Featured Post

Allahpathy:THE BLESSING MONEY BAG THAT WOULD HELP EVERYONE TO BE RICH IN THE MONTH OF RAMADAN

By Hazrat Hakeem Mohammad Tariq Mahmood Chughtai Dear Readers! I Bring to you precious pearls and do not hide anything, you shou...

Saturday, August 24, 2019

क्या नज़र का असर दुआ पर भी होता है? -Dr. Anwer Jamal

आप जानते ही हैं कि नज़र और नज़रिए का असर इंसान की ज़िंदगी पर पड़ता है।
उसकी नज़र और उसके नज़रिए का असर उसकी दुआओं पर भी पड़ता है।
जो आदमी चाहता है कि मेरी दुआ क़ुबूल हो। उसे अपनी नज़र और अपने नज़रिए को चेक करना होगा।
खुद इंसान का अपने बारे में क्या नज़रिया है? क्या वह ख़ुद को इतना ज़्यादा गुनहगार मानता है कि उसकी दुआ कुबूल नहीं हो सकती?
अगर उसका नज़रिया ऐसा है तो फिर वैसा ही होगा जैसा कि उसका नज़रिया है और उसकी दुआ क़ुबूल न होगी। आपकी दुआओं को ख़ुद आपकी नज़र लगी हुई है।
जब वह दुआ करता है या किसी काम के होने की नीयत से अल्लाह का कोई नाम या उसके मुबारक कलाम की आयत पढ़ता है तो उसकी नज़र (तवज्जो) अपने काम पर जमी रहती है या वह इधर उधर, हर तरफ़ भटकती रहती है?
अगर ऐसा है तो यह नेचुरल है कि उसकी दुआ अपना असर ज़ाहिर न करे और उसकी मुराद पूरी न हो।

दुआ का असर ज़ाहिर होने के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि आपका नज़रिया आपकी दुआ को सपोर्ट करता हो और जब आप अपना काम होने के लिए दुआ करें या अल्लाह का नाम या कोई आयत पढ़ें तो उस वक़्त आप अपनी नजर से अपने दिल में अपने काम को देखते रहें। आप उसे वैसा ही देखते रहें जैसा कि आप चाहते हैं कि वह काम हो। आप उसे देखकर वैसी ही ख़ुशी महसूस करें जैसी कि आपको उस काम के होने पर सचमुच होगी। मानो वह सब आप पर सचमुच बीत रहा है और आप उस सीन का एक हिस्सा (participant) हैं न कि ऑब्ज़र्वर। उसे पाँचों सेंस से रियल फ़ील करें। आप उसमें विज़न, टेस्ट, टच, साउंड और स्मैल को फ़ील करें। जैसे कि किसी जगह पर इंसान सचमुच इन सबको फ़ील करता है।
यह एक माईंड सीक्रेट है। इसे ख़ूब अच्छी तरह समझ लें।

मैं जानता हूं कि आप दुआ क़ुबूल होने के लिए हलाल माल खाना, इख़्लास, यक़ीन, पक्का ईमान और तौहीद का सही होना जैसी बातें पहले से ही जानते हैं। इसलिए मैंने उनका यहां जिक्र नहीं किया। मैंने सिर्फ उन बातों का जिक्र किया है जिनका ज़िक्र दुआ की आम किताबों में नहीं मिलता।

और यहां भी मैंने उनका उतना ज़िक्र नहीं किया जितना कि किया जाना चाहिए। यह आर्टिकल लिखते हुए मैंने तय किया था कि मैं इसे बहुत छोटा रखूंगा।
जो कुछ मैंने कहा है, उसे सामने रखते हुए अब आप साथ में दी गई इमेज में बताए गए तरीके को समझें और दुआ करें। 
हर काम की तरह दुआ भी एक काम है और हर काम की तरह आपको इस काम की कुछ दिन प्रैक्टिस करनी होगी। इस प्रैक्टिस के बाद इन् शा अल्लाह आपकी दुआओं का असर ज़ाहिर होने लगेगा। 

यकीनन अल्लाह अपने बंदों पर बहुत ज़्यादा मेहरबान है। वह अपने बंदों की दुआ सुनता है जैसे एक मां अपने कमज़ोर बीमार बच्चे की ज़्यादा देखभाल करती है और उसकी बात सेहतमंद बच्चों से ज़्यादा जल्दी सुनती है, वैसे ही अल्लाह अपने बीमार बंदों की दुआ ज़्यादा जल्दी सुनता है। याद रखें, गुनाह दिल की बीमारियां हैं।
अगर आप ख़ुद को बहुत गुनाहगार मानते हैं तो आप इस नज़रिए को अपने दिल में जमा लें। फिर दुआ करें।
Mind Secret na janne wali awaam ko ye sab laws sikhana kisi ek aadmi ke liye mumkin nhi hai.
🌹
Aise me unhe misalon ke zariye baat batayi jati hai.
💚
Dua ki qubuliyat me aam log bahut rukawat mehsus karte hain aur
Woh kisi kamil wali,
Kisi mustajabud-dawat buzurg ko talashte hain
Ki
Woh unke liye dua kar de.
💚
Mera dil bachpan se chahta tha ki
Main mustajabud-daa'waat jo jaun.
😊
Maine Dua par hisne haseen se shamsul maarif tak sab kitaben padh dalin.
Pichhle 30-35 saal me jo kaam ki baat pata chali h, woh aapko *Free* sikha raha hun kyonki aaj main fursat me hun.
Alhamdulillah.
🕋
Is 'ILM' ki qadr karen.

Thursday, August 22, 2019

Positive Thinking पर एक सवाल का जवाब -Dr. Anwer Jamal

आज हमारे ग्रुप में एक मेंबर ने हमसे यह सवाल किया है:
Sawal: is baare me aap kya kahenge...?👇🏻
*Topic : A great revolution*is coming* 

⏰10 : 18⏲

 *Aik nai theory aai hai ke*koi negative❎ baat*matt sochna nahi* *to tumhari zindgi me* *aane lag jaaega, bass* *sirf positive✅sochna ,* *kisi khatre ki baat mat* *karna warna aajaenge* *zindgi me , agar khatraat*ke baare me* *ittela karna negativity hai*to sabse badi* *negativity(نعوذ بالله )Allah* 🕋 *ne* *phailaai , apne kalaam* *me jitna jannat ka zikr* *kiya utna hi jahannam ka*bhi kiya , tafseelat ke*saath kiya , baar baar*kiya , agar ye* *negativity hai to ye Allah*ne di* 
                                
🌹 *By : Allama Sayyed* *Abdullah Tariq sb🌹*
Jawab: Ham shuru se is baat ko saaf karte aaye hain ki
Ham positive thinking nhi *creative* thinking sikhate hain.
💚
Aap chahe jitna positive sochte rahen, aapke sath positive nhi hoga,
Dusre log aapki zindgi me apne attitude ke mutabiq hi react karenge.
🌿
✈ Plane me baith kar musafiro ko accident ke kitne bhi khayal aayen,
Unke khayal se accident nhi hota.
Aapki reality aapke khayal se nahi aapke core beliefs se govern hoti hai.
🌿
अल्लाह ने आदम को अपनी सूरत पर बनाया है और क्रिएशंस अल्लाह की फ़ैमिली है। अल्लाह को वह आदमी ज़्यादा पसंद है जो उसकी फ़ैमिली के साथ ज़्यादा भलाई करता है। भलाई का उल्टा बुराई है। यह दुनिया दो पोल्स पर क़ायम है। यहां भलाई है और यहाँ बुराई भी है। भलाई करनी है तो बुराई की पहचान करनी भी ज़रूरी है। जिस आदमी को भलाई बुराई की जितनी ज़्यादा पहचान होगी, वह उतना ज़्यादा क़ाबिल माना जाएगा और वह सोसायटी में बड़ी ज़िम्मेदारी के लायक़ माना जाएगा।
अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में इंसानों को भलाई और बुराई की बहुत ज़्यादा जानकारी दी है।
अल्लाह ने बताया है कि जैसा तुम्हारा बातिनी शाकिलह (paradigm) होगा वैसा ही तुम्हारा ज़ाहिरी अमल होगा और तुम्हारा ज़ाहिरी अमल अपनी नेचर के मुताबिक़ ही  हालात बनाएगा, जिसे हम अंजाम कहते हैं।
अगर तुम शुक्रगुजार बनोगे तो तुम्हारे आमाल भी  अच्छे होंगे और उनसे कुछ वक़्त बाद ऐसे हालात बनेंगे, जिनसे तुम्हें सुख मिलेगा और कष्ट दूर रहेगा।
और अगर तुम मेरी नेमतों की नाक़द्री, नाशुक्री करोगे तो तुमसे नेमतें छिन जाएंगी और तुम भारी कष्ट के हालात बनाकर उनमें घिर जाओगे।
अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में इंसान को उसकी क्रिएटिव पावर का इल्म बख़्शा है कि वह लगातार अपने लिए जन्नत या जहन्नम की तामीर कर रहा है। जो कुछ वह बना रहा है, उसे इंसान बनाते वक़्त चेक कर ले कि यह जो हालात बनाएगा, क्या मैं उनमें  ख़ुशी महसूस करूंगा?
जो हम आज कर रहे हैं, उससे हमारा कल तामीर हो रहा है।
जो हम कल पाने वाले हैं, हम उसे आज, अभी और यहीं 'अल्लाह के नूर' में देख सकते हैं। हम अपना अंजाम बदलना चाहें तो हम आज ख़ुद को बदलकर ऐसा कर सकते हैं। हम नाशुक्रे से शुक्रगुज़ार बनकर अपना अंजाम बदल सकते हैं।
अल्लाह ने हमें च्वाइस और सेलेक्शन की आज़ादी दी है जो कि उसकी सिफ़त है।
उसने हमें इरादे की ताक़त दी है, जो कि उसकी सिफ़त है।
उसने हमें अपनी सिफ़ात (Attributes) के लिए आईना बनाया है। हम ख़ुद को देखकर उसे पहचान सकते हैं।
अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन के ज़रिये हमें अपनी पहचान कराई है ताकि हम उसे पहचानकर ख़ुद को पहचान लें।
अल्लाह ने ज़मीनो आसमान की हर शै को हमारे लिए मुसख़्ख़र कर दिया है ताकि हम जो बनाना चाहें, हमें उसमें मदद मिले।
हमें अपने अच्छे और बुरे कामों में नेचर की सपोर्ट मिलती रहती है। हम अच्छे या बुरे काम करते रहते हैं और फिर उनके अंजाम ज़ाहिर होते रहते हैं। जिन्हें हम दुनिया में भी भुगतते रहते हैं।
अल्लाह ने हमें क्रिएशन प्रोसेस की जानकारी क़ुरआन में दी है। उसने हमें शजरे तैयब और शजरे ख़बीस की मिसाल देकर अच्छे और बुरे इंसान के बारे में बताया है।
क़ुदरती आफ़तों, जहन्नम के अज़ाब या तरह तरह की तकलीफ़ों का सिर्फ़ बयान करते रहना और उनसे बचने की तदबीर न बताना निगेटिविटी है, यह आम लोगों का तरीक़ा है। अल्लाह ने क़ुरआन में ऐसा नहीं किया बल्कि उनका हल बताया है।
प्राब्लम का हल बताकर बार बार उसे करने की इंस्पिरेशन देना एक पॉज़िटिव अमल है।
अल्लाह ने साफ़ बताया है कि जो तुम चाहते हो, तुम्हें वह नहीं मिलेगा बल्कि जो तुम करते हो, तुम्हें वह मिलेगा। इसलिए अपनी चाहतों और अपने आमाल में हारमोनी लाओ। पवित्र क़ुरआन में 'दिल की कमाई' और 'हाथ की कमाई' के बारे में बहुत बताया गया है। इनमें एलाइनमेंट होना ज़रूरी है। अपने लिए भलाई चाहते हो तो भले बनो और भलाई करो।
इंसान का अमल उसकी आदतन सोच को ज़ाहिर करता है। इंसान का अमल ही उसकी सच्ची पहचान है। जैसे एक पेड़ अपने फलों से पहचाना जाता है, वैसे ही इंसान अपने आमाल से पहचाना जाता है।
हम अल्लाह को उसके भले कामोसे पहचानते हैं, जोकि वह हमारे साथ करता रहता हैवह चाहता है कि हमें भले कामों से पहचाना जाए।
आज पॉजिटिव थिंकर्स और माइंड प्रोग्रामिंग के लाईफ़ कोच भी अपने स्टूडेंट्स को भलाई और बुराई में भलाई को चुनने की इंस्पिरेशन देते हैं। वे ग़रीबी, बीमारी, झगड़े, तलाक़ और हादसों जैसे उन सब कष्टों का बयान करते हैं जो इंसान अपनी जिंदगी में भुगत रहा है। फिर वे उनका हल बताते हैं। जब  लाईफ कोच का ज़िक्र करना नेगेटिविटी नहीं है तो फिर कौन यह समझता है कि अल्लाह इंसान की जिंदगी के कष्टों का बयान करता है वह निगेटिविटी है?
जो आदमी ऐसा समझता है, यक़ीनन उसने पॉज़िटिव थिंकिंग के सब्जेक्ट को ठीक से पढ़ा और समझा नहीं है।
नॉर्मल विंसेंट पील पॉजिटिव थिंकिंग के बहुत बड़े इमाम हैं। उन्होंने इस सब्जेक्ट पर बहुत किताबें लिखी हैं। उन्होंने दुनिया भर में घूम कर पॉज़िटिव थिंकिंग पर लेक्चर दिए हैं। आप उनकी किताबों में भी उन कष्टों को पढ़ेंगे जो इंसान अपनी जिंदगी में उठा रहा है और फिर उसके हल के रूप में उन्होंने पॉज़िटिव थिंकिंग को पेश किया है।
लुइस एल हे भी पॉजिटिव थिंकिंग की बहुत बड़ी इमाम है और उनका रुतबा नॉर्मन विंसेंट से ज़्यादा है। उन्होंने अपनी किताब 'यू कैन हील योर लाईफ़' के 16वें चैप्टर में अपने जीवन के कष्टों का बयान किया है। जिससे पाठकों में उनकी शिक्षाओं के प्रति विश्वास पैदा होता हैं कि जब यह अपना नज़रिया बदलकर, अपने आप को बदलकर अपने कष्टों से निकल आई हैं तो मैं भी इस तरीक़े से अपने कष्टों से निकल सकता हूं।
हम सब शुक्र की कमी और नज़रिए के बिगाड़ की वजह से हर वक़्त अपने अंदर एक जहन्नम लेकर घूमते रहते हैं और उसकी आग हमारे दिलों को जलाती रहती है। हमें इस बात का पता ही नहीं होता कि हम अपने आप में ही अज़ाब पा रहे हैं। जब हम माफ़ी, रहम, नर्मी, शुक्र, सब्र और भलाई को अपनी आदत बनाते हैं तो हमारे दिल को सुकून मिलने लगता है। तब हम उस अज़ाब से रिहा होते हैं।
अल्लाह हमें यह तालीम देता है कि अपनी रिहाई के लिए नीयत करो और बातिनी व ज़ाहिरी अमल करो।
दुनिया के लाईफ़ कोच सिर्फ़ दुनिया की भलाई पाना सिखाते हैं जबकि अल्लाह दुनिया और दुनिया की ज़िन्दगी के बाद भी भलाई पाने का तरीक़ा सिखाता है। इसी में हमारी फ़लाह (कल्याण wellness) है।
यह लिखकर मैं ने अपने व्हाट्स एप ग्रुप 'Allahpathy Super Learners' में पूछा:
Aapke liye itna lamba jawab likha.
Is par aapka aur group ke teachers aur students ka sabka radde amal matloob h.
🌹
Jo NLP Teachers hain
Woh bhi batayen ki
Is sawal ka sahi jawab kya hai?
🌷
Students koi baat nhi samajh sake hain ya
Samajh gaye hain to batayen
Ki
Kya sikha?

सवाल करने वाली स्टूडेंट ने कुछ और सवाल किए:
Aapke itne lambe jawab ko main ne kai baar padha , ye baat to aapki sahi hai ke sirf andesha karne se nahi bulke bunyadi aqeede ( core beliefs) se haalat badalte hain magar phir bhi zehn bataa bataa sa hai , aik billion dollars question aur bataa deeje

Aik baar grp per kisi ne kahaa " ham aapke ehsaan nahi bhoolenge , aapne kaha ye negative sentence hai , aap bolo " ham aapke ehsaan hamesha yaad rakhenge " jabke quraan shareef me beshumaar aayat " laa" se shuru hoti hain khud hamara kalma bhi
Laa ilaaha illallah

Aap kehte hain , beshakk , laa shakk nahi kehna chahye is ki jagah yaqeen kehna chahye
Kya ye negativity ki wajah se nahi?

मैंने उनके सवालों का दो कमेंट में जवाब दिया:
Part 1
aapka shukriya ki aapne mera jawab padha aur samjha hai.
💚
aapka sawal mind ke kaam Karne se juda hua hai ki hamara mind kaise kaam karta hai?
ham bar bar is group mein Bata chuke hain ki Jo baat Ham sunte Hain us baat ko mind process karke image mein convert karta hai, jise Ham apne mind me dekhte hain.
hamara mind image maker hai.
💚
*Waqiya:*
do din pahle hamne apne aangan mein khade hue nimbu ke 8 feet unche ped ki kuchh branches ko katwaya to us per se itne sare nimbu mile ki steel ke ek bade bartan me bhar hare aur peeley nimbu bhar Gaye. Anas Khan ne unhen ghar me hi chhote electric balance per tola to woh 2 kilograms se zyada the.
mere beti Sharah ne ek Bada sa RASEELA nimbu kaat liya. usse umda sharbat taiyar Kiya. maine jaise hi uska 1 ghoont piya to  woh bahut tez khatta tha.
uffff....
💚
*aapke munh me paani bhar aaya hai.*
kyonki main jo bolta gaya, aapka mind uski images bana kar aapko mind movie dikhata raha aur aapko aisa laga jaise aapne us tez khatte sharbat ko chakh liya hai.
💚
aise hi agar main kahun ki
maine nimbu nhi chakha.
tab bhi aapka mind aapko yhi image dikhayega ki
main nimbu chakh raha hun.
yani ki mind image banate waqt *'nahi'* word ko process nhi karta halanki woh nahi ke sense ko samjhta hai.
💚
yh ek mind secret hai.
isse auraten bahut kaam leti hain.
saas ya bahu apne mukhalif ki baat poori bata kar kahengi ki
dekho aap unse ladna 'nahi'.
mind me image banti hai ki woh unse lad raha hai
aur phir yhi hota hai,
jo usne vision me dekha tha.
💚
aise hi
la ilaha illallah
ke kalima e taiyyaba ki baat hai aur yh sachmuch ek miracle hai ki
jab ek aam insan
kahta hai
la ilaha illallah
to inkar ke bawujood
uska mjnd ilah ke hone ko accept karta hai aur phir Allah ka naam aa jata hai to woh 'la' (nahi) ko process na karne ke bawujud thik yhi image banata hai ki Allah ilah hai.
Mind ka focus 2 words
Ilah aur Allah par rahta hai.
💚
isi kalima e taiyyaba ka jo log irfan aur awareness ke sath zikr karte hain
woh imagination bhi karte hain.
jab woh 'la ilaha' kah rahe hain to apne dil se har cheez aur har khwahish ko nikaal rahe hain, jo ilah bani hui hai aur jab woh illallah kahte hain to woh imagine karte hain ki arsh se noor aakar unke dil me bhar raha hai.
💚
unhe is tarah zikr karne ka bahut jaldi fayda milta hai.
Dil bahut umda tareeqe se paak ho jata hai.
💚
kalima e taiyyaba ki tarteeb itni umda hai ki
aam aadmi aur aarif banda dono ise apne apne kam aur zyada ilm ke sath padhte hain lekin
mind me image wohi banti hai, joki kalime ka message hai.
💚
isliye yh kalima nafi se shuru hone ke bawujud negative nhi hai kyonki
yh  positive image banata hai.
💚
abhi yh samajh lijiye,
phir main aapko us baat ke baare me bataunga jo aapne aakhir me puchchi hai.

Part 2
*Koi baat negative hai ya positive hai*
1- iska faisla isse hoga ki hamare mind mein uska sense kya clear ho raha hai?
2- usse Jo image ban rahi hai vah hamare Life ko support kar rahi hai ya damage kar rahi hai?
🌹💚🌹
Mind ke angle se
Umda Kalam ki ek sabse badi khubi yh hai ki
Woh mind par sense clear kar de taki woh convinced ho jaye.
Aur
Usse mind me positive image bane, jo life ko support karti ho.
💚🌿💚
Kalima e taiyyaba se ye dono kaam bahut khubi ke sath hote hain.
Isliye yh ek positive sentence hai.
💚🌹💚
Positive thinking mein 'nahin' word bolna mana nahin hai kyunki bolne Wale Ko apni baat clear karne ke liye nahin word bolna zururi hota hai.
Jin buri baton se rokna hai unhe 'nahin' word lagakar bolna hi hoga.
Ek achcha bolne wala woh hota hai ki jab woh buri baton se roke to uske bad woh acchi baton ka bayan bhi zurur Kare.
🌹💚🌹
Aap dekhenge ki Quran mein buri baton se rokne ke sath hi acchi baton ka hukm bhi diya gaya hai.
Bande ko bar bar nematon par focus karne ke liye kaha gaya hai aur nematon ka byan bahut tafsil se Kiya gaya hai.
💚🌹💚
jab hamen taqrir karni ho aur kafi sentences bolne hon to kuchh sentences mein nahin word bolna nuqsan nahin deta balki fayda deta hai.
🌹
Misal:
'Ham aapke Ahsan kabhi nahin bhulenge. ham hamesha aapke ahsanmand rahenge. ham aapke shukraguzar Hain.'

3 sentences bole gaye hain. Ek sentence mein nahin word bol sakte hain. jisse baat ka sense clear ho raha hai aur baad ke do sentences positive image banaa rahe hain in 3 sentences se baat ka sense bhi clear Ho Gaya aur mind mein positive image bhi Bani. aise bolna theek hai.
🌹
'Ham aapke Ahsaan kabhi nahin bhulenge.'
Mind power ke angle se aise bolna nuqsandeh hai, jise aam log nhi samajh sakte.
💚🕋
Ek sentence bolna ho to hamesha positive sentence bolen ki
'Ham hamesha aapke ahsanmand rahenge.'

Aise hi mind power ke angle se agar sirf ek word 'beshak' bolna hai to beshak ke bajay 'yaqinan' bolna zyada sahi hai.
💚
Aap Jo kuchh bolte Hain us bolne se energy ki lahren nikalti Hain aur un lahron se aapki zindagi mein theek vahi chiz banti hai jo aapane boli hai aur aapke bol aapki zindagi me apke samne aate rahte hain lekin aap unhe nahi pahchante ki humne hi inhen banaya hai.
Allah kisi bande pasand nahin Karta lekin band hai na jaane kyon life devising sentences bol bol kar apne aap per khud hi room karte rahte hain.
💚🌹💚
Allah ki tasbih bayan karna hi Allahpathy ka maqsad hai.
Alhamdulillah!