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Saturday, August 24, 2019

क्या नज़र का असर दुआ पर भी होता है? -Dr. Anwer Jamal

आप जानते ही हैं कि नज़र और नज़रिए का असर इंसान की ज़िंदगी पर पड़ता है।
उसकी नज़र और उसके नज़रिए का असर उसकी दुआओं पर भी पड़ता है।
जो आदमी चाहता है कि मेरी दुआ क़ुबूल हो। उसे अपनी नज़र और अपने नज़रिए को चेक करना होगा।
खुद इंसान का अपने बारे में क्या नज़रिया है? क्या वह ख़ुद को इतना ज़्यादा गुनहगार मानता है कि उसकी दुआ कुबूल नहीं हो सकती?
अगर उसका नज़रिया ऐसा है तो फिर वैसा ही होगा जैसा कि उसका नज़रिया है और उसकी दुआ क़ुबूल न होगी। आपकी दुआओं को ख़ुद आपकी नज़र लगी हुई है।
जब वह दुआ करता है या किसी काम के होने की नीयत से अल्लाह का कोई नाम या उसके मुबारक कलाम की आयत पढ़ता है तो उसकी नज़र (तवज्जो) अपने काम पर जमी रहती है या वह इधर उधर, हर तरफ़ भटकती रहती है?
अगर ऐसा है तो यह नेचुरल है कि उसकी दुआ अपना असर ज़ाहिर न करे और उसकी मुराद पूरी न हो।

दुआ का असर ज़ाहिर होने के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि आपका नज़रिया आपकी दुआ को सपोर्ट करता हो और जब आप अपना काम होने के लिए दुआ करें या अल्लाह का नाम या कोई आयत पढ़ें तो उस वक़्त आप अपनी नजर से अपने दिल में अपने काम को देखते रहें। आप उसे वैसा ही देखते रहें जैसा कि आप चाहते हैं कि वह काम हो। आप उसे देखकर वैसी ही ख़ुशी महसूस करें जैसी कि आपको उस काम के होने पर सचमुच होगी। मानो वह सब आप पर सचमुच बीत रहा है और आप उस सीन का एक हिस्सा (participant) हैं न कि ऑब्ज़र्वर। उसे पाँचों सेंस से रियल फ़ील करें। आप उसमें विज़न, टेस्ट, टच, साउंड और स्मैल को फ़ील करें। जैसे कि किसी जगह पर इंसान सचमुच इन सबको फ़ील करता है।
यह एक माईंड सीक्रेट है। इसे ख़ूब अच्छी तरह समझ लें।

मैं जानता हूं कि आप दुआ क़ुबूल होने के लिए हलाल माल खाना, इख़्लास, यक़ीन, पक्का ईमान और तौहीद का सही होना जैसी बातें पहले से ही जानते हैं। इसलिए मैंने उनका यहां जिक्र नहीं किया। मैंने सिर्फ उन बातों का जिक्र किया है जिनका ज़िक्र दुआ की आम किताबों में नहीं मिलता।

और यहां भी मैंने उनका उतना ज़िक्र नहीं किया जितना कि किया जाना चाहिए। यह आर्टिकल लिखते हुए मैंने तय किया था कि मैं इसे बहुत छोटा रखूंगा।
जो कुछ मैंने कहा है, उसे सामने रखते हुए अब आप साथ में दी गई इमेज में बताए गए तरीके को समझें और दुआ करें। 
हर काम की तरह दुआ भी एक काम है और हर काम की तरह आपको इस काम की कुछ दिन प्रैक्टिस करनी होगी। इस प्रैक्टिस के बाद इन् शा अल्लाह आपकी दुआओं का असर ज़ाहिर होने लगेगा। 

यकीनन अल्लाह अपने बंदों पर बहुत ज़्यादा मेहरबान है। वह अपने बंदों की दुआ सुनता है जैसे एक मां अपने कमज़ोर बीमार बच्चे की ज़्यादा देखभाल करती है और उसकी बात सेहतमंद बच्चों से ज़्यादा जल्दी सुनती है, वैसे ही अल्लाह अपने बीमार बंदों की दुआ ज़्यादा जल्दी सुनता है। याद रखें, गुनाह दिल की बीमारियां हैं।
अगर आप ख़ुद को बहुत गुनाहगार मानते हैं तो आप इस नज़रिए को अपने दिल में जमा लें। फिर दुआ करें।
Mind Secret na janne wali awaam ko ye sab laws sikhana kisi ek aadmi ke liye mumkin nhi hai.
🌹
Aise me unhe misalon ke zariye baat batayi jati hai.
💚
Dua ki qubuliyat me aam log bahut rukawat mehsus karte hain aur
Woh kisi kamil wali,
Kisi mustajabud-dawat buzurg ko talashte hain
Ki
Woh unke liye dua kar de.
💚
Mera dil bachpan se chahta tha ki
Main mustajabud-daa'waat jo jaun.
😊
Maine Dua par hisne haseen se shamsul maarif tak sab kitaben padh dalin.
Pichhle 30-35 saal me jo kaam ki baat pata chali h, woh aapko *Free* sikha raha hun kyonki aaj main fursat me hun.
Alhamdulillah.
🕋
Is 'ILM' ki qadr karen.

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