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Allahpathy:THE BLESSING MONEY BAG THAT WOULD HELP EVERYONE TO BE RICH IN THE MONTH OF RAMADAN

By Hazrat Hakeem Mohammad Tariq Mahmood Chughtai Dear Readers! I Bring to you precious pearls and do not hide anything, you shou...

Tuesday, May 7, 2024

न्याय से है जीवन की सार्थकता

मेरी अपनी ज़िंदगी में इस वक़्त अपना कोई दुख नहीं है,

अल्हमदुलिल्लाह।

लेकिन दुनिया में मासूम लोगों पर होते/हो चुके ज़ुल्म को देखता हूँ तो दुखी हो जाता हूँ।

फिर मैं #वैज्ञानिक नज़रिए से सोचता हूँ तो इनके पीछे लालच और ताक़त का ज़ोर दिखता है और

विज्ञान कहीं भी इंसाफ़ का वादा नहीं करता।

ताक़तवर को सज़ा दिला सके,

इतनी ताक़त यूएन में भी नहीं है।

अमरीका और उसके गंठबंधन वाले देशों ने वियतनाम से लेकर इराक़ तक कितने करोड़ लोग मारे, 

उनकी कोई सज़ा इन देशों के लीडरों को नहीं मिली।

इन देशों के दार्शनिकों ने यही दर्शन आम कर दिया है कि

जो चाहो कर लो,

ताक़तवर को कोई पकड़ने वाला नहीं है।

अगर ऐसा होता तो ज़ुल्म के सताए हुए आदमियों के लिए यह दुनिया निरर्थक होती।


#lawofpolarity 

#रब ने अपने कलाम में इंसाफ़ के दिन का वादा किया है

और यह बात समझ में आती है क्योंकि यह दुनिया polarity के क़ानून पर चलती है

यानी

दुख है तो सुख है।

रात है तो दिन है।

इसी तरह ज़ुल्म है तो इंसाफ़ भी होगा।

इंसाफ़ आज नहीं तो कल होगा लेकिन इंसाफ़ ज़रूर होगा।

#इंसाफ़ के दिन का यक़ीन मज़लूम के लिए उसकी ज़िन्दगी को एक अर्थ देता है।

जो आज ज़ुल्म कर रहे हैं कल इंसाफ़ के दिन, वे चींटियों की तरह मज़लूमों के पैरों तले कुचले जा रहे होंगे।

यह निश्चित है।

सो ऐसे ज़ालिम डरें और दूसरों पर उतना ही ज़ुल्म करें,

जितना इंसाफ़ के दिन ख़ुद झेल सकें।

#आत्मनिर्भरता_कोच की #LifeHealing

Saturday, September 30, 2023

इस्मे आज़म का ज़िक्र, अहले बैत को ईसाले सवाब और छोटी पूंजी से बिज़नेस पर एक विशेष लेख

सावधान! इस कहानी में एक जवान लड़की, जवान लड़के और उनकी समस्या का ज़िक्र प्रसंगवश किया जाएगा।

इख़्लास और यक़ीन।
ये दोनों दुआ के रुक्न (pillars) हैं कि अगर ये हैं तो एक दुआ, दुआ है और अगर इनमें से एक भी नहीं है तो दुआ हक़ीक़त में दुआ का वुजूद हासिल नहीं कर पाई
जैसे कई भ्रूण बच्चे का रूप लेकर दुनिया में जन्म नहीं ले पाते। वे बच्चा बनने से पहले ख़त्म हो जाते हैं। ऐसे भ्रूण अपने मां-बाप को सहारा नहीं दे पाते। वे पहले ही निपट गए।

ऐसे ही अधिकतर दुआएं पहले ही निपट जाती हैं क्योंकि वे दुआ बन ही नहीं पाईं। इसीलिए वे सहारा और मदद नहीं दे पातीं। रब से मदद पाने का एक बड़ा ज़रिया दुआ है और दूसरा उसका आज्ञापालन है।
दुआ हुई नहीं और आज्ञापालन किया नहीं।

तो आदमी ग़रीब बन गया या घायल हो गया या कोई बदमाश और मुक़द्दमा गले पड़ गया तो अब उस मुसीबत से कैसे निकले?
मुसीबत और #ग़रीबी देखकर दोस्त और रिश्तेदार पहले भाग जाते हैं।

मिसाल के तौर पर एक लड़के ने पढ़ा और उसे नौकरी नहीं मिली। उसने चूड़ी और आर्टिफ़िशियल ज्वैलरी की या छोटे बच्चों के सूट का काम अपने घर के बाहर टेबल डालकर शुरू कर दिया और उसका काम चल पड़ा क्योंकि औरतों की ज़रूरत का काम चल ही पड़ता है
हर गली में औरतें चलती हैं और उन्हें ज़्यादा चीज़ें चाहिएं और सस्ते दाम पर चाहिएं। महंगा भी वही लेती हैं लेकिन वे उसे आधे रेट पर लेती हैं। इसीलिए दुकानदार पहले ही 5 गुनी क़ीमत का स्टिकर चिपका देता है।

यह गेम औरतें दुकानदार से और दुकानदार औरतों से सदियों से खेलते आ रहे हैं।

एक खेल लड़कियों की माएँ भी सदियों से खेलती आ रही हैं और वह यह है कि अगर किसी नौजवान का काम चल पड़ा और उसकी बेटी उससे ख़रीदारी करने लगी और वह लड़का उसे तोहफ़े देने लगा तो उस लड़की की माँ अन्जान बन जाती है और कुछ माँएं अपनी लड़कियों को पहली बार ख़ुद उस दुकान तक ले जाती हैं, जो चल रही होती है और युवा दुकानदार किसी को फाँसने के चक्कर में होता है और वह सफलतापूर्वक एक दिन एक लड़की को फाँस लेता है और ख़ुश होता है कि मैंने फाँस लिया।
जबकि हक़ीक़त में ख़ुद फँस जाता है।

वह लड़की की माँ को आँटी बोलता है और आँटी और आँटी की बेटी उसके तन-धन को चूस लेती हैं और कहीं काटकर फिंकवा देती हैं लेकिन अगर वह कटने से बच गया तो भी उसका बिज़नेस चौपट हो जाता है।
इस्लाम में इस रिलेशनशिप को ज़िना और #संस्कृत में व्याभिचार कहते हैं।
इसे करने के बाद आदमी अचार बेचने के लायक़ तक नहीं बचता।

परमेश्वर की आज्ञा है कि व्याभिचार न करो।
और यह आज्ञा हर धर्म में है।
यही आज्ञा सनातन धर्म में है।

नबी मूसा को परमेश्वर ने पहाड़ पर पत्थर पर 10 नियम खुदवा कर दिए तो उनमें भी था कि व्याभिचार मत करो।
ईसा मसीह आए तो उन्होंने कहा कि मैं मूसा की व्यवस्था का पालन कराने और उसे पूर्ण कराने आया हूँ।
यानी पहले के नियम ज्यों के त्यों रहेंगे कि व्याभिचार तो करना ही नहीं है लेकिन अब यह और करना होगा कि अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम कर। दूसरों से जैसा व्यवहार अपने लिए चाहते हो, वैसा व्यवहार दूसरों से ख़ुद करो।

लोग इसमें फ़ेल रहे।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी व्याभिचार से रोका और परमेश्वर ने इस्लाम को दीने क़य्यिम कहा।
इस्लाम का अर्थ परमेश्वर की आज्ञा का पालन है और 'दीने क़य्यिम' का अर्थ हिंदी-स़स्कृत में #सनातन_धर्म है।

मुझे तो सारे धर्म ही मूल में एक लगते हैं।

और सब लोगों के अंदर एक ही आत्मा दिखती है।

बाइबिल में लिखा है कि शरीर आत्मा का विरोध‌ करता है।
दुकान पर युवा बैठा है और युवती आ गई तो दोनों के शरीर वह काम करने का विचार करेंगे, जिससे हर धर्म ने रोका है या कहें कि हर धर्म के एक ही परमेश्वर ने रोका है।

अब युवक युवती को ले भागा तो उसने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी। सो उसे आज्ञापालन से जो लाभ मिलते, वे न मिलेंगे। लड़की की माँ उसके बाप को साथ लेकर थाने में रपट लिखा देगी और पुलिस उसके, बाप, भाई और दोस्तों को सम्मानपूर्वक पूछताछ के लिए थाने ले आएगी।

अब दुआ की ज़रूरत पड़ेगी।
लड़का #नास्तिक हुआ तो भी इस समय उसकी सोई हुई #आस्था जाग उठेगी क्योंकि विज्ञान इस समय मदद न देगा।
इस संकट में उसे ऊपर वाला ही #Arrahman दिखेगा।
#अर्रहमान  यानी बहुत ज़्यादा रहम वाला। यह परमेश्वर का अरबी में एक नाम है। जिसे पढ़ने से हर मुसीबत में हरेक धर्म के आदमी को मदद मिलती है।

अब युवक दुआ करेगा और दुआ में एक या दोनों ही #rukn ग़ायब होंगे तो उसे #दुआ से भी मदद न मिलेगी और सैलून वाला उसकी मदद न करेगा,
जो उसके बाल कलर करता था या चारों तरफ़ से छोटे करके बीच में बाल बड़े और खड़े करके छोड़ देता था।

अब उसके बदन के सारे ही बाल मारे डर के खड़े हो जाएंगे।
वह सोचेगा कि मेरी दुआ क्यों क़ुबूल नहीं हो रही है?

क्यों भाई, क्या तूने #surahmuzzammil की ज़कात दे रखी है, जो तेरी दुआ क़ुबूल ज़रूर होनी चाहिए।

ख़ैर फिर भी वकील उसकी मदद करेगा।
अलवकील भी परमेश्वर का अरबी में एक नाम है।
अब भी परमेश्वर का एक नाम ही काम आ रहा है। उसका बंदा काम आ रहा है तो वही परमेश्वर काम आ रहा है।

अलवकील की न्यूमेरिकल वैल्यू 66 है और अल्लाह नाम की न्यूमेरिकल वैल्यू भी 66 है।
हिलाल नाम की अरेबिक में न्यूमेरिकल वैल्यू भी 66 है।
हिलाल शुरू की तारीख़ के पतले से चांद को कहते हैं।
अब नौजवान पहली तारीख़ को आकाश में चाँद नहीं देखते लेकिन वे शिवजी का चित्र देखेंगे तो उनके सिर पर जो पतला सा चांद नज़र आता है, उस दशा के चांद को अरबी में हिलाल कहते हैं और हिलाल के अक्षरों की जगह बदल दो, इन्हीं अक्षरों से अरबी में अल्लाह लिखा जा सकता है। शिव जी के त्रिशूल को देखोगे तो वह भी आपको अरबी के अल्लाह नाम जैसा दिखेगा।

इस तरह पतला सा चांद हमें परमेश्वर/अल्लाह तक पहुंचा देता है। हमें परमेश्वर तक जाना है या नहीं? यह हमारा मेंटल एटीट्यूड तय करता है।

अल्लाह ने सूरह यासीन में बताया है कि चांद अंत में भी पुरानी खजूर की शाख़ की तरह पतला सा हो जाता है। जिससे चाँद के महीने की 29 तारीख़ सामने आती है। यह तारीख़ रमज़ान के महीने में आए तो यह रात शबे क़द्र हो सकती है वर्ना माह के अंत की तारीख़ तो है ही और क़ारी तैयब साहब ने बताया है कि किसी भी काम के शुरू और अंत के समय में भी दुआ क़ुबूल होती है।

29 के अदद को पलट दें तो 92 बनते हैं और अरबी में 92 की गिनती मुहम्मद नाम की न्यूमेरिकल वैल्यू है। उनकी हर दुआ क़ुबूल है क्योंकि उनकी दुआओं में ज़ाहिरी इस्मे आज़म 'अल्लाहू' है और पोशीदा इस्मे आज़म 'हू' भी है। जोकि अल्लाहू नाम में ही पोशीदा है।

परमेश्वर को 'हू' नाम से विशेष लगाव है।
#बाइबिल में है कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम का नाम पहले #अबराम था और उनकी पत्नी का नाम सारा।

परमेश्वर ने उनके नामों में 'हा' अक्षर जोड़ दिया और अबराम का नाम अब्राहम और सारा का नाम साराह कर दिया। इससे नाम का अर्थ ही बदल गया। उनका नाम आज पूरी दुनिया के हर बड़े धर्म में है।
परमेश्वर ने तौरात में मूसा अलैहिस्सलाम को अपना नाम #याहू बताया था।
#हिब्रू भाषा में इसे लिखें तो इस में 'हा' अक्षर 2 बार आता है। जिसे इंग्लिश में H अक्षर से ज़ाहिर करते और एच अक्षर का आकार हिब्रू में H की ध्वनि देने वाले अक्षर ח के क़रीब है। इस हिब्रू अक्षर को विंडो का रूप माना जाता है जैसा कि आप अंग्रेज़ी के H अक्षर को भी एक खिड़की के आकार का ही देख सकते हैं।
#Hebrew में याहू या याहुवाह इस तरह लिखते हैं:

יהוה
इसमें दो बार 'ह' अक्षर आता है। जो 2 खिड़कियों को दिखाता है। ये 2 खिड़कियाँ 2 आँखों का सिम्बल हैं और जब अरबी में हुवा लिखते हैं तो ऐसे लिखते हैं:
ھو
इसमें 'ह' अक्षर की पहचान ही 2 आँखें हैं।
ये 2 आँखें बहुत महत्वपूर्ण हैं। आँखें शरीर में खिड़कियां हैं। इनसे आप बाहरी जगत को देख सकते हैं।
इससे 'हुवा' नाम देखा जा सकता है और आँखें भी 2 टाइप की हैं।
एक बाहर की आँख और दूसरे दिल की आँख।

बहुत लोग बाहर की आँख से देखते हैं लेकिन उनके दिल अंधे हैं। वे दिल से नहीं देख पाते। अगर दिल पाक हो तो दिल से रब को देखा जा सकता है।
बाइबिल में #sacredheart का चर्चा है।

हदीस में आता है कि दिल मुहब्बत में भी अंधा हो जाता है। दिल में दुनिया की किसी चीज़ की मुहब्बत भर जाए तो उसे कुछ दिखाई नहीं देता। लड़के के दिल में किसी लड़की की मुहब्बत समा जाए तो उसे अपने माँ-बाप दिखाई देने बंद हो जाते हैं। वह घर से रुपए चुराकर अपनी #mashuka के खर्चे पूरे करता है। युवक को अपनी ग़लती का उस दिन एहसास होता है, जिस दिन उसके प्रेम प्रसंग के कारण उसके बाप और भाई पर डंडा बजता है।

डंडा भी अल्लाह के नाम का पहला अक्षर है। किसी को राजा या स्वामी बनाते हैं तो उसके हाथ में डंडा ज़रूर देते हैं। हर नबी ने पशुपालन किया है और वे डंडे से ही पशुओं को नियंत्रित करते थे। इनमें सबसे मशहूर डंडा हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का डंडा है। जो कि एक मिरेकल था। वह एक बड़े अजगर में बदल जाता था और जादूगरों की सब रस्सियों को खा जाता था, जिन्हें जादूगर पब्लिक को #hypnotized करके साँप दिखाते थे जैसे आजकल मीडिया के जादूगर लाभदायक को घातक दिखा देते हैं और जो आदमी नुक़्सान दे रहा है, उसका चर्चा नहीं करते। वे ज़्यादा करेंगे तो चर्च पर चर्चा कर लेंगे। चर्च के पादरी भी हाथ में डंडा रखते हैं और कई पादरी ऐसा डंडा रखते हैं जो हज़रत मूसा के डंडे की याद दिलाता है।

यहूदियों की WORLD ORGANISATION
#WHO पर पकड़ मज़बूत हुई तो उन्होंने उसका #logo बदल दिया और उसके लोगो में दुनिया के नक़्शे पर हज़रत मूसा की लाठी और एक साँप रख दिया। जो कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के मिरेकल को दर्शाता है।

आपने देखा कि डाक्टरों का लाठी-डंडे से काम नहीं है लेकिन उनकी सबसे बड़ी संस्था का निशान भी डंडा है।
इसलिए जब आप घर में हों तो दरवाज़े के पीछे डंडा रखें और जब घर से निकलें तो डंडा या Folding batton साथ लेकर चलें।

जब प्रेम में पड़े हुए युवक का बाप पिटता है और युवक की दुआ से कुछ होता नहीं है तो वह सूफ़ी जी की तरफ़ भागता है।
सूफ़ी जी 'हू' का ज़िक्र करते हैं। जिसमें 2 आँखें हैं। उनके दिल की आँख भी खुली हुई होती है।
वह परेशान हाल आदमी को #panjtanpak की नियाज़ करने के लिए कहते हैं क्योंकि इन पाँच लोगों की यह आदत थी कि ये हरेक आदमी के तोहफ़े, खाने या सलाम के बदले में उससे बेहतर लौटाते थे और मरने के बाद भी आदमी अपनी आदत और फ़ितरत पर क़ायम रहता है। रूह को मौत आती नहीं है और ऐसे लोगों के जिस्म को भी मिट्टी खाती नहीं है।

#Niyaz
कुछ दिन युवक नियाज़ करता है तो उसकी मुसीबत टल जाती है।
सूफ़ी जी मर जाते हैं तो उनका बेटा लोगों को #फ़ातिहा क़ुल और नियाज़ बताता रहता है। फ़ातिहा और क़ुल में दो आँखों वाली 'हा' है। सो उसके काम अल्लाह करता रहता है। सूफ़ी जी को दुआ पहुँचती होगी तो वह उसके जवाब में दुआ दे सकते हैं, बस।

लोगों के काम होते रहते हैं। वे समझते हैं कि सूफ़ी जी मरने के बाद उसके काम बना रहे हैं जबकि काम बनाने वाला अल्लाह है। जिसने हमें 'आँख' खोलने का हुक्म दिया है।

आँख खोलना ही जागरूकता है और जागरूकता ही ध्यान है।
ध्यान सनातन धर्म और #योग का आधार है।
#भारत योग और #अध्यात्म का देश है लेकिन यहाँ भी अधिकतर लोग जागरूक नहीं हैं बल्कि मीडिया से #सम्मोहित हैं।

#सम्मोहन विद्या से देश का बहुत नुक़्सान किया जा रहा है लेकिन इसे कौन देखे और जो देख ले तो वह किसे बताए?

#वैज्ञानिक बता रहे हैं कि #उत्तराखंड में #तुर्किए से अधिक तीव्रता वाला यानी 8 point से ज़्यादा तेज़ी वाला भूकंप कभी भी आ सकता है क्योंकि धरती के नीचे की प्लेटें चल रही हैं लेकिन लोग फिर ख़तरे की जगह नहीं छोड़ रहे हैं।

उत्तराखंड में इतनी तीव्रता का भूकंप सैकड़ों साल से नहीं आया और पहले आया होगा तो वहाँ कच्चे मकान थे। तब इतना नुक़सान न हुआ था, जितना अब होगा।

मैं दुआ की पोस्ट इसीलिए लिख रहा हूँ कि
भारी तबाही से तदबीर और दुआ ही बचा सकती है।
लोग बचने की तदबीर करते तो उत्तराखंड छोड़कर निकल आते लेकिन जिन्हें निकलने को कहा गया, वे भी प्रदर्शन कर रहे हैं कि हम यहीं रहेंगे जबकि वहां रहना उनके प्राणों के लिए हानिकारक है।

अब दुआ का सहारा बचा तो लोगों में इख़्लास और यक़ीन नहीं है और शादी-ब्याह में जाकर अधिकतर हराम का माल खाते हैं।

जिससे दुआ, दुआ ही नहीं होती
और #ismeazam ज़ुबान से लेते नहीं हैं कि यह दूसरों के परमेश्वर का नाम है।

इतना भी चल जाता।
इससे आगे बढ़कर उस नाम का मज़ाक़ भी उड़ाते हैं।
परमेश्वर अपने नाम का उपहास एक समय तक सहता है,
उसके बाद हंसने वालों का सारा डेरा बहता है।

आज्ञा न मानने वाले और हंसने वाले विश्व के कई देशों में बह गए लेकिन लोगों की अंदर की आँख नहीं खुल रही है।

जबकि कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय #हरिऔध जी ने माँ के मुँह से बच्चे से कहा है कि
#उठो_लाल_अब_आँखें_खोलो

हम सस्ती फ़ीस के स्कूल में यही कविता पढ़ा करते थे लेकिन अब महंगी फ़ीस देकर पढ़ने वालों को इतनी ज़्यादा अर्थपूर्ण कविता नहीं पढ़ाई जाती।

जितनी आँख पहले खुली हुई थी, आज वह उतनी भी खुली हुई नहीं है।
जब से मोबाईल आए हैं,
तब से आँख कमज़ोर हुई है।

कमज़ोर आँख की एक निशानी यह है कि #पंजतन का नाम लो तो लोग #शिया समुदाय का सदस्य मान लेते हैं।

मैं इसकी परवाह नहीं करता।
मैं यह देखता हूँ कि क्या पंजतन का ज़िक्र किसी आयत में है?
क्या इनका क़ुरआने मजीद से कोई गहरा ताल्लुक़ है?

...तो दोनों बातें हैं
आयतें मुबाहिला में  मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अली, फ़ातिमा, हसन, हुसैन; पाँचों का एक साथ ज़िक्र है।
अल्लाह ने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर क़ुरआने मजीद उतारा और बाक़ी 4 ने क़ुरआने मजीद समझने और समझाने में एक बार भी ग़लती नहीं की।

इन पाँचों के नाम अरबी में लिखे जाते हैं और सबके नामों के अक्षरों की टोटल गिनती 19 है। 19 की गिनती किसी से कटती नहीं है। दुनिया में कोई इन्हें झुठला नहीं सकता, चाहे कितनी ही कोशिश कर ले। ऐसी कोशिश करने वाला अपना ही नुक़सान करता है। जो इन्हें नहीं मानता, वही मस्जिद और स्कूल में बम फोड़ता है और इस्लाम को बदनाम करता है।

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम में भी 19 अक्षर हैं।
यह एक और संकेत है। क़ुरआने मजीद से इनके गहरे ताल्लुक़ का। हजरत अली ने कहा है कि जो कुछ पूरे क़ुरआन में है, वह सूरह फ़ातिहा में है और जो सूरह फ़ातिहा में है, वह बिस्मिल्लाहिर्रहमानर्रहीम में है और बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम में बा के नीचे का नुक़्ता (बिंदी) मैं हूं।

क़ुरआने मजीद 'बा' अक्षर से शुरु होता है। बा के नीचे एक नुक़्ता है। पुराने अरब ज्ञानी जब अरबी भाषा में लिखते थे तो वे नुक़्ते नहीं लगाते थे लेकिन मानते और समझते थे कि हाँ, यहाँ नुक़्ता है।

क़ुरआने मजीद शुरू करो और हक़ को समझना चाहो तो अपनी पसंद के सब ज़रूरी काम करो लेकिन हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की ज़िंदगी ज़रूर पढ़ो क्योंकि जिन बातों को उस समय के साहित्यकार और इतिहासकार छिपा गए हैं, वे सब राज़ उनकी ज़िंदगी से ही खुलते हैं और क़ुबूल होने वाली दुआएं भी पता चलती हैं।

शीओं की कुछ बातें ग़लत हो सकती हैं लेकिन मोला अली अलैहिस्सलाम की एक बात भी ग़लत नहीं है।

सारे उम्दा बा-अमल सूफ़ियों का इल्मी शजरा हज़रत अली से मिलता है।
सूफ़ियों का ज़िक्र है 'अल्लाहू'

आधी रात को जाग जाओ
और सुबह तक इस्मे आज़म 'अल्लाहू' कहते रहो।

अगर हराम का माल न खाया तो 120 दिन के बाद से दिल की आंख से नई दुनिया दिखने लगेगी।
इतना जिक्र न कर सके तो हर नमाज़ के बाद 66 बार अल्लाहू पढ़ें। इससे भी आपको बहुत ज़्यादा फ़ायदा होगा और आपकी दुआएं कबूल होगी इन् शा अल्लाह।

अब युवक की घर के बाहर दुकान पर कोई लड़की आएगी और वह पसंद आएगी तो #अल्लाहू पढ़ने वाले युवक के दिल को पता चल जाएगा कि इससे बचना है या इसके घर #निकाह का पैग़ाम भेजना है।

दोस्तो, मुझे आपको अल्लाह के नाम और दुआ के बारे में बताना था। सो आपके माइंड को बाँधने के लिए मैंने शुरू में ही 'जवान लड़की और जवान लड़के' का ज़िक्र कर दिया।
और जो समस्या लिखी है, वह हक़ीक़त में हर मौहल्ले में मौजूद है। उसका समाधान भी लिख दिया है और बड़े सलीक़े से जबरन आपसे पूरी पोस्ट पढ़वा ली है।

अंत में इस तकनीक का ख़ुलासा आपके सबक़ के लिए किया है ताकि आप जान लें कि लोग दीन और दुआ की पोस्ट कम देखते हैं और जवान लड़की की समस्या की पोस्ट ज़्यादा देखते हैं।
आप दोनों को जोड़कर एक नए क़िस्म का लेख लिखेंगे तो वे लड़के भी पढ़ेंगे, जिन्होंने बालों को कलर करवा रखा है।

वैसे मेरी बातें ग़लत भी होती हैं।
इसलिए मानने से पहले चेक ज़रूर करना।

#आत्मनिर्भरता_कोच #अल्लाहपैथी #part_time_vilayat_course #क़ानूने_क़ुदरत #मिशनमौजले #उलमा_ए_हक़ #अमीर_बनो #wellness_series #इस्मे_आज़म

Dost ko Meharban aur Aulad ko hukm manne wala banayen

 1. wuzu karke paak ho kar raat ko Tanhayi mein

yh amal karen aur phir so jayen.


5 baar aaoozubillahi minash shaitanir rajeem

3 baar durude ibrahimi

21 baar ya rahmanu ya wadood

3 baar durude ibrahimi

Iske baad jiski taskhir karni hai,

Uska naam len

Aur phir so jayen.

Hafiz Yasir ne apni video mein bataya hai ki agar yh amal Roz kiya to woh aadami zindagi bhar ke liye gulam ho jaega is wazife ko Miyan biwi aur man baap apni aulad ke liye Jay maqsad ke liye kar sakte hain. najayaz maqsad ke liye ijaazat nahin hai is wazife ko aazmana bilkul nahin hai.

Kahin bewajah hi koi attract ho jayega to pichha chhudana mushkil ho sakta hai.


2. Bachche kahna na mante hon to jab bachche so jayen tab unke maathe par ya sar par aage ke hisse par haath rakh kar 19, 20 ya 21 baar Allah ka naam 'Ya shaheedu' padhkar dum karen yani phoonk laga den.


3. Jin bacchon ka Dil school jaane mein aur padhaai mein Na lagta Ho unke liye yah khas powerful aazmaya hua Amal hai:


jab bachche so jayen tab unke maathe par ya sar par aage ke hisse par haath rakh kar 19 baar Bismillah padh kar 19, 20 ya 21 baar Allah ke naam 'Ya Awwalu Ya Aakhiru' padhkar dum karen yani phoonk laga den.

जवानी, मेहरबानी, मुहब्बत और हुस्न व गुलाबी गोरापन, सब एक साथ

 #ismeazam by #आत्मनिर्भरता_कोच #अल्लाहपैथी से

*जवानी, मेहरबानी, मुहब्बत और  हुस्न व गुलाबी गोरापन, सब एक साथ*

💄

1. चेहरा गोरा और गुलाबी बनाने के लिए मिशन मौज ले का हुस्ने यूसुफ़ पैक

Nuskha:

हुस्ने यूसुफ़

चंदन लाल

गुले अनार

गुले दाऊदी

सफ़ेदा काश्ग़री

हरेक दवा 20 ग्राम लें। इन सब दवाओं को कूट कर और पीसकर एक डिब्बे में रख लें।

जब ज़रूरत हो तो मुंह और हाथों और गर्दन को धो लें। इस पाउडर में हल्का गर्म दूध मिलाएं और इसे गाढ़ा करने के लिए इसमें तोड़ी मुल्तानी मिट्टी पीसकर मिलाएं। इसे चेहरे, हाथों व खुले हिस्सों पर लगाएं। जब यह सूख जाए, तब इसे हल्का सा पानी लगाकर रगड़कर स्किन से उतार दें।

यह फ़ेस पैक एक बार में ही चेहरा काफ़ी गोरा और गुलाबी कर देता है।

ध्यान रखें कि दवाएं असली हों और अच्छी क्वालिटी की हों।


2. गर्मी के दिन हों और कोई एलर्जी न हो तो अनार खाएं। इससे मसूड़े टाइट हो जाएंगे। स्किन और फ़िगर टाइट हो जाएगी।

खजूर, अनार, अंजीर और ज़ैतून का तेल खाने वाले में ताज़ा ख़ून बनता है, खाल लटकती नहीं, झुर्रियां नहीं पड़तीं, बाल नहीं झड़ते और गिरने से हड्डी नहीं टूटती। चाय, कोल्ड ड्रिंक्स और केमिकल वाले डिब्बाबंद फ़ूड खाने वालों के साथ ये सब हो रहा है और इनकी वजह से ब्लड कैंसर, गुर्दा फ़ेल और दिल के रोग बढ़ रहे हैं। जो खाओ, पहले अंजाम सो लो।

पैसे ख़र्च न करने हों तो जूस बेचने वाले से अनार के छिलके लाकर धोकर साए में सुखाकर रख लो। उसकी चाय बना लो और उसमें चीनी और दूध मत डालो। उसमें छुहारे डालकर पका लो या उस चाय को खजूर या अंजीर के साथ खा लो।

बुढ़ापा दूर रहेगा।

#wazifaforlove 

3. चीन और जापान में चाय पीने को इबादत का दर्जा देते हैं।

इसलिए आप चाय पीते पीते 100 बार या 400 बार #Yawadood भी पढ़ लें। इसलिए जीवनसाथी के दिल में मुहब्बत और दोस्ती रहेगी। हर नमाज़ के बाद 20 बार या वदूदू पढ़ना भी अच्छा काम करता है।

जितनी देर फ़ेसपैक लगाकर बैठो, 

उतनी या वदूदू 5,120 बार पढ़ लो या यूट्यूब से हेडफ़ोन लगाकर सुन लो। नतीजा एक मिलेगा कि जीवनसाथी के दिल में मुहब्बत और दोस्ती रहेगी।


हमारे फ़ेसपैक और चाय भी ज़रा हटके हैं।

आप चाहें तो इत्र को भी मैगनेटिक इत्र बना लें। जो ख़ुश्बू सूंघेगा, नर्मी से बात करेगा।

औरतें इसे घर में लगाएं और ऐसी ख़ुश्बू लें जो हवा में न फैले जैसे कि हिना।

मर्द ऐसी ले सकते हैं, जो 3 फ़ुट दूर ऑफिस कै बॉस की नाक तक चली जाए।

रोज़ अकेले में 12,500 बार 'या अल्लाहु या रऊफ़ू' पढ़कर इत्र पर #वशीकरण #Taskhir की नीयत से दम कर दे। 10 दिन में सवा लाख की गिनती हो जाएगी। आप 15-20 दिन में भी सवा लाख पढ़ सकते हैं।

किसी ख़ास आदमी का वशीकरण करना हो तो पढ़ते वक़्त उसका ख़याल दिल में रखें और इत्र पर दम करते वक़्त उसका नाम भी लें कि उसका दिल मेरे लिए नर्म हो जाए, वह मेरी हर ज़रूरत पूरी करे।

अगर आप मर्द हैं तो आप रोज़ 3,125 बार यह #ismeazam पढ़कर 40 दिन में भी सवा लाख की गिनती पूरी कर सकते हैं लेकिन जगह तन्हाई की हो। जहाँ कोई न देखे और न टोके। वक़्त, जगह और गिनती एक रखें। अपने अमल के बारे में किसी को न बताएं। अगर एक दिन अमल टूट गया तो उसका असर ख़त्म समझो और फिर नए सिरे से करो। जिस दिन कहीं जाना हो तो उस दिन टाईम से पहले अमल कर सकते हैं लेकिन बाद में नहीं कर सकते।

अब यह इत्र बराए तस्ख़ीर तैयार है। इसे जायज़ मक़सद के लिए लगाएं।

जो शादीशुदा औरतें अपनी ससुराल में नाक़द्री झेल रही हैं, यह ज़िक्र उनकी प्रॉब्लम को हल करने में काम करेगा।

स्कूल और घर में पिटाई से हिफ़ाज़त के लिए 

4. आम तौर से यह वशीकरण या तस्ख़ीर ऐसी होती है कि दूसरे लोग आकर्षण महसूस करते हैं और उनका दिल नर्म हो जाता है।

मिसाल के तौर पर एक टीचर या #अब्बाजान ग़ुस्से में आकर बच्चे को पीटने का इरादा कर चुके हैं और बच्चा यह नाम 'या अल्लाहु या रऊफ़ू' 346 बार पढ़कर अपने ऊपर फूंक कर उनके सामने जाता है तो जैसे ही उनकी नज़र उस बच्चे पर पड़ेगी, उनका दिल उसके लिए ख़ुद ही नर्म हो जाएगा। वह उस पर सख़्ती नहीं कर पाएगा।

वक़्त कम हो तो यह नाम कम पढ़ा जाए, तब भी काम करेगा।

अगर इन दोनों के साथ 'या रहीमु' नाम भी मिला लिया जाए तो असर और ज़्यादा बढ़ जाएगा।

तब ऐसे पढ़ा जाएगा:

'या अल्लाहु या रऊफ़ू या रहीमु'

इसे तस्बीह और कलिमा ए तौहीद के साथ पढ़ें तो यह इस्मे-आज़म का एक पावरफ़ुल कलिमा बन जाएगा:

सुब्हानका अल्लाहुम्मा ला इलाहा इल्ला अन्तर-रऊफ़ुर-रहीम।

अर्थ: आप पाक हैं, ऐ अल्लाह कोई माबूद नहीं है सिवाय आप रऊफ़ रहीम के‌।

100 बार पढ़कर 3 बार अपनी नीयत बोले कि 'जो मुझे देखे, मुझ पर मेहरबान हो'

या यह कहे

अल्लाहुम्मा सख़्ख़िर ली हाज़ल बलदि वर-रिजाल।

यानी ऐ अल्लाह इस नगर को और यहां के लोगों को‌ मेरे लिए मुसख़्ख़र कर दीजिए।

आप किसी और तरह भी अपनी नीयत बोल सकते हैं। नीयत की वजह से हर शब्द इत्र पर असर डालेगा और इत्र के हरेक एटम को याद रहेगा कि उसे क्या हुक्म दिया गया है और उसे क्या करना है।

अगर आप सवा लाख नहीं पढ़ सकते तो आप रोज़ाना

100 बार 'सुब्हानका अल्लाहुम्मा ला इलाहा इल्ला अन्तर-रऊफ़ुर-रहीम' पढ़ें।

और 111 बार 'अल्लाहुम्मा सख़्ख़िर ली हाज़ल बलदि वर-रिजाल' पढ़ें।

शुरू और बाद में 1-1 बार दुरूद शरीफ़ पढ़ लें। यह भी असर करता है। रोज़ करें। नमाज़ न पढ़ने के दिन में रोज़ उतनी देर सिर्फ़ दुरूद शरीफ़ पढ़ें और अपने मक़सद के लिए दुआ करें। दुआ और दुरूद हर हाल में करें।

5. इसमें हमने फ़ेसपैक,  चाय और इत्र बताया है। इत्र के साथ आप अपने ज़ेवरों पर भी फूँक लें तो ज़्यादा अच्छा रहेगा।

किसी अंगूठी या लाकेट पर 

'सुब्हानका अल्लाहुम्मा ला इलाहा इल्ला अन्तर-रऊफ़ुर-रहीम' मशीन से किसी अच्छे वक़्त में लिखवाकर पहने तो और ज़्यादा अच्छा है।

ग़र्ज़ यह कि कई तरीक़े हैं ख़ुद को दूसरों की ज़्यादती से बचाने के।

इनमें सेल्फ़-केयर भी एक बहुत पावरफ़ुल तकनीक है और दुआ उससे भी ज़्यादा पावरफ़ुल तरीक़ा है।

6. मैंने आज तक वशीकरण का कोई रूहानी अमल नहीं किया है क्योंकि मुझे इसकी ज़रूरत नहीं पड़ी। थोड़ी बहुत ज़रूरत पड़ती है तो वह सुबह और शाम के #मस्नून #adhkar से पूरी हो जाती है। 

7. सूरह तौबा की आख़री 2 आयतें या आयतुल-कुर्सी पढ़ने से भी तस्ख़ीर होती है।


चेतावनी: इस रूहानी अमल में अल्लाह का पाक नाम है। यह जायज़ मक़सद में काम करेगा और नाजायज़ मक़सद के लिए इसे पढ़ा गया तो इससे नाजायज़ नीयत वाले को नुक़्सान होगा।

#Allahpathy में उलमा और रूहानी आमिलीन के आज़माए हुए आमाल और तजुर्बात सिर्फ़ आपको रूहानी इल्म में आत्मनिर्भर बनाने के लिए दिए जाते हैं।

सभी आमाल आसान हैं।

ये अल्लाह के नाम हैं या उसके पाक कलाम की आयतें हैं।

इन्हें करने का सबसे अच्छा वक़्त तन्हाई और फ़ुर्सत का वक़्त है चाहे वह फ़ज्र से पहले का हो, उसके बाद का हो या दिन का हो या सोने से पहले का हो।

पूरे यक़ीन से अमल करें और जल्दी नतीजा न मिले तो सदक़ा दें, इस्तिग़फ़ार करें लेकिन अमल न छोड़ें। अगर आपने सब्र के साथ अमल किया तो कामयाबी यक़ीनी है। जल्दी करने और मायूस होने से रूहानी अमल नाकाम हो जाता है क्योंकि रूहानी दुनिया में हर काम अपने ठीक वक़्त पर होता है,

जैसे बच्चे की पैदाईश उसके ठीक टाईम पर होती है, माँ जल्दी चाहे तो उसके चाहने से कुछ न होगा, सिवाय नुक़्सान के। सो अमल करो और उसे एक फल की तरह पकने के लिए रब के हवाले कर दो। एक वक़्त आएगा और आपके अमल का फल आपकी गोद में ख़ुद आ गिरेगा, इन् शा अल्लाह।

 

#selfcare #pomegranate #bestfacepack 

#antiagingtea

कलिमा ए तौहीद की आयतों में इस्मे आज़म होता है

पिछली पोस्ट मैंने इस्मे आज़म और दुआ की क़ुबूलियत पर लिखी।

20 लोगों ने लाइक किया और 2 लोगों ने कमेंट किया।

कमेंट और शेयर की मुझे हाजत नहीं है लेकिन मेरी पोस्ट को ज़रूरत है और वह इसलिए ताकि वह दूसरों तक पहुंचे और उनका मसला हल हो।

जैसे आक्सीजन और पानी की कमी से लोग मरते हैं।

ऐसे ही दुआ की क़ुबूलियत कम हो तो अंदर से इस यक़ीन की मौत हो जाती है कि रब की मदद से मसला हल हो सकता है। आदमी मायूस हो जाता है और दुआ महज़ रस्म के तौर पर करता है। वह मान लेता है कि इस नमाज़ और दुआ से कुछ नहीं बदलेगा

और

जब इंसान अल्लाह की रहमत से मायूस हो जाता है तो वह शैतान के रंग में रंग जाता है।

इस वक़्त शैतानी रंग में रंगे हुए मायूस लोगों की बड़ी तादाद है।

इस तादाद में कमी लाने के लिए मेरी पोस्ट को लाइक, कमेंट और शेयर की ज़रूरत है।

वर्ना आपमें से एक भी मेरे इल्म की क़द्र नहीं करेगा तो भी मैं लिखूंगा क्योंकि 

मुझे लिखना है

और

अपने लिखे हुए को ख़ुद ही पढ़ना है।

मैं अपना शिष्य ख़ुद ही हूँ।

मैं ख़ुद से ख़ुद ही सीखता हूँ।

मैं ख़ुद को ख़ुद ही पढ़ाता हूँ।

मैं अच्छी चीज़ें तलाश करके पढ़ता हूँ और यहाँ जमा करता हूँ।

आपके लिए लिखता हूँ तो भी पहले मैं ख़ुद पढ़ता हूँ।

आपके साथ अच्छी बातें शेयर करने का मुझे फ़ायदा हो चुका है और हो रहा है।

आप इन बातों को शेयर करते तो और बहुत लोगों को यह बात पता चलती कि अगर बाहर के हालात मायूस करें तो भी अंदर की #consciousness एक ऐसी ताक़त है, जिसे डर, ग़म, शक और #limitingbeliefs से पाक कर लिया जाए तो हर हालत पलट सकती है।

इसीलिए अल्लाह #तस्बीह (पाकी) बयान करने का हुक्म देता है।

ला इलाहा इल्लल्लाह में #इस्मे_आज़म है

और इस पैटर्न की हर आयत में इस्मे आज़म है,

चाहे उसमें इस्मे ज़ात 'अल्लाह' हो या उसकी जगह 'हू' या 'अन्ता' हो या कोई और #हरफ़ हो।

यह पता होने के बाद इसकी रियाज़त (साधना) की ज़रूरत है और वह है इसे ज़्यादा पढ़ना।

अगर पाक होकर और पाक रहते हुए #Lailahaillallah या इस पैटर्न और मीनिंग की आयतों को ज़्यादा पढ़ा जाए तो दुआ क़ुबूल होने लगती है।

हर आदमी को फ़लाह से जुड़ी अपनी दुआ की क़ुबूलियत के लिए कोशिश करनी चाहिए।


#अल्लाहपैथी #part_time_vilayat_course #उलमा_ए_हक़ #आत्मनिर्भरता_कोच #मिशनमौजले #क़ानूने_क़ुदरत #अमीर_बनो #wellness_series 

#ismeazam

Friday, April 8, 2022

इस्मे आज़म की पहचान और उससे काम लेने का आसान तरीक़ा DR. ANWER JAMAL

 कह दीजिए कि वह अल्लाह अहद (एक) है।

अल्लाह अस्समद है। (यानी आत्मनिर्भर, दूसरों पर निर्भर होने से बेनियाज़ है और self sufficient है।)

न उसने किसी को (मनुष्यों की तरह) जन्म दिया और न ही उसे किसी ने जन्म दिया।

और न ही कोई उसके कुफ़ू (बराबरी) का है।

#Quran #surahikhlas

हम सूरह इख़्लास की पहली आयत के बारे में आपको बता चुके हैं।

दूसरी, तीसरी और चौथी आयत भी बिल्कुल क्लियर है। 

अल्लाह अस्समद है यानी हर चीज़ और हर इंसान अपनी ज़रूरत की पूर्ति के लिए अल्लाह पर निर्भर है लेकिन वह किसी पर निर्भर नहीं है। अपनी मुराद की पूर्ति के लिए लोग उसकी तरफ़ तवज्जो करते हैं।

कोई भी उसकी हस्ती में से नहीं निकला कि उसका अंश या वंश हो और न ही वह ख़ुद किसी में से निकला कि वह किसी का वंश या बेटा हो।

कोई भी अल्लाह के कुफ़ू का नहीं है यानी कोई भी उसके जोड़ और बराबरी का नहीं है। मैंने अपने बच्चों को बताया कि जैसे शैख़ अदब अली अपनी बेटी बाला ख़ातून का निकाह उस्मान से करते हैं तो वह उन्हें एक दूसरे के जोड़ और बराबरी का देखकर ही उनका निकाह करते हैं। एक इंसान के 'कुफ़' यानी बराबरी के कई इंसान होते हैं लेकिन कोई भी अल्लाह के कुफ़ू का नहीं है।

हैरत की बात यह है कि सूरह इख़्लास की चारों आयतें 'अल्लाह' के वुजूद का परिचय देती हैं और इसी के साथ ये चारों आयतें #अल्लाह नाम के बारे में भी पूरी उतरती हैं।

1. अल्लाह नाम अहद है यानि यह नाम एक होकर एक है। अल्लाह नाम दो शब्दों से मिलकर नहीं बना।

2. अल्लाह नाम अपना अर्थ देने में दूसरे किसी शब्द पर निर्भर नहीं है। यह नाम अपना अर्थ देने के लिए अपने आप में काफ़ी है।

3. न अल्लाह नाम किसी शब्द या धातु से निकला है और न अल्लाह नाम से किसी शब्द ने जन्म लिया है।

4. कोई भी दूसरा नाम अल्लाह नाम के कुफ़ू (बराबरी) का नहीं है। अपनी तरह का यह अकेला नाम है।

इस नाम की हैरत में डालने वाली ख़ासियत यह है कि अगर इस नाम से एक एक हरफ़ हटाते रहें, तब भी यह नाम अपने अंदर अल्लाह की हस्ती की तरफ़ ठीक ठीक इशारा और अर्थ देता रहता है।

जैसे कि अल्लाह नाम में से अलिफ़ हटा दें तो लिल्लाह للہ रहता है। जिसका अर्थ 'अल्लाह का' है।

अब इसमें से एक और हरफ़ लाम हटा दें तो 'लहु' शब्द बचता है। जिसका अर्थ है 'उसी का'।

अब इसमें से फिर एक हरफ़ लाम हटा दें तो 'हु' बचता है और 'हु' का अर्थ है 'वह'।

इन चारों शब्दों से क़ुरआन मजीद में आयतें शुरू होती हैं और वहाँ ये चारों शब्द अल्लाह के वुजूद की तरफ़ इशारा देते हैं जैसे कि

1.अल्लाहु ला इलाहा इल्ला हुवल हय्युल क़य्यूम।

اَللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ١ۚ اَلْحَیُّ الْقَیُّوْمُ

-क़ुरआन मजीद 2:255

2.लिल्लाहि माफ़िस्समावाति वमा फ़िल् अर्ज़।

لله ما في السماوات وما في الأرض

-क़ुरआन मजीद 2:284

3.लहु माफ़िस्समावाति वमा फ़िल् अर्ज़ि वमा बैइनाहुमा वमा तहतस्सरा।

لَهٗ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَ مَا فِی الْاَرْضِ وَ مَا بَیْنَهُمَا وَ مَا تَحْتَ الثَّرٰى(۶)

-क़ुरआन मजीद, सूरह ताहा 6

4. हुवल्लाहुल् लज़ी ला इलाहा इल्ला हू।

ھُوَ اللّٰہُ الَّذِیْ لَآاِلٰہَ اِلَّا ھُوَ

-क़ुरआन मजीद, सूरह हश्र 22

अरबी के हरफ़ 'हा' (H) की वजह से अल्लाह नाम अपने आख़री हरफ़ तक रब के वुजूद की तरफ़ इशारा देता है। इसीलिए अल्लाह के नामों की तासीर पर रिसर्च करने वाले बहुत से ज़िक्र करने वालों ने 'हू' को इस्मे आज़म #IsmeAzam लिखा है।

इस्मे आज़म अल्लाह का वह सबसे बड़ा नाम है जो अधिकतर आलिमों से पोशीदा है और उस नाम की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि उसके साथ जो भी दुआ माँगी जाती हे, वह क़ुबूल होती है, चाहे दुआ करने वाला कितना ही गुनाहगार हो।

अब यह इस्मे आज़म है या नहीं?

यह बात आप ख़ुद इसके साथ दुआ करके देख सकते हैं।

#इख़्लास और #यक़ीन के साथ इस बरकत वाले नाम के साथ दुआ करें और इस नाम की तासीर देखें।


*पार्ट 2*

#इस्मे_आज़म सीरीज़ का मक़सद यह है कि आपको दुआ की क़ुबूलियत में #आत्मनिर्भर बना दिया जाए। जब आपको कोई काम करना हो तो आपको किसी ज़िन्दा बुज़ुर्ग के पास या किसी वली की क़ब्र पर दुआ के लिए जाने की ज़रूरत न रहे। जो काम रूहानी ताक़त वाले बुज़ुर्गों ने किया है, वह आप कर लें। जैसे वे अपने काम करते थे, उनके तरीक़े पर आप भी अपने काम कर लें।

सिलसिला ए #नक़्शबंदिया के एक बड़े #इमाम #सूफ़ी और पेशवा हुए हैं। उनका नाम है #बायज़ीद बुस्तामी (रहमतुल्लाहि अलैह)।

आज भी पूरी दुनिया में उनका नाम इज़्ज़त से लिया जाता है।

वह क्या करते थे?

वह रोज़ रात को

#SurahAlIkhlas #QulHuwalLaHuAhad 16,000 बार पढ़ते थे यानी लगभग पूरी रात वह एक ही सूरत पढ़ते थे।

एक दिन उनकी माँ ने उन्हें आराम देने की नीयत से और उन्हें लिटाने के लिए कहा कि बायज़ीद! ज़रा अपना बाज़ू तकिए की तरह मेरे सिर के नीचे रखो ताकि मुझे आज आराम की नींद आ जाए। उनका मक़सद यह था कि बायज़ीद लेट जाएगा और यह सो जाएगा।

बायज़ीद अपनी माँ का हुक्म मानने वाले बेटे थे। सभी वली ऐसे ही थे। मां बाप का हुक्म नज़रअंदाज़ करके कोई भी अल्लाह का वली नहीं बन सकता।

माँ के कहने पर बायज़ीद आ गए और अपनी माँ के सिर के नीचे हाथ रखकर लेट गए और जब माँ सो गई तो भी वह जागते रहे और उन्होंने उसी पोज़िशन में लेटे लेटे ही अपने हाथों की उंगलियों पर गिनते हुए 16,000 बार सूरह #इख़्लास पूरी पढ़ी। जोकि उनका रोज़ रात का नियम था। उन्होंने अपना नियम पूरा किया। जो भी आदमी अपने माँ-बाप की ख़िदमत करे, अपनी आदतें अच्छी करे और लगभग पूरी रात इबादत करे तो उसे अल्लाह का वली बनना ही है। उसकी दुआओं को पूरा होना ही है।

आप उनके नियम का 16वाँ टुकड़ा अदा कर लें।

आप बस एक हज़ार बार सूरह इख़्लास पढ़ें। यह क़ुरआन की 112वीं सूरह है और इसमें सिर्फ़ 4 आयतें हैं। इसमें इस्मे आज़म है।

अब आपकी हर मुराद पूरी होगी।

बस एक ख़ास काम आपको करना है और वह काम यह है कि अगर आप ग़रीब हैं और मालदारी के लिए आप यह मुबारक सूरह पढ़ें तो पहले आप ग़रीबी को कुछ देर के लिए छोड़ दें। कम से कम उतनी देर के लिए, जितनी देर आप यह सूरह पढ़ें। ग़रीबी से निकलने का मतलब ग़रीबी के ख़याल से निकलना है और ऐसा तब होगा, जब आप अमीरी के ख़याल में घुस जाएं। 

ग़रीबी और अमीरी को लिबास की तरह बदला जा सकता है।

आप ख़याल करें कि आप मालदार हैं और अब अपने ख़याल में वे काम करें जो आप मालदार बनने के बाद करेंगे। आप ये काम ऐसे करें मानो आप सचमुच ऐसा कर रहे हैं। इससे आपको ख़ुशी मिलेगी। यह ख़ुशी का एहसास ही आपके #माइंड को #यक़ीन दिलाएगा कि यह सच है। जब आपके माइंड को यक़ीन आ जाता है कि यह सच है तो उससे माइंड में एक नक़्श, एक पैटर्न बन जाता है और फिर माइंड उसे आपकी ज़िन्दगी में साकार कर देता है। आपको जानना ज़रूरी है कि #परमेश्वर #अल्लाह ने आपको #आत्मनिर्भर बनाया है। हरेक बच्चे और हरेक बच्ची को आत्मनिर्भर बनाया है। हरगिज़ यह न करें कि गर्भ में या गोद में बेटी देखें और उसे मार दें या उसका सही इलाज न कराएं कि यह मर जाए और न बेटों को मारें कि हम ग़रीब रह जाएंगे।

दुबई ग़रीब था। दुबई के शैख़ ने अक़्ल से काम लिया। आज दुबई में सोने की कारें चलती हैं और एटीएम मशीन से सोने के बिस्किट निकलते हैं और वहाँ लोग कुत्ते की जगह शेर पालते हैं।

मक्का दुबई से भी ज़्यादा रिच है, जहाँ सबसे पहले सूरह इख़्लास पढ़ी गई। वहाँ भी बहुत ग़रीबी थी। वहाँ के लोग खिलाने के डर से अपनी लड़कियों को मिट्टी में ज़िंदा गाड़ देते थे। उनके पास खाने के लिए काफ़ी फ़ूड नहीं होता था। यह ग़रीबी हक़ीक़त में विश्वास की ख़राबी और रब की दी हुई योग्यताओं से काम न लेने और छोटी छोटी बात पर बड़ी बड़ी लड़ाईयां लड़ने का अंजाम थी। सूरह इख़्लास ने इनका इलाज किया।

आप रात को बिल्कुल आख़िर में पाक साफ़ होकर अपने धनी #ग़नी होने का #तसव्वुर (#इमेजिनेशन) करते हुए सूरह इख़्लास पढ़ें। इससे आपमें एनर्जी लेवल बढ़ेगा। इमेजिनेशन करने और उसके साथ गिनती का ध्यान रखने से आपके ब्रेन के दोनों हिस्से काम करते हैं। इस ख़ास तरीक़े से आपका पूरा ब्रेन काम करता है क्योंकि आपका #leftbrain logical है और #rightbrain emotional है। इस ख़ास तरीक़े में आप इमोशन और लॉजिक (यानी काउंटिग) दोनों से एक साथ काम ले रहे हैं। 

इससे आपके नफ़्स में बदलाव आ रहा है और अल्लाह कहता है कि जब कोई अपने आप में बदलाव ले आता है तो अल्लाह उसे बदल देता है। देखें सूरह रअद आयत 11

إِنَّ اللَّهَ لا يُغَيِّرُ مَا بِقَوْمٍ حَتَّى يُغَيِّرُوا مَا بِأَنْفُسِهِمْ

[الرعد: 11]

यानी आपको अपने अंदर बदलाव लाने में भी आत्मनिर्भर बनाया गया है। आप चाहें तो अपने अंदर अभी बदलाव ला सकते हैं।

ऐसे ही एक बेरोज़गार ख़ुद को कल्पना में रोज़ी कमाते हुए और सैलरी लेते हुए देखे और सूरह इख़्लास पढ़े।

अगर एक कुंवारी लड़की निकाह जल्दी चाहती है तो अपने निकाह का मंज़र देखे कि वह निकाह के फॉर्म पर साइन कर रही है और साइन के नीचे डेट लिख रही है। वह जिस डेट को अपना निकाह चाहती है। वही डेट लिखे। यह सब अल्लाह से अच्छा गुमान करना है। अल्लाह के लिए आसान है कि वह इस गुमान को सच कर दे।

मुझे इंटरनेट पर सूफ़ियों के क़ादरी सिलसिले के एक वज़ीफ़े की एक इमेज नज़र आई। मैंने उसमें एडिट करके यह ख़ास तरीक़ा बढ़ा दिया है।

यह अमल करते ही आप बिना किसी से बात किए और बिना ध्यान बंटाए सो जाएं। इससे आपका #सब्कॉन्शियस_माइंड पूरी रात आपके तसव्वुर को हक़ीक़त में बदलने के लिए काम करेगा।

इन् शा अल्लाह!

हर आदमी की हरेक ज़रूरत को पूरा करने के लिए बस यही एक रूहानी अमल काफ़ी है क्योंकि यह इस्मे आज़म का अमल है। 

आप यह रूहानी अमल और #अल्लाहपैथी का यह ख़ास तरीक़ा अपने सब भाई बहनों को बता दें।

हरेक धर्म का और हरेक उम्र का छोटा बड़ा आदमी पाक साफ़ होकर यह अमल कर सकता है। नापाकी की हालत में यह अमल न करें। जो आयतें पढ़नी हैं, वे ये हैं:

क़ुल हुवल्लाहू अहद

अल्लाहुस् समद

लम यलिद वलम यूलद

वलम यकुन्-लहू कुफुवन अहद



सूरह इख़्लास का अर्थ यह है:

(हे ईश दूत!) कह दोः अल्लाह अहद (अकेला) है।

अल्लाह अस्समद (निरपेक्ष और सर्वाधार) है।

न उसकी कोई संतान है और न वह किसी की संतान है।

और न उसके बराबर कोई है।

अर्थ केवल समझने के लिए लिखा है। इसे वज़ीफ़े में नहीं पढ़ना है।

#atmanirbharta_coach #wellness_series #allahpathy #रूहानीअमल  #mission_mauj_ley #اعمال_قرآنی

*पार्ट 3*

#Allahpathy की #ismeAzam series में आगे...

आम तौर से एक बच्चा तक इस्मे आज़म वाली आयतें पढ़ता है जैसे कि जब वह आयतुलकर्सी और #सूरह_इख़्लास पढ़ता है लेकिन वह रिकग्नाइज़ नहीं कर पाता कि वह दुनिया का सबसे बड़ा ख़ज़ाना पा चुका है।

वह उससे ज़्यादा काम भी नहीं ले पाता क्योंकि इसके लिए #तसव्वुर की तख़्लीक़ी क़ूव्वत (कल्पना की सृजनात्मक शक्ति) की एक्सरसाईज़ ज़रूरी है।

#सूफ़ी और रूहानी आमिल जब भी कोई ज़िक्र या #रूहानीअमल करते हैं तो वे तसव्वुर ज़रूर करते हैं। इसीलिए उनके #ज़िक्र में और उनके अमल में तासीर होती है। जब एक आदमी अल्लाह के किसी भी मुबारक नाम के साथ अपनी मुराद का तसव्वुर (imagination) जोड़कर उससे अपनी हाजत पूरी करने की कुंजी पा लेता है, तब अगर वह तलाश करता है तो उसे #इस्मे_आज़म भी मिल जाता है।

यह रब की तरफ़ से एक सम्मान होता है। इससे उसकी रब के नामों की मारिफ़त में और ज़्यादा इज़ाफ़ा होता है और उसकी #रूहानी ताक़त में भी।

मैंने अपनी तालीम में #powerofimagination पर बहुत ज़ोर दिया है।

यही वह #masterkeysystem है, जिससे आप #isme_azam की तासीर ले सकते हैं वर्ना इस्मे आज़म की आयतें सब मुस्लिम पढ़ते हैं बल्कि #वैदिक सनातन धर्म वाले भी अपने धर्मग्रंथों में वह नाम पढ़ते हैं और #ईसाई और #यहूदी तक पढ़ते हैं 

... लेकिन यहूदी #तौरात की वजह से इस्मे आज़म को अच्छी तरह पहचानते हैं और वे उससे काम लेने के बहुत उम्दा तरीक़े जानते हैं। उनकी वैज्ञानिक तरक़्क़ी की ख़ास वजह उनका इल्मे इस्मे आज़म 'ही है/भी है।' जो मानना आसान लगे, आप मान लें।

इस तरह आप जान लेंगे कि मसला इस्मे आज़म मिलने का नहीं है बल्कि #हिदायत मिलने का है। हिदायत में उस तरीक़े की हिदायत भी आ गई है जिससे इस्मे आज़म से काम लिया जा सके।

#क़ुरआन में अल्लाह से अच्छा गुमान रखना ईमान की और #अल्लाह से बुरे गुमान रखना मुनाफ़िक़ों की निशानी बताई गई है और उनके बुरे गुमानों की वजह से उन्हें भयानक अज़ाब मिलना बताया है, जिससे आप रब की नज़र में गुमान यानी कल्पना की अहमियत का अंदाज़ा कर सकते हैं।

وَيُعَذِّبَ ٱلْمُنَٰفِقِينَ وَٱلْمُنَٰفِقَٰتِ وَٱلْمُشْرِكِينَ وَٱلْمُشْرِكَٰتِ ٱلظَّآنِّينَ بِٱللَّهِ ظَنَّ ٱلسَّوْءِ ۚ عَلَيْهِمْ دَآئِرَةُ ٱلسَّوْءِ ۖ وَغَضِبَ ٱللَّهُ عَلَيْهِمْ وَلَعَنَهُمْ وَأَعَدَّ لَهُمْ جَهَنَّمَ ۖ وَسَآءَتْ مَصِيرًا

अर्थात् और (वह) यातना दे #मुनाफ़िक़ पुरुषों तथा स्त्रियों को, जो बुरा विचार रखने वाले हैं अल्लाह के संबंध में। उन्हीं पर बुरी आपदा आ पड़ी तथा अल्लाह का प्रकोप हुआ उनपर और उसने धिक्कार दिया उन्हें तथा तैयार कर दिया उनके लिए नरक और वह बुरा जाने का स्थान है।

-सूरह फ़तह आयत 6

जब एक आदमी के मोबाईल की बैल बजती है और उसका दिल धड़कने लगता है कि कहीं से कोई बुरी ख़बर न आई हो तो उसमें यह मुनाफ़िक़ का गुण है और इस गुण की वजह से वह ज़िन्दगी में कष्ट पा रहा है, उसे पता नहीं है। अगर उससे कहो कि अल्लाह से हमेशा अच्छा गुमान रखो तो वह इस बात को हल्के में लेता है और नज़रअंदाज़ कर देता है।

जो कोई इस्मे आज़म की तासीर पाना चाहे, वह मेरी इस बात  को बहुत ज़्यादा अहमियत दे। यहाँ तक कि उसे हर तरफ़ से आदमी घेरकर कहें कि हम तुम्हारे हाथ पैर तोड़ देंगे तो अपनी कल्पना में उन्हीं के हाथ पैर टूटे हुए देखे और इस्मे आज़म वाली आयत या इस्मे आज़म की दुआ पढ़े। अगर इस कल्पना के साथ वह #SurahLahab भी पढ़ेगा तो उसकी तासीर ज़ाहिर होगी जबकि इस सूरह में इस्मे आज़म नहीं है।

मेरा गुमान है कि अब आप समझ गए होंगे कि '#हुवा' इस्मे आज़म है और इससे तासीर वही आदमी ले सकता है, जो अपने दिल में अपनी पसंद के ख़याल को देर तक टिका सके। जो अपने दिल को बुरे यक़ीन, बुरे गुमान और वसवसों से पाक करता रहे यानि दिल पर नज़र रखे और बुरे ख़याल को #लाहौल पढ़कर हटाता रहे।

ऐसे ही आदमी को #अल्लामा_इक़बाल ने ख़ुद आगाह कहा है। जो ख़ुदी को पहचानता है, वह इस्मे आज़म से अपने हक़ में काम ले सकता है।

अब आप यह इमेज देख लें जिसमें अल्लाह के नाम से और क़ुरआन से बरकत हासिल करने वाले #रूहानी बुज़ुर्गों ने तसव्वुर और गुमान की ताक़त के साथ #आयतुलकुर्सी पढ़ने का एक ख़स तरीक़ा यह बताया है: 

#atmanirbharta_coach #mission_mauj_ley

#welness_series #अल्लाहपैथी  #मिशनमौजले 

#अमलियात

Wednesday, March 16, 2022

क़ुरआन की बरकत से सिरदर्द दूर होने का सच्चा वाक़या

#allahpathy #aamale_qurani #tibbe_ruhani 

मंसूर भाई: Jamal sahab kalonji par kya padh kar dam karen bimari se shifa k liye?

#आत्मनिर्भरता_कोच: भाई, असल चीज़ शिफ़ा की नीयत है। जब एक आदमी शिफ़ा की नीयत से कलौंजी खाता है तो वह शिफ़ा की तरफ़ क़दम बढ़ाता है।

#क़ुरआन_मजीद में शहद और ताज़ा पानी में भी शिफ़ा का बयान आया है। हदीसों में #sanamakki #ajwadates और तलबीना में भी शिफ़ा बताई गई है।

आदमी ख़ुद से सिर्फ़ कलौंजी पर निर्भर न रहे बल्कि क़ाबिल हकीम से सलाह लेकर #herbs का इस्तेमाल करे जोकि सहाबा का तरीक़ा था।

इसके साथ सूरह फ़ातिहा पढ़े क्योंकि इसका एक नाम #शाफ़िया अर्थात #शिफ़ा/#आरोग्य देने वाली है।

आप इस सूरह के साथ क़ुरआन में से वे 37 आयतें भी जोड़ लें जिनमें

'ला इलाहा इल्ला हुवा

आया है। इन आयतों में #हुवा #इस्मे_आज़म है।

जैसे कि आयतुलकुर्सी में, जोकि सब आयतों की सरदार है और इसका मक़ाम बहुत बुलंद है क्योंकि इस एक आयत में ही 18 जगह अल्लाह का ज़िक्र है और इसमें अल्लाह के अल्-हय्यू और अल्-क़य्यूम नाम भी आएहैं। जो जिंदगी को क़ायम रखने में बहुत उम्दा हैं।

इनके साथ वे आयतें भी जोड़ लें जिनमें शिफ़ा और सलाम का ज़िक्र आया है।

इतना काफ़ी है।

अगर और ज़्यादा पावर चाहें तो इनके साथ वे आयतें भी पढ़ें, जिनमें रहस्यमय हुरूफ़े मुक़त्तिआत आए हैं जैसे कि '#काफ़हायाऐनसाद' '#हामीमऐनसीनक़ाफ़' आदि। क्योंकि इन हुरूफ़ का क़ुरआन की हिफ़ाज़त में बहुत दख़ल है। 

इस पूरे संकलन को #ruqyah कहेंगे।

यह एक #bestruqyah है।

#Alhamdulillah 

इन सबको 7 बार पढ़कर कलौंजी, शहद या पानी पर और दवा पर फूंक करके खाएं और ख़ुद पर भी सुबह शाम दम करें।

इन् शा अल्लाह इन आयतों से आपको अज़ीम #बरकत हासिल होगी। जिसे आप और सब देखेंगे।

इन्हें न सिर्फ़ शिफ़ा और सलामती के लिए बल्कि हरेक मक़सद और मुराद के लिए पढ़ा जा सकता है और इनसे जल्दी काम के असबाब बन जाते हैं।

सब मक़सद की नीयत एक साथ भी की जा सकती है।

#नीयत बहुत अहम है।

काम नीयत पर निर्भर है।

ये आयतें सभी बुज़ुर्गों के डेली रूटीन के #वज़ीफ़े में शामिल हैं।

#अल्लाहपैथी #اعمال_قرآنی #atmanirbharta_coach 

#shama_shabistane_raza #dua #quran 

#Wazifa

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Part 2

#Allahpathy

Mansoor Lko : Jamal sahab, hum gunahgaro ka Iman or Aqeeda itna pukhta nhi ki ek mamuli se kale Dane par yaqeen kar sake isliye aap k bataye tarike se hamne sirf 11-11 martaba surah fatiha or ayetalkursi padh kar #kalonji par dam karke apne Bhai ko dava k sath di to uske sar ka dard, jo pichhle 3 din se ho rha tha aur Kai tarha ki dava khane k baad bhi koi aaram nhi tha, #alhamdulillah sirf 15-20 minute me ghayab ho gaya.

#atmanirbharta_coach: मंसूर भाई, मैं आपकी क़द्रदानी की वजह से सचमुच आपसे ख़ुश हूँ। आपके सामने एक समस्या थी और अल्लाह क़ुरआन और हदीस में उसकी शिफ़ा के असबाब का इल्म दे चुका है और मैं उस इल्म को और अपने 37 साल के तजुर्बात को आम कर रहा हूँ तो आपने उस पर ध्यान दिया और उस इल्म को बरतकर अपने भाई का सिरदर्द दूर किया।

अल्हम्दुलिल्लाह!

इससे हमारे सभी पाठकों के ईमान में इज़ाफ़ा होगा। ख़ास तौर से भाई Khalid Hussain Advocate जैसे लोगों को भी आपके बयान से अपनी उस बेअसल आपत्ति का जवाब और सुबूत मिल चुका है, जो वह मुझे एक कमेंट में लिख चुके हैं कि #क़ुरआन पढ़ने से कुछ नहीं होता।

मैं कहता हूँ कि क़ुरआन पढ़ने से बीमारी दूर होती है और शिफ़ा मिलती है। आपका तजुर्बा इसका सुबूत है।

जैसा कि आपने ख़ुद को गुनाहगार कहा और यह भी लिखा कि आपका यक़ीन इतना पुख़्ता नहीं है कि कलौंजी के एक मामूली से दाने पर यक़ीन कर सकें कि इतना छोटा सा दाना हमारी बीमारी दूर कर सकता है।

आपकी बात बिल्कुल सही है। अपने गुनाहों को देखना और अपने ईमान को कमज़ोर या कच्चा पाना आम मुस्लिमों का एक आम लक्षण है।

जब भी आपको ऐसा लगे कि मेरी बीमारी में #कलौंजी या #talbinah क्या कर लेगा?

या मेरी बेरोज़गारी, गिरफ़्तारी, रिहाई, क़र्ज़, लड़ाई, दुश्मनी, मुक़द्दमे या निकाह और बच्चे की पैदाईश और उसके सुधार में या मेरे मसले में नबियों की बताई हुई यह चीज़ या उनकी बात क्या कर लेगी?

या मेरी दुआ ही क्या कर लेगी?

क्योंकि मैं गुनहगार हूं और मेरा ईमान कमज़ोर है तो आप 

#हस्बियल्लाहु_ला_इलाहा_इल्ला_हुवा_अलैहि_तवक्कल्तु_वहुवा_रब्बुल_अर्शिल_अज़ीम'

सुबह शाम 7-7 बार पढ़ें और इसे चलते फिरते हुए भी बहुत पढ़ें और अपने मक़सद की दुआ करें। इस आयत में #इस्मे_आज़म है और #अल्लाह का नाम है और इसमें उसके #अर्श (सिंहासन) का #ज़िक्र है, जहाँ से हुक्म जारी होता है और फिर वह हुक्म पूरे यूनिवर्स में फैलता है।

बुज़ुर्गों ने अपना तजुर्बा यह बताया है कि चाहे आदमी सच्चे दिल से इसे पढ़े या झूठे दिल से, उसकी परेशानी दूर हो जाएगी।

...और होनी भी चाहिए क्योंकि इस #आयत में #greatestname #IsmeAzam #Huwa #ismezaat #Allah और उसके सिफ़ाती नाम के साथ, #रब के साथ मौजूद है।

मुझे इस आयत का कॉन्बिनेशन बहुत पसंद है।

जब से मैंने इसे पढ़ना शुरू किया है, तब से मुझे लगातार राहत और ज़्यादा राहत है।

#अल्हम्दुलिल्लाह 

#अल्लाहपैथी #आत्मनिर्भरता_कोच #tibbe_ruhani #aamale_qurani #shama_shabistane_raza #अमलियात #عملیات