कह दीजिए कि वह अल्लाह अहद (एक) है।
अल्लाह अस्समद है। (यानी आत्मनिर्भर, दूसरों पर निर्भर होने से बेनियाज़ है और self sufficient है।)
न उसने किसी को (मनुष्यों की तरह) जन्म दिया और न ही उसे किसी ने जन्म दिया।
और न ही कोई उसके कुफ़ू (बराबरी) का है।
#Quran #surahikhlas
हम सूरह इख़्लास की पहली आयत के बारे में आपको बता चुके हैं।
दूसरी, तीसरी और चौथी आयत भी बिल्कुल क्लियर है।
अल्लाह अस्समद है यानी हर चीज़ और हर इंसान अपनी ज़रूरत की पूर्ति के लिए अल्लाह पर निर्भर है लेकिन वह किसी पर निर्भर नहीं है। अपनी मुराद की पूर्ति के लिए लोग उसकी तरफ़ तवज्जो करते हैं।
कोई भी उसकी हस्ती में से नहीं निकला कि उसका अंश या वंश हो और न ही वह ख़ुद किसी में से निकला कि वह किसी का वंश या बेटा हो।
कोई भी अल्लाह के कुफ़ू का नहीं है यानी कोई भी उसके जोड़ और बराबरी का नहीं है। मैंने अपने बच्चों को बताया कि जैसे शैख़ अदब अली अपनी बेटी बाला ख़ातून का निकाह उस्मान से करते हैं तो वह उन्हें एक दूसरे के जोड़ और बराबरी का देखकर ही उनका निकाह करते हैं। एक इंसान के 'कुफ़' यानी बराबरी के कई इंसान होते हैं लेकिन कोई भी अल्लाह के कुफ़ू का नहीं है।
हैरत की बात यह है कि सूरह इख़्लास की चारों आयतें 'अल्लाह' के वुजूद का परिचय देती हैं और इसी के साथ ये चारों आयतें #अल्लाह नाम के बारे में भी पूरी उतरती हैं।
1. अल्लाह नाम अहद है यानि यह नाम एक होकर एक है। अल्लाह नाम दो शब्दों से मिलकर नहीं बना।
2. अल्लाह नाम अपना अर्थ देने में दूसरे किसी शब्द पर निर्भर नहीं है। यह नाम अपना अर्थ देने के लिए अपने आप में काफ़ी है।
3. न अल्लाह नाम किसी शब्द या धातु से निकला है और न अल्लाह नाम से किसी शब्द ने जन्म लिया है।
4. कोई भी दूसरा नाम अल्लाह नाम के कुफ़ू (बराबरी) का नहीं है। अपनी तरह का यह अकेला नाम है।
इस नाम की हैरत में डालने वाली ख़ासियत यह है कि अगर इस नाम से एक एक हरफ़ हटाते रहें, तब भी यह नाम अपने अंदर अल्लाह की हस्ती की तरफ़ ठीक ठीक इशारा और अर्थ देता रहता है।
जैसे कि अल्लाह नाम में से अलिफ़ हटा दें तो लिल्लाह للہ रहता है। जिसका अर्थ 'अल्लाह का' है।
अब इसमें से एक और हरफ़ लाम हटा दें तो 'लहु' शब्द बचता है। जिसका अर्थ है 'उसी का'।
अब इसमें से फिर एक हरफ़ लाम हटा दें तो 'हु' बचता है और 'हु' का अर्थ है 'वह'।
इन चारों शब्दों से क़ुरआन मजीद में आयतें शुरू होती हैं और वहाँ ये चारों शब्द अल्लाह के वुजूद की तरफ़ इशारा देते हैं जैसे कि
1.अल्लाहु ला इलाहा इल्ला हुवल हय्युल क़य्यूम।
اَللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ١ۚ اَلْحَیُّ الْقَیُّوْمُ
-क़ुरआन मजीद 2:255
2.लिल्लाहि माफ़िस्समावाति वमा फ़िल् अर्ज़।
لله ما في السماوات وما في الأرض
-क़ुरआन मजीद 2:284
3.लहु माफ़िस्समावाति वमा फ़िल् अर्ज़ि वमा बैइनाहुमा वमा तहतस्सरा।
لَهٗ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَ مَا فِی الْاَرْضِ وَ مَا بَیْنَهُمَا وَ مَا تَحْتَ الثَّرٰى(۶)
-क़ुरआन मजीद, सूरह ताहा 6
4. हुवल्लाहुल् लज़ी ला इलाहा इल्ला हू।
ھُوَ اللّٰہُ الَّذِیْ لَآاِلٰہَ اِلَّا ھُوَ
-क़ुरआन मजीद, सूरह हश्र 22
अरबी के हरफ़ 'हा' (H) की वजह से अल्लाह नाम अपने आख़री हरफ़ तक रब के वुजूद की तरफ़ इशारा देता है। इसीलिए अल्लाह के नामों की तासीर पर रिसर्च करने वाले बहुत से ज़िक्र करने वालों ने 'हू' को इस्मे आज़म #IsmeAzam लिखा है।
इस्मे आज़म अल्लाह का वह सबसे बड़ा नाम है जो अधिकतर आलिमों से पोशीदा है और उस नाम की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि उसके साथ जो भी दुआ माँगी जाती हे, वह क़ुबूल होती है, चाहे दुआ करने वाला कितना ही गुनाहगार हो।
अब यह इस्मे आज़म है या नहीं?
यह बात आप ख़ुद इसके साथ दुआ करके देख सकते हैं।
#इख़्लास और #यक़ीन के साथ इस बरकत वाले नाम के साथ दुआ करें और इस नाम की तासीर देखें।
*पार्ट 2*
#इस्मे_आज़म सीरीज़ का मक़सद यह है कि आपको दुआ की क़ुबूलियत में #आत्मनिर्भर बना दिया जाए। जब आपको कोई काम करना हो तो आपको किसी ज़िन्दा बुज़ुर्ग के पास या किसी वली की क़ब्र पर दुआ के लिए जाने की ज़रूरत न रहे। जो काम रूहानी ताक़त वाले बुज़ुर्गों ने किया है, वह आप कर लें। जैसे वे अपने काम करते थे, उनके तरीक़े पर आप भी अपने काम कर लें।
सिलसिला ए #नक़्शबंदिया के एक बड़े #इमाम #सूफ़ी और पेशवा हुए हैं। उनका नाम है #बायज़ीद बुस्तामी (रहमतुल्लाहि अलैह)।
आज भी पूरी दुनिया में उनका नाम इज़्ज़त से लिया जाता है।
वह क्या करते थे?
वह रोज़ रात को
#SurahAlIkhlas #QulHuwalLaHuAhad 16,000 बार पढ़ते थे यानी लगभग पूरी रात वह एक ही सूरत पढ़ते थे।
एक दिन उनकी माँ ने उन्हें आराम देने की नीयत से और उन्हें लिटाने के लिए कहा कि बायज़ीद! ज़रा अपना बाज़ू तकिए की तरह मेरे सिर के नीचे रखो ताकि मुझे आज आराम की नींद आ जाए। उनका मक़सद यह था कि बायज़ीद लेट जाएगा और यह सो जाएगा।
बायज़ीद अपनी माँ का हुक्म मानने वाले बेटे थे। सभी वली ऐसे ही थे। मां बाप का हुक्म नज़रअंदाज़ करके कोई भी अल्लाह का वली नहीं बन सकता।
माँ के कहने पर बायज़ीद आ गए और अपनी माँ के सिर के नीचे हाथ रखकर लेट गए और जब माँ सो गई तो भी वह जागते रहे और उन्होंने उसी पोज़िशन में लेटे लेटे ही अपने हाथों की उंगलियों पर गिनते हुए 16,000 बार सूरह #इख़्लास पूरी पढ़ी। जोकि उनका रोज़ रात का नियम था। उन्होंने अपना नियम पूरा किया। जो भी आदमी अपने माँ-बाप की ख़िदमत करे, अपनी आदतें अच्छी करे और लगभग पूरी रात इबादत करे तो उसे अल्लाह का वली बनना ही है। उसकी दुआओं को पूरा होना ही है।
आप उनके नियम का 16वाँ टुकड़ा अदा कर लें।
आप बस एक हज़ार बार सूरह इख़्लास पढ़ें। यह क़ुरआन की 112वीं सूरह है और इसमें सिर्फ़ 4 आयतें हैं। इसमें इस्मे आज़म है।
अब आपकी हर मुराद पूरी होगी।
बस एक ख़ास काम आपको करना है और वह काम यह है कि अगर आप ग़रीब हैं और मालदारी के लिए आप यह मुबारक सूरह पढ़ें तो पहले आप ग़रीबी को कुछ देर के लिए छोड़ दें। कम से कम उतनी देर के लिए, जितनी देर आप यह सूरह पढ़ें। ग़रीबी से निकलने का मतलब ग़रीबी के ख़याल से निकलना है और ऐसा तब होगा, जब आप अमीरी के ख़याल में घुस जाएं।
ग़रीबी और अमीरी को लिबास की तरह बदला जा सकता है।
आप ख़याल करें कि आप मालदार हैं और अब अपने ख़याल में वे काम करें जो आप मालदार बनने के बाद करेंगे। आप ये काम ऐसे करें मानो आप सचमुच ऐसा कर रहे हैं। इससे आपको ख़ुशी मिलेगी। यह ख़ुशी का एहसास ही आपके #माइंड को #यक़ीन दिलाएगा कि यह सच है। जब आपके माइंड को यक़ीन आ जाता है कि यह सच है तो उससे माइंड में एक नक़्श, एक पैटर्न बन जाता है और फिर माइंड उसे आपकी ज़िन्दगी में साकार कर देता है। आपको जानना ज़रूरी है कि #परमेश्वर #अल्लाह ने आपको #आत्मनिर्भर बनाया है। हरेक बच्चे और हरेक बच्ची को आत्मनिर्भर बनाया है। हरगिज़ यह न करें कि गर्भ में या गोद में बेटी देखें और उसे मार दें या उसका सही इलाज न कराएं कि यह मर जाए और न बेटों को मारें कि हम ग़रीब रह जाएंगे।
दुबई ग़रीब था। दुबई के शैख़ ने अक़्ल से काम लिया। आज दुबई में सोने की कारें चलती हैं और एटीएम मशीन से सोने के बिस्किट निकलते हैं और वहाँ लोग कुत्ते की जगह शेर पालते हैं।
मक्का दुबई से भी ज़्यादा रिच है, जहाँ सबसे पहले सूरह इख़्लास पढ़ी गई। वहाँ भी बहुत ग़रीबी थी। वहाँ के लोग खिलाने के डर से अपनी लड़कियों को मिट्टी में ज़िंदा गाड़ देते थे। उनके पास खाने के लिए काफ़ी फ़ूड नहीं होता था। यह ग़रीबी हक़ीक़त में विश्वास की ख़राबी और रब की दी हुई योग्यताओं से काम न लेने और छोटी छोटी बात पर बड़ी बड़ी लड़ाईयां लड़ने का अंजाम थी। सूरह इख़्लास ने इनका इलाज किया।
आप रात को बिल्कुल आख़िर में पाक साफ़ होकर अपने धनी #ग़नी होने का #तसव्वुर (#इमेजिनेशन) करते हुए सूरह इख़्लास पढ़ें। इससे आपमें एनर्जी लेवल बढ़ेगा। इमेजिनेशन करने और उसके साथ गिनती का ध्यान रखने से आपके ब्रेन के दोनों हिस्से काम करते हैं। इस ख़ास तरीक़े से आपका पूरा ब्रेन काम करता है क्योंकि आपका #leftbrain logical है और #rightbrain emotional है। इस ख़ास तरीक़े में आप इमोशन और लॉजिक (यानी काउंटिग) दोनों से एक साथ काम ले रहे हैं।
इससे आपके नफ़्स में बदलाव आ रहा है और अल्लाह कहता है कि जब कोई अपने आप में बदलाव ले आता है तो अल्लाह उसे बदल देता है। देखें सूरह रअद आयत 11
إِنَّ اللَّهَ لا يُغَيِّرُ مَا بِقَوْمٍ حَتَّى يُغَيِّرُوا مَا بِأَنْفُسِهِمْ
[الرعد: 11]
यानी आपको अपने अंदर बदलाव लाने में भी आत्मनिर्भर बनाया गया है। आप चाहें तो अपने अंदर अभी बदलाव ला सकते हैं।
ऐसे ही एक बेरोज़गार ख़ुद को कल्पना में रोज़ी कमाते हुए और सैलरी लेते हुए देखे और सूरह इख़्लास पढ़े।
अगर एक कुंवारी लड़की निकाह जल्दी चाहती है तो अपने निकाह का मंज़र देखे कि वह निकाह के फॉर्म पर साइन कर रही है और साइन के नीचे डेट लिख रही है। वह जिस डेट को अपना निकाह चाहती है। वही डेट लिखे। यह सब अल्लाह से अच्छा गुमान करना है। अल्लाह के लिए आसान है कि वह इस गुमान को सच कर दे।
मुझे इंटरनेट पर सूफ़ियों के क़ादरी सिलसिले के एक वज़ीफ़े की एक इमेज नज़र आई। मैंने उसमें एडिट करके यह ख़ास तरीक़ा बढ़ा दिया है।
यह अमल करते ही आप बिना किसी से बात किए और बिना ध्यान बंटाए सो जाएं। इससे आपका #सब्कॉन्शियस_माइंड पूरी रात आपके तसव्वुर को हक़ीक़त में बदलने के लिए काम करेगा।
इन् शा अल्लाह!
हर आदमी की हरेक ज़रूरत को पूरा करने के लिए बस यही एक रूहानी अमल काफ़ी है क्योंकि यह इस्मे आज़म का अमल है।
आप यह रूहानी अमल और #अल्लाहपैथी का यह ख़ास तरीक़ा अपने सब भाई बहनों को बता दें।
हरेक धर्म का और हरेक उम्र का छोटा बड़ा आदमी पाक साफ़ होकर यह अमल कर सकता है। नापाकी की हालत में यह अमल न करें। जो आयतें पढ़नी हैं, वे ये हैं:
क़ुल हुवल्लाहू अहद
अल्लाहुस् समद
लम यलिद वलम यूलद
वलम यकुन्-लहू कुफुवन अहद
सूरह इख़्लास का अर्थ यह है:
(हे ईश दूत!) कह दोः अल्लाह अहद (अकेला) है।
अल्लाह अस्समद (निरपेक्ष और सर्वाधार) है।
न उसकी कोई संतान है और न वह किसी की संतान है।
और न उसके बराबर कोई है।
अर्थ केवल समझने के लिए लिखा है। इसे वज़ीफ़े में नहीं पढ़ना है।
#atmanirbharta_coach #wellness_series #allahpathy #रूहानीअमल #mission_mauj_ley #اعمال_قرآنی
*पार्ट 3*
#Allahpathy की #ismeAzam series में आगे...
आम तौर से एक बच्चा तक इस्मे आज़म वाली आयतें पढ़ता है जैसे कि जब वह आयतुलकर्सी और #सूरह_इख़्लास पढ़ता है लेकिन वह रिकग्नाइज़ नहीं कर पाता कि वह दुनिया का सबसे बड़ा ख़ज़ाना पा चुका है।
वह उससे ज़्यादा काम भी नहीं ले पाता क्योंकि इसके लिए #तसव्वुर की तख़्लीक़ी क़ूव्वत (कल्पना की सृजनात्मक शक्ति) की एक्सरसाईज़ ज़रूरी है।
#सूफ़ी और रूहानी आमिल जब भी कोई ज़िक्र या #रूहानीअमल करते हैं तो वे तसव्वुर ज़रूर करते हैं। इसीलिए उनके #ज़िक्र में और उनके अमल में तासीर होती है। जब एक आदमी अल्लाह के किसी भी मुबारक नाम के साथ अपनी मुराद का तसव्वुर (imagination) जोड़कर उससे अपनी हाजत पूरी करने की कुंजी पा लेता है, तब अगर वह तलाश करता है तो उसे #इस्मे_आज़म भी मिल जाता है।
यह रब की तरफ़ से एक सम्मान होता है। इससे उसकी रब के नामों की मारिफ़त में और ज़्यादा इज़ाफ़ा होता है और उसकी #रूहानी ताक़त में भी।
मैंने अपनी तालीम में #powerofimagination पर बहुत ज़ोर दिया है।
यही वह #masterkeysystem है, जिससे आप #isme_azam की तासीर ले सकते हैं वर्ना इस्मे आज़म की आयतें सब मुस्लिम पढ़ते हैं बल्कि #वैदिक सनातन धर्म वाले भी अपने धर्मग्रंथों में वह नाम पढ़ते हैं और #ईसाई और #यहूदी तक पढ़ते हैं
... लेकिन यहूदी #तौरात की वजह से इस्मे आज़म को अच्छी तरह पहचानते हैं और वे उससे काम लेने के बहुत उम्दा तरीक़े जानते हैं। उनकी वैज्ञानिक तरक़्क़ी की ख़ास वजह उनका इल्मे इस्मे आज़म 'ही है/भी है।' जो मानना आसान लगे, आप मान लें।
इस तरह आप जान लेंगे कि मसला इस्मे आज़म मिलने का नहीं है बल्कि #हिदायत मिलने का है। हिदायत में उस तरीक़े की हिदायत भी आ गई है जिससे इस्मे आज़म से काम लिया जा सके।
#क़ुरआन में अल्लाह से अच्छा गुमान रखना ईमान की और #अल्लाह से बुरे गुमान रखना मुनाफ़िक़ों की निशानी बताई गई है और उनके बुरे गुमानों की वजह से उन्हें भयानक अज़ाब मिलना बताया है, जिससे आप रब की नज़र में गुमान यानी कल्पना की अहमियत का अंदाज़ा कर सकते हैं।
وَيُعَذِّبَ ٱلْمُنَٰفِقِينَ وَٱلْمُنَٰفِقَٰتِ وَٱلْمُشْرِكِينَ وَٱلْمُشْرِكَٰتِ ٱلظَّآنِّينَ بِٱللَّهِ ظَنَّ ٱلسَّوْءِ ۚ عَلَيْهِمْ دَآئِرَةُ ٱلسَّوْءِ ۖ وَغَضِبَ ٱللَّهُ عَلَيْهِمْ وَلَعَنَهُمْ وَأَعَدَّ لَهُمْ جَهَنَّمَ ۖ وَسَآءَتْ مَصِيرًا
अर्थात् और (वह) यातना दे #मुनाफ़िक़ पुरुषों तथा स्त्रियों को, जो बुरा विचार रखने वाले हैं अल्लाह के संबंध में। उन्हीं पर बुरी आपदा आ पड़ी तथा अल्लाह का प्रकोप हुआ उनपर और उसने धिक्कार दिया उन्हें तथा तैयार कर दिया उनके लिए नरक और वह बुरा जाने का स्थान है।
-सूरह फ़तह आयत 6
जब एक आदमी के मोबाईल की बैल बजती है और उसका दिल धड़कने लगता है कि कहीं से कोई बुरी ख़बर न आई हो तो उसमें यह मुनाफ़िक़ का गुण है और इस गुण की वजह से वह ज़िन्दगी में कष्ट पा रहा है, उसे पता नहीं है। अगर उससे कहो कि अल्लाह से हमेशा अच्छा गुमान रखो तो वह इस बात को हल्के में लेता है और नज़रअंदाज़ कर देता है।
जो कोई इस्मे आज़म की तासीर पाना चाहे, वह मेरी इस बात को बहुत ज़्यादा अहमियत दे। यहाँ तक कि उसे हर तरफ़ से आदमी घेरकर कहें कि हम तुम्हारे हाथ पैर तोड़ देंगे तो अपनी कल्पना में उन्हीं के हाथ पैर टूटे हुए देखे और इस्मे आज़म वाली आयत या इस्मे आज़म की दुआ पढ़े। अगर इस कल्पना के साथ वह #SurahLahab भी पढ़ेगा तो उसकी तासीर ज़ाहिर होगी जबकि इस सूरह में इस्मे आज़म नहीं है।
मेरा गुमान है कि अब आप समझ गए होंगे कि '#हुवा' इस्मे आज़म है और इससे तासीर वही आदमी ले सकता है, जो अपने दिल में अपनी पसंद के ख़याल को देर तक टिका सके। जो अपने दिल को बुरे यक़ीन, बुरे गुमान और वसवसों से पाक करता रहे यानि दिल पर नज़र रखे और बुरे ख़याल को #लाहौल पढ़कर हटाता रहे।
ऐसे ही आदमी को #अल्लामा_इक़बाल ने ख़ुद आगाह कहा है। जो ख़ुदी को पहचानता है, वह इस्मे आज़म से अपने हक़ में काम ले सकता है।
अब आप यह इमेज देख लें जिसमें अल्लाह के नाम से और क़ुरआन से बरकत हासिल करने वाले #रूहानी बुज़ुर्गों ने तसव्वुर और गुमान की ताक़त के साथ #आयतुलकुर्सी पढ़ने का एक ख़स तरीक़ा यह बताया है:
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#अमलियात