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Saturday, August 1, 2015

क्या अपाहिज भ्रूणों को मार देने के बाद भी डाक्टर को मसीहा कहा जा सकता है ? 'Spina Bifida'

मेरी बेटी अनम का नाम हिंदी ब्लॉग जगत के लिए एक जाना पहचाना नाम है। हिंदी ब्लॉग जगत में उसकी उम्र के किसी बच्चे का  इतना चर्चा नहीं हुआ, जितना कि उसका हुआ है।
यह ठीक वही वक्त है जब हमने अपनी प्यारी अनम को उसके झूले में मृत पाया था। आज से ठीक एक साल पहले 21 और 22 जुलाई की दरम्यानी रात को जब वह सोई तो हम नहीं जानते थे कि सुबह को उसके पालने से जब हम उसे उठाएंगे तो वह हमें एक बेजान लाश की शक्ल में मिलेगी। महज़ 22 दिन इस दुनिया में रहकर वह चल बसी और अच्छा ही हुआ कि वह चल बसी।
'Spina Bifida' की वजह से वह पैदाइशी तौर पर एक अपाहिज बच्ची थी। उसकी दोनों टांगें बेकार थीं। उसके सिर की हड्डियों के बनने में भी कुछ कमी रह गई थी और उसकी रीढ़ की हड्डी भी तिरछी थी। उसकी पैदाइश से पहले जब लेडी डाक्टर मीनाक्षी राना ने उसकी सेहत को जांचने के लिए अल्ट्रा साउंड करवाया तो ये सब बातें उसकी रिपोर्ट में सामने आ गईं।
डाक्टर मीनाक्षी ने कहा कि इस बच्ची को पैदा नहीं होने देना है, यह अपाहिज है और आपके किसी काम की नहीं है।
हमने पूछा कि यह ज़िंदा तो है न ?
उन्होंने कहा कि हां ज़िंदा तो है।
तब हमने कहा कि वह ज़िंदा है तो हम उसे मार नहीं सकते। ज़िंदगी और मौत के फ़ैसले करने वाला ख़ुदा है और बच्चे को मां के पेट में मार देना भी उसकी नज़र में क़त्ल है। हम अपाहिज बच्चे को पाल सकते हैं लेकिन ख़ुदा को नाराज़ नहीं कर सकते।
उन्होंने ज़बर्दस्त तरीक़े से हमारे फ़ैसले की मुख़ालिफ़त की और पर्चे पर उसे टर्मिनेट करने की सलाह तहरीर कर दी।
ऐसा करते हुए उन्हें बिल्कुल भी डर न लगा, न तो एक औरत की हैसियत से और न ही एक डाक्टर की हैसियत से क्योंकि उन्हें मेडिकल कॉलिजेज़ में यही सिखाया जाता है और क़ानून भी इसे जायज़ क़रार देता है। ऐसे ही औंधे फ़ैसले लिये जाते हैं जब कोई सभ्यता ख़ुदा को भूल जाती है और ख़ुद वह काम करने की कोशिश करती है जो कि केवल ख़ुदा, रब, ईश्वर, अल्लाह, गॉड या इक निरंकार का काम है। जिस काम को अल्लाह ने हराम ठहराया है उसे हमारी सभ्यता ने हलाल और जायज़ कर लिया है। मासूम अपाहिज बच्चों को उनकी मांओं के पेट में मार डालने को जायज़ करने वाले हाइली क्वालिफ़ाईड लोग हैं। ख़ुदा से कटने  के बाद शिक्षा भी सही मार्ग नहीं दिखा पाती।
क्या वाक़ई अपाहिज बच्चों को उनकी मांओं के पेट में ही मार डालना उचित है ?
आखि़र किस ख़ता और किस जुर्म के बदले ?
अनम की पैदाइश ने दुनिया के सामने यही सवाल खड़ा कर दिया। इस सवाल को हमने हिंदी ब्लॉगिंग के ज़रिये दुनिया के बुद्धिजीवियों के सामने रखा और उनके ज़मीर को झिंझोड़ा कि देखिए आपकी दुनिया में यह क्या हो रहा है ?
मिलकर आवाज़ उठाइये और अपाहिज भ्रूणों की जान बचाइये।
हर साल जाने कितने लाख भ्रूण हमारे देश में क़त्ल कर दिए जाते हैं और दुनिया भर में क़त्ल कर दिए जाने वाले भ्रूणों की तादाद तो और भी ज़्यादा है और यह तब तक रूकेगा भी नहीं जब तक कि लोग जीवन के बारे में जीवनकार की योजना को सही तौर नहीं जान लेंगे।
जब अनम पैदा हुई तो हमें पता चला कि हमारे घर में लड़की पैदा हुई है। इस तरह एक कन्या भ्रूण की जान बच गई। लोग केवल कन्या भ्रूण को बचाने की बात करते हैं। यह एक अधूरी बात है। सही और पूरी बात यह है कि हरेक भ्रूण को बचाने की बात करनी चाहिए, चाहे वह भ्रूण कन्या हो या नर, चाहे वह सेहतमंद हो या फिर बीमार और अपाहिज ।
अनम हमारे दरम्यान आई और 22 दिन रहकर चली गई लेकिन वह ऐसे सवाल हमारे सामने छोड़ गई है जिन्हें हल किया जाना अभी बाक़ी है।
जितने भी दिन वह हमारे बीच रही, वह एक अच्छी बच्ची की तरह पेश आई। उसके अंदर ज़बर्दस्त सब्र था। वह मासूम थी। वह इस दुनिया से चली गई। वह इस दुनिया की सख्तियों से बच गई। उसके हक़ में उसका जाना अच्छा ही हुआ। ऐसा हमारे उस्ताद जनाब सय्यद साहब ने फ़रमाया। उनके ख़ुद दो-दो अपाहिज बच्चियां हैं। एक का इन्तेक़ाल तब हुआ जबकि वह 22 साल की हो गई थी। वह अपने बल से हिल भी नहीं सकती थी और न ही वह देख और सुन सकती थी और न ही वह बोल कर अपनी तकलीफ़ ही किसी को बता सकती थी। इसी तरह की एक और बच्ची उनके घर में अभी भी है। अपाहिज बच्चों को पालने में जो व्यवहारिक दिक्क़तें हैं, उन्हें वे ख़ूब जानते हैं। उनकी बातों ने दिल को सुकून दिया।
अनम की मौत पर हिंदी ब्लॉग जगत में भी ज़बर्दस्त दुख मनाया गया। अनगिनत ब्लॉग पर उस मासूम को याद किया गया, उसके लिए दुआ और प्रार्थना की गई। हिंदी ब्लॉगर्स के इस उम्दा बर्ताव ने साबित कर दिया कि हिंदी ब्लॉग जगत से हमदर्दी का जज़्बा अभी रूख़सत नहीं हुआ है।
बहरहाल, वक्त तेज़ी से गुज़र गया और आज फिर वही रात आ पहुंची है जिसकी सुबह हमारे लिए नाख़ुशगवार थी।
...लेकिन अनम तो ख़ुदा की थी, उसने दी थी और उसी ने ले ली। चीज़ जिसकी है हुक्म भी उसी का चलेगा। हम उसके हुक्म पर राज़ी हैं और उस मालिक से दुआ करते हैं कि वह हमें उससे मिलाए, बेहतर हाल में, अपनी रज़ा के साथ और इस तरह कि फिर कभी उससे बिछड़ना न हो।

आमीन ,
या रब्बल आलमीन !

जिन आर्टिकल्स में अनम का ज़िक्र किया गया, उनमें से कुछ ख़ास आर्टिकल्स यहां दिए जा रहे हैं ताकि जो लोग नहीं जानते वे भी इस आंदोलन को जानें, समझें और वे भी अपाहिज भ्रूणों की रक्षा के लिए आवाज़ उठायें और उन लोगों की हिम्मत बढ़ाएं, जो कि किसी अपाहिज बच्चे की परवरिश कर रहे हैं।

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