। यह ख़ुशी की बात है।

Tuesday, December 1, 2015

Allahpathy बीमारियों और हादसों की असल वजह कहाँ छिपी है?,देखें Tibbe Nabvi

हमारा मक़सद आपका कल्याण, आपकी भलाई है। इसीलिए हम लिखते हैं ताकि हम आपको और आपके परिवार को एक सेहतमंद और ख़ुशहाल जि़न्दगी का तोहफ़ा दें।
इसके लिए आपको जानना होगा कि
डर से तनाव उपजता है और तनाव से बीमारी।

सैकड़ों साइंटिस्ट्स ने सालों-साल रिसर्च करने के बाद बताया है कि 95 प्रतिशत बीमारियों का कारण तनाव है। तनाव के दौरान ग्रंथियों से स्ट्रेस हाॅरमोन्स रिसते हैं, जो ख़ून में मिलकर बाॅडी सेल्स तक जाते हैं और उनके फंक्शन को बिगाड़ देते हैं।
आज स्कूल के सिलेबस से लेकर जाॅब के टारगेट तक बहुत से तत्व तनाव पैदा कर रहे हैं। विश्व के लोग आज तनाव में हैं। भारत के लोग भी तनाव में जी रहे हैं।
टी.वी. पर न्यूज़ और अख़बार सब रेप, मर्डर, डकैती, दंगों और जंगों की ख़बरें दिखा रहे हैं। ये ख़बरें हमारे मन में डर पैदा करती हैं। कल्पना में दोहराने पर ये ख़बरें हमारे अवचेतन मन में नक़्श हो जाती हैं। इसे सबकाॅन्शिएस ब्लूप्रिन्ट (Subconscious Blueprint/Paradigm) कहा जाता है।
यही ब्लूप्रिन्ट आपके व्यक्तित्व और आपकी सेहत का निर्धारण करता है। जब तक इस ब्लूप्रिन्ट में डर नक़्श रहेगा, तब तक आपको एक या दूसरी बीमारी या अचानक हादसे पेश आते रहेंगे।
सेहत और ख़ुशहाली के लिए आपको अपने अवचेतन मन से डर का भाव त्यागना होगा।
इसके लिए आपको प्रकृति की गोद में बैठकर ईश्वर-अल्लाह की अनंत कृपाओं का निरीक्षण करना होगा कि कैसे वह हर पल आपको ज़मीन व आसमान से नफ़ा देने वाली चीज़ें दे रहा है और नुक़्सान से सलामत भी रखे हुए है। वही दयालु रब हर पल आपके साथ है। उस रब का एक नाम ‘अस-सलाम’ भी है।
आप ख़ुद को सलामती (शांति और सुरक्षा) में देखें। इस आगाही से, अवेयरनेस से आपके दिल में सलामती का भाव जम जाएगा। यह डर के भाव को रिप्लेस कर देगा।
डर और ग़म के विचार सलामती के खि़लाफ़ हैं। ऐसे विपरीत विचारों को दिल में जमने न दें। अपने विचारों के प्रति सजग रहें। अच्छे वचन बोलने की आदत बनाएं।
ईश्वर-अल्लाह को अपने साथ मानने वाले बंदे जब भी मिलते हैं तो वे आपस में एक दूसरे से कहते हैं-‘अस-सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु’
यानि अल्लाह की तरफ़ से आप पर सलामती, रहमत और बरकत हो।
अब आप हर पल ‘सलामती की चेतना’ में जिएंगे। अब आप निर्भय होकर जिएंगे।
जब भी आप अपने प्यारों से या किसी से भी मिलें तो उसे सलामती की दुआ-आशीष दें। आपके शब्द इनर्जी हैं। यही इनर्जी आपको हील करती है।
क़ुरआन के शब्द ज़बर्दस्त इनर्जी का भंडार हैं। जिनसे आप हरेक बीमारी को दूर कर सकते हैं। क़ुरआन से पहले भी सत्पुरूषों ने मन के उपचार से शरीर के रोगों और हादसों को दूर किया है। 
आप हरेक धर्म-मत के ग्रंथों में इलाज का यह तरीक़ा देख सकते हैं। जिस बीमारी को अंग्रेज़ी डाॅक्टर या वैद्य-हकीम लाइलाज कह दें, उसका इलाज भी आप इस तरीक़े की सही और पूरी जानकारी करके कर सकते हैं, बहुत आसानी से।
आपका मन निर्मल हो जाए, धर्म यही कहता है। इसके बाद आपको किसी ज़हरीली दवा की ज़रूरत कम ही रह जाएगी, शायद न भी पड़े। अब आपका आहार ही आपकी दवा बन जाएगा। यह बाॅडी बहुत इंटेलीजेेन्ट है। यह अपने मेन्टिनेंस के लिए तमाम ज़रूरी चीज़ों को आहार से ख़ुद ही लेकर कन्वर्ट कर लेती है।
परहेज़ः
1. डराने वाली ख़बरों और फि़ल्मों से बचें।
2. अपने बच्चों को भूतिया और हिंसक वीडियो गेम्स से बचाएं।
हमने तो अपना टी.वी. और उर्दू-हिन्दी अख़बार बंद कर दिया है। तब से यहां सब शांति है और बहुत ज़्यादा शांति है।
अहम सवालः
यह सवाल आपको पूछना है ख़ुद से कि
‘‘क्या आप टी.वी., अख़बार और इंटरनेट पर डरावनी और भड़काऊ बातें देखे बिना गुज़ारा कर सकते हैं?’’