आप कामयाबी पाना चाहते हैं तो आखि़री चीज़ को पहले हासिल कीजिए। वह आखि़री चीज़ क्या है?
आखि़री चीज़ का पता आखि़र में चलता है। जब इन्सान मर जाता है तो उसके मरने के बाद सब दोस्त, रिश्तेदार और परिवार वाले मिलकर उसकी आत्मा की शाँति के लिए प्रार्थना करते हैं। मरने वाला मुसलमान होता है तो उसकी मग़फि़रत के लिए दुआ की जाती है। मग़फि़रत का असर यह होता है कि मरने वाले को रब अपनी रहमत से ढक लेता है और उसके गुनाहों को माफ़ कर दिया जाता है।
क्षमा और शाँति वह आखि़री और सबसे अहम चीज़ है, जिसे इन्सान के लिए दूसरे लोग उसके सांसारिक जीवन का अन्त हो जाने के बाद उसके लिए चाहते हैं। यह परम्परा इसलिए रखी गई है ताकि जो लोग वहां जमा हैं, उनका ध्यान इस हक़ीक़त पर जाए कि कामयाब वह है जिसे क्षमा मिली, जिसे शाँति मिली। जिस चीज़ पर इन्सान की कामयाबी निर्भर है, उसे दूसरों की दुआओं और प्रार्थना के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। वैसे भी क्षमा और शाँति ऐसी चीज़ नहीं है, जिसे मरने के बाद पाने के लिए छोड़ दिया जाए। तब तो वही मिलेगा, जो जीते जी कमाया है। जो दिया है वही मिलेगा। जिसने दूसरों को क्षमा दी है तो उसे क्षमा मिलेगी। जिसने दूसरों को शाँति दी है, उसे शाँति मिलेगी। क्षमा और शाँति अपने कर्मों का फल है, पूरी तरह अपनी कमाई है।
आप दूसरों को वही दे सकते हैं, जो कि आपके पास है। आपके दिल में ग़ुस्सा और चिड़चिड़ापन भरा होगा तो आप दूसरों को ग़ुस्सा और चिड़चिड़ापन देंगे। आप उन्हें क्षमा और शाँति नहीं दे सकते। अगर आपका दिल क्षमा और शाँति से भरा हुआ है तो आप उन्हें क्षमा और शाँति ही देंगे। फिर वही आपकी तरफ़ जीवन भर पलटकर आता रहेगा। मौत के बाद भी जीवन है। उस जीवन में भी आपकी तरफ़ क्षमा और शाँति पलटकर आती रहेगी। जो आप ख़ुद पाना चाहें, वह दूसरों को दें।
क्षमा से शाँति मिलती है। एक गुण दूसरे गुण को प्रकट करता है। शाँति भरा दिमाग़ अच्छे फ़ैसले लेता है। अच्छे फ़ैसलों से अच्छे कर्म होते हैं। अच्छे कर्मों के फल अच्छे मिलते हैं। अपनी मेहनत के अच्छे फल पाने को फ़लाह पाना, कल्याण पाना कहते हैं। यह सब संयोग और इत्तेफ़ाक़ पर नहीं छोड़ना चाहिए। जो चीज़ मरने के बाद काम आती है, वही मरने से पहले भी काम आती है।
आप जितना ज़्यादा क्षमा करेंगे, आपको उतनी ज़्यादा शाँति मिलेगी। आपको जितनी ज़्यादा शाँति मिलेगी, आपको अपने काम में उतनी ज़्यादा सफलता मिलेगी। आपकी सेहत, दौलत, ताक़त, मुहब्बत, दोस्ती, आमदनी, ख़ुशी और औलाद, हर चीज़ में ज़्यादती और बरकत होगी। दूसरों को क्षमा करना, उन पर नहीं बल्कि अपने आप पर एहसान करना है। दूसरों ने आपके साथ कुछ बुरा किया है, उसे भुला देना, उस पर से अपना ध्यान और अपनी भावना हटा लेना उन्हें क्षमा करना है। आपको इससे थोड़ा ज़्यादा करना है। आप दूसरों के ऐब पर से, उनकी बुराईयों पर से अपना ध्यान और अपनी भावना हटा लीजिए। आप उन्हें जब भी याद करें, उनकी ख़ूबियों के पहलू से याद करें। उनके मरने के बाद, आखि़र में भी तो हम यही करते हैं और तब वे हमारे बीच नहीं होते। आज वे हमारे बीच हैं, अभी हम उन्हें उनकी ख़ूबियों के साथ क्यों नहीं देख सकते?
दूसरों को ही नहीं बल्कि आपको ख़ुद को भी क्षमा करने की ज़रूरत है। आपने अपने साथ जो कुछ बुरा किया है, वह अतीत बन चुका है। उससे अपना ध्यान और अपनी भावना हटा लीजिए। अपने आप को अपने दिल में दोष देना और ख़ुद को बेकार और नाकाम मानना छोड़ दीजिए। आपके मरने के बाद दूसरे आपकी ख़ूबियों के साथ आपको याद करेंगे। आप ख़ुद भी अपनी उन ख़ूबियों पर ध्यान दीजिए, जो आपमें हैं। जिस चीज़ पर आप ध्यान देते हैं, वे आपकी तवज्जो पाकर ज़्यादा बढ़ने लगती हैं। आप अपनी ख़ूबियों से काम लीजिए। आप अपने अन्दर कोई ख़ूबी पैदा करना चाहें तो ऐसे लोगों को दोस्त बना लें, जिनमें वह ख़ूबी मौजूद हो।
आप अपने मरने के बाद ख़ुद को किन कामों के लिए याद किया जाना पसन्द करेंगे? उन कामों का पता लगाएं और उन कामों को लक्ष्य बनाकर उनके लिए सकारात्मक कर्म करें। शुरू में आपकी रफ़्तार कम होगी, आपके पास साधन कम होंगे लेकिन जैसे जैसे समय गुज़रेगा, आपका तजुर्बा और अभ्यास बढ़ता जाएगा। आपको ज़्यादा अवसर और ज़्यादा साधन मिलेंगे। आखि़रकार आप अपना लक्ष्य हासिल कर लेंगे।
ज़्यादातर लोग अपने जीवन में सिर्फ़ इसलिए नाकाम हैं क्योंकि उनके पास कोई साफ़ लक्ष्य नहीं है। वे नहीं जानते कि वे क्यों पैदा हुए हैं और उन्हें क्या करना है? वे अज्ञान की वजह से वही करने लगते हैं, जो कि समाज में दूसरे लोग कर रहे होते हैं। समाज भेड़चाल और अन्धानुकरण का शिकार है। आप ख़ुद को इसका शिकार होने से बचाएं। आप केवल वह काम करें, जिससे आपका भला हो, जिससे दूसरों का भला हो। जब भी आप कोई काम करें तो आप ख़ुद से यह सवाल करें कि इस काम को करने से मेरा या दूसरों का क्या भला होगा? आपका दिल आपको फ़ौरन जवाब दे देगा। जिस काम में भलाई न हो, आप उसे छोड़ दें। इस तरह आप उसके बुरे अन्जाम से बच जाएंगे। गुनाहों के अज़ाब से बचना है तो गुनाहों से बचो। गुनाहों से बचना है तो नेकियाँ करो। जिस काम से आपका और सबका भला होता है, वह नेकी है।
आप देखिए कि इस पल में आप भला कर हैं या बुरा, गुनाह कर रहे हैं या नेकी?
इसी तरह आप दिन भर बीच बीच में अपने आपको और अपनी मनोदशा को चेक करते रहें। आपको कामयाबी मिल जाएगी।
Ma Sha Allah... Ultimate post
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