प्रेम: इस कलेक्शन की ज़रूरत और ख़ासियत
अल्लामा इक़बाल रहमतुल्लाहि अलैह की शायरी में आपके मसले का हल मौजूद हैं क्योंकि अल्लामा ने इसमें क़ानूने कुदरत और ख़ुदी का भरपूर बयान किया है।
हरेक इंसान क़ानून का पाबन्द है क्योंकि यह पूरा यूनिवर्स क़ानून का पाबन्द है। इस क़ानून को क़ानूने कुदरत (Natural Laws) कहते हैं। यह क़ानून आँख से नज़र नहीं आता क्योंकि क़ानून आँख से नज़र नहीं आ सकता लेकिन ज़मीन के हर हिस्से पर क़ानून के असर को देखा जा सकता है। उसी असर को देखकर क़ानून को पहचाना जाता है, जैसे कि एक कुदरती क़ानून है-
'जैसा बोना, वैसा काटना'
यह क़ुदरती नियम पेड़ों की तरह इंसानों पर भी असर डालता है। ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने कहा है-
'हर पेड़ अपने फल से ही जाना जाता है।'
मुझे इस क़ानून की रौशनी में लोगों को पहचानने और उनसे मामला करने में बहुत मदद मिलती है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
देखें पवित्र क़ुरआन 5:46 कहता है-
'और हमने उसे इन्जील प्रदान की, जिसमें मार्गदर्शन और प्रकाश था।'
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दो क़िस्म के फल
“कोई भी ऐसा उत्तम पेड़ नहीं है जिस पर बुरा फल लगता हो। न ही कोई ऐसा बुरा पेड़ है, जिस पर उत्तम फल लगता हो। हर पेड़ अपने फल से ही जाना जाता है। लोग कँटीली झाड़ी से अंजीर नहीं बटोरते। न ही किसी झड़बेरी से लोग अंगूर उतारते हैं। एक अच्छा मनुष्य उसके मन में अच्छाइयों का जो खजाना है, उसी से अच्छी बातें उपजाता है। और एक बुरा मनुष्य, जो उसके मन में बुराई है, उसी से बुराई पैदा करता है। क्योंकि एक मनुष्य मुँह से वही बोलता है, जो उसके हृदय से उफन कर बाहर आता है।
इंजीले लूका 6:
43-45
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अल्लामा इक़बाल रहमतुल्लाहि अलैह का कलाम पढ़कर आप उनकी शख़्सियत को पहचान सकते हैं। हिन्दी जानने वाले बहुत कम लोग उनके कल्याणकारी (फ़लाही) संदेश की गहराई को समझ पाते हैं।
अल्लामा इक़बाल का मैसेज वही है, जो पवित्र क़ुरआन का मैसेज है लेकिन उन्होंने बहुत से दार्शनिकों से जो फ़ायदा उठाया है और उनकी ग़लतियों का जो सुधार किया, वह इंसान की सोच को बहुत निखार देता है।
आज बहुत सी संस्कृतियों के लोग आपस में रोज़ मिलते हैं। सबके विचार और कर्म अच्छे हों, इसके लिए हमें अच्छे लोगों के अच्छे विचारों को सबके सामने लाने की ज़रूरत है। इसी ज़रूरत को पूरा करने के लिए यह संकलन आपकी खिदमत में पेश किया जा रहा है। इस कलेक्शन में शामिल आर्टिकल्स की खासियत यह है कि
1. आपको रब के क़ुदरती कानूनों के बारे में जानना शुरू करेंगे, जिनसे काम लेकर आप अपनी बीमारी भगाने और दौलत बढ़ाने से लेकर हर तरह के काम में कामयाबी पा सकते हैं।
2. आपको अल्लामा इक़बाल के बारे में कुछ ऐसा पता चलेगा, जो आप पहले न जानते थे।
3. जब आप इस किताब में बताए गए क़ानून के मुताबिक़ ख़ुद को एक नए सेल्फ़ कान्सेप्ट में ढालेंगे तो आप जीते जी एक नया जन्म पा लेंगे। जिसका मज़ा आपको फ़ौरन मिलेगा।
4. आपमें आकर्षण शक्ति (Attraction Power) बहुत ज़्यादा बढ़ जाएगी। जो आपको घरेलू रिश्तों, नौकरी और कारोबार में बहुत कामयाबी दिलाएगी।
5. आप पहली बार महसूस करेंगें कि रब के सिवा आप पर हालात का या किसी दुश्मन का कोई ज़ोर हक़ीक़त में नहीं है।
6. आप इस किताब के आर्टिकल्स को याद कर लेंगे तो आप अपनी बातचीत में लोगों को क्रिएटिव जानकारी दे सकेंगे।
7. आप बुरे लोगों को पहचान कर उनसे बच सकेंगे औरआप बहुत लोगों को डिप्रेशन और निगेटिव विचारों से बचना सिखा सकेंगे।
8. आप इस राह में ख़ुद और आगे बढ़े तो आप एक लाईफ़ कोच और कल्याण गुरू बन जाएंगे। ऐसे लोगों को हर जगह सब लोग सम्मान देते हैं और उनकी बात मानते हैं।
9. सब लोग उस आदमी की बात मानते हैं, जो उन्हें प्रेम करता है और उन्हें उनकी प्राब्लम का सौल्युशन देता है।
10. यह छोटी सी किताब आपको लीडर बनाती है, शर्त बस यही है कि आप इस किताब को समझें और इसमें बताए गए क़ुदरत क़ानून पर चलें।
अल्लामा इक़बाल एक बहुत मशहूर शख़्सियत हैं। उनका एक सबसे ज़्यादा मशहूर शेर यह है-
ख़ुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बन्दे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
इस एक शेर में अल्लामा इक़बाल ने व्यक्ति और समाज की हर बीमारी का इलाज भी किया है और ख़ुदी, चेतना का वह बुनियादी नियम भी बयान कर दिया है, जिसे ठीक से समझ लिया जाए तो इन्सान अपनी हर जायज़ मुराद को ज़्यादा आसानी से पा सकता है। अल्लामा इक़बाल का पूरा कलाम इंसान को उन बातों की तालीम से भरा हुआ है, जिनसे ख़ुदी बुलन्द होती है।
कोई भी अल्लामा इक़बाल की तालीम में बताई गई सारी बातों पर एकदम नहीं चल सकता। अब अगर कोई आम आदमी यह जानना चाहे कि वह किस बात से अपने अमल की शुरुआत करे तो उसे उनकी शायरी में यह बात तलाश करनी बहुत मुश्किल है।
ज़्यादातर लोग कलामे इक़बाल को शायरी समझने की ग़लती करते हैं जबकि अल्लामा ने उसमें क़ुदरत के कल्याणकारी नियमों का राज़ बयान किया है। अपने कलाम की हक़ीक़त बयान करते हुए अल्लामा इक़बाल कहते हैं-

मेरी नवाए परीशाँ को शायरी न समझ
कि मैं हूँ महरमे राज़े दरूने मैख़ाना
आज अल्लामा इक़बाल के कलाम से हर धर्म और संस्कृति के लोगों को फ़ायदा पहुंचाना है तो उनकी तालीम को ऐसे स्टेप्स में बांटने की ज़रूरत है कि हरेक उस पर चल सके और उससे फ़ायदा उठा सके। इसके लिए अल्लामा इक़बाल के कलाम से सबसे पहले उस एक गुण का पता करना ज़रूरी है, जिसे अपने अंदर बढ़ाया जाए तो उससे ख़ुदी फ़ौरन बुलन्द हो जाए और उसका फ़ायदा भी उसी पल से मिलना शुरू हो जाए।
इंसानी नफ़्सियात और क़ानूने क़ुदरत की बरसों की स्टडी और अपने तजुर्बात की बुनियाद पर अगर मैं सबको अल्लामा इक़बाल की तालीम में से उस एक गुण की पहचान कराना चाहूँ तो यक़ीनन वह गुण प्रेम का गुण है। अल्लामा इक़बाल ने 'बाँगे दरा' में मुहब्बत पर 'मुहब्बत' के नाम से ही बहुत उम्दा कलाम आता किया है।
محبت
عروس شب کی زلفيں تھيں ابھی نا آشنا خم سے
ستارے آسماں کے بے خبر تھے لذت رم سے
قمر اپنے لباس نو ميں بيگانہ سا لگتا تھا
نہ تھا واقف ابھی گردش کے آئين مسلم سے
ابھی امکاں کے ظلمت خانے سے ابھری ہی تھی دنيا
مذاق زندگی پوشيدہ تھا پہنائے عالم سے
کمال نظم ہستی کی ابھی تھی ابتدا گويا
ہويدا تھی نگينے کی تمنا چشم خاتم سے
سنا ہے عالم بالا ميں کوئی کيمياگر تھا
صفا تھی جس کی خاک پا ميں بڑھ کر ساغر جم سے
لکھا تھا عرش کے پائے پہ اک اکسير کا نسخہ
چھپاتے تھے فرشتے جس کو چشم روح آدم سے
نگاہيں تاک ميں رہتی تھيں ليکن کيمياگر کی
وہ اس نسخے کو بڑھ کر جانتا تھا اسم اعظم سے
بڑھا تسبيح خوانی کے بہانے عرش کی جانب
تمنائے دلی آخر بر آئی سعی پيہم سے
پھرايا فکر اجزا نے اسے ميدان امکاں ميں
چھپے گی کيا کوئی شے بارگاہ حق کے محرم سے
چمک تارے سے مانگی ، چاند سے داغ جگر مانگا
اڑائی تيرگی تھوڑی سی شب کی زلف برہم سے
تڑپ بجلی سے پائی ، حور سے پاکيزگی پائی
حرارت لی نفسہائے مسيح ابن مريم سے
ذرا سی پھر ربوبيت سے شان بے نيازی لی
ملک سے عاجزی ، افتادگی تقدير شبنم سے
پھر ان اجزا کو گھولا چشمۂ حيواں کے پانی ميں
مرکب نے محبت نام پايا عرش اعظم سے
مہوس نے يہ پانی ہستی نوخيز پر چھڑکا
گرہ کھولی ہنر نے اس کے گويا کار عالم سے
ہوئی جنبش عياں ، ذروں نے لطف خواب کو چھوڑا
گلے ملنے لگے اٹھ اٹھ کے اپنے اپنے ہمدم سے
خرام ناز پايا آفتابوں نے ، ستاروں نے
چٹک غنچوں نے پائی ، داغ پائے لالہ زاروں نے
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Transliteration
Uroos-e-Shab Ki Zulfain Theen Abhi Na-Ashna Kham Se
Sitare Asaman Ke Be-Khabar The Lazzat-e-Ram Se
Qamar Apne Libas-e-Nawa Mein Begana Sa Lagta Tha
Na Tha Waqif Abhi Gardish Ke Aaeen-e-Muslim Se
Abhi Imkan Ke Zulmat Khane Se Ubhri Hi Thi Dunya
Mazaq-e-Zindagi Poshida Tha Pehnaye Alam Se
Kamal-e-Nazam-e-Hasti Ki Abhi Thi Ibtada Goya
Haweda Thi Nagine Ki Tamanna Chashme-e-Khatam Se
Suna Hai Alam-e-Bala Mein Koi Keemiya-Gar Tha
Safa Thi Jis Ki Khak-e-Pa Mein Barh Kar Saghir-e-Jam Se
Likha Tha Arsh Ke Paye Pe Ek Ikseer Ka Nuskha
Chupate The Farishte Jis Ko Chashm-e-Rooh-e-Adam Se
Nigahain Taak Mein Rehti Then Lekin Keemiya-Gar Ki
Woh Iss Nuskhe Ko Barh Kar Janta Tha Ism-e-Azam Se
Barha Tasbeeh Khawani Ke Bahane Arsh Ki Janib
Tamanna-e-Dili Akhir Bar Ayi Saee-e-Peham Se
Phiraya Fikr-e-Ajza Ne Use Maidan-e-Imkan Mein
Chupe Gi Kya Koi Shay Bargah-e-Haq Ke Mehram Se
Chamak Tare Se Mangi, Chand Se Dagh-e-Jigar Manga
Urhayi Teergi Thori Si Shab Ki Zulf-e-Barham Se
Tarap Bijli Se Payi,Hoor Se Pakeezgi Payi
Hararat Li Nafashaye Maseeh-e-Ibn-e-Mariam (A.S.) Se
Zara Si Phir Rabubiat Se Shan-e-Be-Niazi Li
Malak Se Ajazi, Uftadgi Taqdeer-e-Shabnam Se
Phir In Ajza Ko Ghola Chasma-e-Hewan Ke Pani Men
Marakkab Nemohabbat Naam Paya Arsh-e-Azam Se
Muhwish Ne Ye Pani Hasti-e-Naukhaiz Par Chirka
Girah Kholi Hunar Ne Uss Ke Goya Kaar-e-Alam Se
Huwi Junbish Ayan, Zarron Ne Lutf-e-Khawab Ko Chora
Gile Milne Lage Uth Uth Ke Apne Apne Humdam Se
Kharaam-e-Naaz Paya Aftabon Ne, Sitaron Ne
Chatak Ghunchon Ne Payi, Dagh Paye Lala-Zaron Ne
(....जारी)