हमने रात बेसब्री से काटी और सुबह को उठकर पानी में भिगोए हुए पांच अंजीर खाए। पेट साफ़ हो गया। नाश्ते में तलबीना खाया और मिस्वाक करके बिन्ते हव्वा से अम्बर की ख़ुश्बू लगवाई और हमने अपनी बीवी का शुक्रिया अदा करके हकीम साहिब के नीम तले वाले दवाख़ाने की तरफ़ रवाना हो गए।
उनका दवाख़ाना सुबह सुबह ही खुल जाता है। वह कहते हैं कि इससे रोज़ी में बरकत होती है। हमने देखा कि चार-पांच मरीज़ हैं और उनका एक असिस्टेंट हावन दस्ते में दवाएं कूट रहा है। हकीम साहिब मरीज़ों को फ़ारिग़ करके ‘मक्तूबाते मुजद्दिी रह.’ पढ़ रहे हैं, आराम से। वह हार्ड वर्क नहीं करते। उनका कहना है कि जैसे जैसे इल्मो हिकमत बढ़ता जाता है, वैसे वैसे रोज़ी के लिए बदन की मशक़्क़त कम होती चली जाती है।
हमने तरीक़े के मुताबिक़ सलाम अजऱ् किया। वो बड़ी अदा से मुस्कुराए। उनकी उम्र कोई ज़्यादा नहीं है। काफ़ी प्रोडक्टिव भी हैं। सात-आठ बच्चे हैं, मा शा अल्लाह! वैसे भी ये हकीम और होम्योपैथ कभी बूढ़े नहीं होते। हकीम तो जवारिश जालीनूस, माजून आरदे ख़ूरमा और हलवा घीक्वार खाते रहते हैं और होम्योपैथ जिनसेंग और डेमियाना। नीम हकीम साहिब को तो ये दोनोें ही तरीक़ा ए इलाज मालूम थे। हम ख़ुद अपनी गृहस्थी उनकी दुआ और दवा की बरकत से खींच रहे थे।
हमने बड़े अदब से अजऱ् किया कि हज़रत कल एक बात अधूरी रह गई थी। आपने कहा था कि आप कल बताएंगे कि चांदी चाचा आपका नाम आते ही इतना ख़फ़ा क्यों हो जाते हैं? जबकि वह आपको अपने घर पर एक बार दावत भी खिला चुके हैं और हमने उस दावत के फ़ोटो व्हाट्सएप पर देखे थे आपके ग्रुप पर।
हकीम साहिब ने फ़रमाया कि भाई, बात दरअसल यह है कि चांदी चाचा में छल कपट नहीं है। इनका पूरा घर ही नेक शरीफ़ और भोला भाला है। ये भोले इतने ज़्यादा हैं कि अगर चार लोग हमें मसीहा कह दें तो ये भी मान लेंगे कि हम मसीहा हैं और अगर इनके मिलने वाले चार लोगों का इज्मा हो जाए कि हकीम साहिब मश्कूक हैं तो ये भी मश्कूक हो जाएंगे।
दिलपुर में जब हमारा पहला लेक्चर हुआ तो यह हमें बस अड्डे तक बाइक से छोड़ने आए थे। चांदी चाचा ने हमें बड़ी इज़्ज़त दी थी। तब उन्होंने हमें बताया कि उनकी बेगम उन्हें छोड़कर अपने मायक़े चाक़ूपुर में जा बैठी हैं अपनी मां के पास। महीने हो गए हैं चार। मैं सोच रहा हूं कि उन्हें तलाक़ दे दूं।
तब हमने उन्हें आधा घंटे वहीं सड़क पर खड़े हो कर समझाया था कि यह ‘ख़याल’ अपने दिल से निकाल दो। इस तरह के हालात निकाह के बाद आते हैं और जब उन्हें नरमी से हैंडल किया जाता है तो वे हल हो जाते हैं और फिर लाइफ़ ख़ुशगवार गुज़रती है।
हमने उन्हें कुछ ऐसी बातें मज़ीद बताईं जिनसे मियां-बीवी में मुहब्बत बढ़ती है। फिर एक बार जयपुर से लौटते वक़्त हम इनके घर गए ताकि हम चांदी चाचा के दिल को मज़ीद तक़कियत दें। उसी दिन उन्होंने हमें मुगऱ् खिलाया था, जिसके फ़ोटो दुनिया ने देखे थे। उस फ़ोटो में चांदी चाचा मा शा अल्लाह बहुत प्यारे नज़र आ रहे थे। हो सकता है कि उसे देखकर ही किसी की नज़रे बद लग गई हो हमारे रिश्ते को।
‘फिर बीवी लौटी क्या हकीम साहिब?’-हमने तजस्सुस के साथ पूछा।
‘हां, लौट आई। अल्लाह का शुक्र है। बिछड़ों को मिलाना ही तो अपना काम है।‘-हकीम साहिब ने कहा।-‘इसी के साथ इनके दो काम और हुए।’
‘वह कौन से काम हुए?’-हमने पूछा।
‘इनकी अम्मी और नानी साहिबा बहुत नेक और वलिया औरतें हैं लेकिन वे भी बहुत भोली और भली हैं। डेढ़ साल से उन्होंने अपनी एक बेटी को ससुराल नहीं भेजा था। उन्होंने हमसे उस लड़की के बारे में सलाह मांगी कि हम इस लड़की को तलाक़ दिलवा कर दूसरी जगह इसका निकाह करने की सोच रहे हैं। हमने पूछा कि क्या ससुराल वाले लड़की को सताते हैं?
वह बोलीं कि नहीं सताते नहीं हैं। वे तो बहुत प्यार से रखते हैं।
हमने पूछा कि क्या ससुराल वाले लड़की को लेने नहीं आते?
अम्मी साहिबा ने बताया कि लेने के लिए भी वे अक्सर आते रहते हैं लेकिन हम ही नहीं भेजते।
हमने पूछा क्यों?
बोलीं कि वे इस लड़की से कहते हैं कि तुम हमारी बहू हो। बहू की तरह ज़ेवर और भारी कपड़े पहनकर रहा करो। हमारी लड़की को ज़ेवर और भारी कपड़ों की आदत नहीं है। इसलिए यह वहां जाना नहीं चाहती।
हमने कहा कि अगर आपने दूसरी जगह इस का निकाह कर दिया और उन्होंने इसे प्यार न दिया तो फिर आप क्या करेंगी? ये लोग इसे प्यार और इज़्ज़त देते हैं लिहाज़ा यहां से इसे तलाक़ न दिलाएं। अपनी बेटी को समझाएं और इसे इसकी ससुराल रूख़सत करें। आपस में तालमेल बैठाने के लिए समझदारी और मुहब्बत से काम लें। हालांकि हम इस वेलनेस कोचिंग की फ़ीस लेते हैं लेकिन हमने इनसे एक रूपया नहीं लिया। आने जाने का किराया तक ख़ुद हमने अपना ख़र्च किया।’-हकीम साहिब ने बताया।
हमने कहा-‘आपने बहुत नेक सलाह दी और चांदी चाचा के साथ उनकी बहन का घर भी बचा लिया, अल्हम्दुलिल्लाह!’
हकीम साहिब बोले-‘मियां हम कौन हैं बचाने वाले, वह अल्लाह है बचाने वाला। जिसे वह बचाना चाहता है, उसके लिए बचने के असबाब बना देता है। यह ज़मीनो आसमान उसी का मुल्क है और इसमें उसी का हुक्म चलता है।’
हकीम साहिब ने ख़ुद को भी हलाक होने से बचाया और हमारे अक़ीदे की इस्लाह भी कर दी।
हमने कहा कि और वह तीसरा काम कौन सा था हकीम साहिब?
हकीम साहिब बच्चे की तरह हमें ताकने लगे। बोले बता दूं?
हमने कहा-‘क्यों, यह आप क्यों पूछ रहे हैं?’
हकीम साहिब बोले-‘उस वाक़ये का ताल्लुक़ नीयत और तसव्वुर से है। अब तक की बातें तो आपका रीज़निंग माइंड समझ लेगा लेकिन तीसरा वाक़या आपके सिर पर से गुज़र सकता है।’
हमने कहा कि हमारे सिर से गुज़र भी गया तो ऊपर नीम है। वह उस नीम में जाकर अटक जाएगा।
वह और हम साथ साथ क़हक़हा मार कर हंसने लगे।
ज़रा हकीम साहिब की हंसी कम हो और वह बताने की हालत में आएं तो हम उनसे सुनेंगे ‘तसव्वुर की ताक़त का करिश्मा’
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