तस्बीह अल्लाह का हुक्म है।
तस्बीह नबियों का अमल है।
सारे फ़रिश्ते तस्बीह करते हैं।
ज़मीन व आसमान की हर चीज़ अल्लाह की तस्बीह करती है।
जब इंसान अल्लाह की तस्बीह करता है तो वह इस फैली हुई कायनात के एक एक ज़र्रे से हम-आहंग (एकलय) हो जाता है। यह ज़मीन उसे अपनी माँ की गोद और यह आसमान उसे माँ का आँचल महसूस होता है।
यह अहसास इंसान का बहुत क़ीमती सरमाया है। वह ख़ुद को महफ़ूज़ और मुहब्बत की जगह महसूस करता है तो यही अहसास उसकी जि़न्दगी के हालात में ढलकर उसकी हक़ीक़त (रिएल्टी) बन जाता है।
हर तरफ़ से उसे मुहब्बत मिलती है और उसे हिफ़ाज़त के असबाब बिला मशक्क़त मामूली तवज्जो से मिलते रहते हैं।
तस्बीह के फ़ायदे बेशुमार हैं। उन सबका बयान आज तक कोई इंसान नहीं कर पाया है। मुख्तसर यह है कि तस्बीह से इंसान में वुसअत (विशालता) आती है और उसका बातिन और ज़ाहिर पाक हो जाता है।
तस्बीह के असर की पहचान क्या है?
अल्लाह की तस्बीह की तासीर को आदमी बड़ी आसानी से पहचान लेता है। तस्बीह से पहले इंसान को अपने अंदर घुटन, बेचैनी, चिड़चिड़ापन, अंधेरा और मायूसी महसूस होती है। उसे ऐसा लगता है जैसे उसकी जि़न्दगी बेमक़सद है और यह दुनिया एक बेकार जगह है, जिसका कोई मक़सद नहीं है। उसे हरेक आदमी बेकार, मक्कार और मतलब का यार लगता है। उसकी सोच बिखरी हुई रहती है। वह अपनी मजऱ्ी से किसी चीज़ को पाना मक़सद बना लेता है। वह उस चीज़ को नहीं पाता तो परेशान रहता है और जब पा लेता है तो वह चीज़ अपनी कशिश (आकर्षण) खो देती है। वह तब भी परेशान ही रहता है क्योंकि हक़ीक़त में वह अंदर से परेशान होता है।
अल्लाह की तस्बीह इंसान की पैदाइश का मक़सद है। जब वह तस्बीह करता है तो वह अपने मक़सद को पूरा करता है। जिससे उसके दिल को राहत और सुकून मिलता है। जब वह अंदर से पुरसकून होता है तो उसके ज़ाहिरी मामले भी आसानी से पूरे होते हैं और उनसे भी उसे ख़ुशी हाससिल होती है। उसे अपना नफ़्स फूल की तरह हल्का महसूस होता है। उसकी तवज्जो एक रब की तरफ़ लगी रहने से उसे यकसूई (एकाग्रता) हासिल होती है। उसे इन्शराहे क़ल्ब यानि दिलजमई नसीब होती है। उसे अपना मक़सद और उसे पाने का रास्ता बिल्कुल सीधा और साफ़ नज़र आता है। वह ख़ुद को बा-मक़सद पाता है और इस दुनिया को वह अपने अमल की बिल्कुल सही जगह पाता है। जहां वह अपने नफ़्स को अल्लाह की तस्बीह के ज़रिये पाक व मुतमईन बनाने का अमल लगातार करता रहता है। तस्बीह उसकी तरक्क़ी का ज़रिया बनती है। अपनी तरक्क़ी देखकर मोमिन ख़ुश होता है। यह ख़ुशी अल्लाह की तरफ़ से मोमिन को नक़द ईनाम होता है। ख़ुशी से ख़ुशहाली आती है और मोमिन तंगी, घुटन और ग़म व डर से बतदरीज (क्रमिक रूप से) नजात पा जाता है।
तस्बीह का दायमी तरीक़ा
इसका एक तरीक़ा तो आगाही यानि अवेयरनेस है।
दूसरा तरीक़ा जि़क्र है यानि सुब्हानल्लाह कहना।
किसी भी तरीक़े को पहले और बाद में या दोनों को एक साथ ही किया जा सकता है।
ईनाम देने वाले की तरफ़ इंसान के अंदर मुहब्बत का जज़्बा यानि नेचुरल अट्रैक्शन होता है।
अल्लाह की तरफ़ दायमी तवज्जो (अखण्ड ध्यान) बना रहे, इसका तरीक़ा नेचर पर, ज़मीन पर, आसमान पर और ख़ुद अपने नफ़स पर ध्यान देना है। जिनमें हर वक्त अल्लाह तसर्रूफ़ करता रहता है। नेचर अल्लाह की फि़तरत का परिचय है। हर चीज़ ख़ुदा का ईनाम है और हर तरफ़ बेशुमार ईनाम हैं। यह ईनाम की दुनिया है।
इंसान के लिए ज़मीन से गेहूं, चावल और सब्ज़ी की शक्ल में अनगिनत ईनाम निकल रहे हैं। इंसान के लिए पानी में मछली, मूंगा और मोती जैसे अनगिनत ईनाम पड़े हैं। आसमान से पानी और धूप-ताप के ईनाम बरस रहे हैं। हक़ीक़त यह है कि अल्लाह ने इंसान पर अपने ज़ाहिरी व बातिनी (दिखने वाले और न दिखने वाले) ईनाम पूरे कर दिए हैं।
देखें क़ुरआन, 31ः20
यह अल्लाह की रहमत है, जो सबके लिए आम है।
अल्लाह की रहमत और उसके ईनाम की तरफ़ बार बार ध्यान देने से इंसान के दिल में अल्लाह की तरफ़ तवज्जो यानि ध्यान बना रहता है और यह ध्यान बिना किसी कोशिश के भी क़ायम रहता है, चाहे वह कोई भी काम करे या वह किसी से भी बात करे।
हम अपनी माँ से, बीवी से या बच्चे से, जिससे भी मुहब्बत करते हैं। उसकी तरफ़ हमारे अंदर ध्यान बना रहता है। कभी हम उसकी एक सिफ़त (गुण) का ध्यान करते हैं और कभी दूसरे और अपने घर-बाहर के काम भी करते रहते हैं।
तस्बीह की तरफ़ तवज्जो देना यानि आगाही या अवेयरनेस
जब हम अल्लाह की तस्बीह के बारे में अवेयर होते हैं तो हमें हर तरफ़ उसकी तस्बीह होती हुई नज़र आती है।
अल्लाह कमी और कमज़ोरी से पाक है।
अल्लाह की इस कायनात में उसकी बनाई हर चीज़ अपने फ़ाइनल माॅडल पर है। सूरज है तो वह अपने फ़ाइनल माॅडल पर है। उससे अच्छे सूरज का तसव्वुर नहीं किया जा सकता। ज़मीन है तो वह अपने फ़ाइनल माॅडल पर है, इससे अच्छी ज़मीन का तसव्वुर नहीं किया जा सकता। हवा है तो वह अपने फ़ाइनल माॅडल पर है। इससे अच्छी हवा का तसव्वुर नहीं किया जा सकता है। ऐसे ही इंसान का बदन ऐसा है कि इसमें जो चीज़ है, बेहतरीन है।
जब हम किसी भी चीज़ पर नज़र डालते हैं तो वह अपने बनाने वाले के इल्म और क़ुदरत का पता देती है और वहां हमें अल्लाह की तस्बीह नज़र आती है।
हवा के साथ आॅक्सीजन हमारे अन्दर जाती है। फेफड़ों के ज़रिये वह ख़ून में मौजूद हीमोग्लोबीन तक पहुंचती है। हीमोग्लोबीन आॅक्सीजन को लेकर दिल से होता हुआ पूरे बदन की रगों में दौड़ता है। हरेक सेल तक वह आॅक्सीजन को पहुंचाता है। सेल आॅक्सीजन को लेकर अपने अंदर की ज़हरीली गैस और टाॅक्सिन्स को रिलीज़ करती है। वह सब कचरा लेकर ख़ून दिल से होता हुआ फेफड़ों तक आता है और वहां वह उस बेकार ज़हरीले कचरे को छोड़ देता है। जब हम साँस बाहर छोड़ते हैं तो गंदगी बाहर निकल जाती है और हमारा बदन पाक हो जाता है।
यह है अल्लाह का बदन पाक करने का सिस्टम।
ऐसे ही आप अपने खाने और पचाने के सिस्टम को देखिए। शहद, पानी और दूध व फल जो भी पाक चीज़ आप खाते हैं। उसे चबाने और निगलने के लिए जो चीज़ें होनी चाहिएं थीं, वे सब हमारे बदन में होती हैं। हरेक जानवर और परिन्दे के बदन में होती हैं। वे दांत चोंच और केमिकल्स हम सबको कोई कम्पनी सप्लाई नहीं करती। उसके बाद बहुत काॅम्पलिकेटिड अमल से गुज़र कर खाना हज़्म हो जाता है और काम न आने वाली चीज़ें आसानी से बदन से बाहर निकल जाती हैं।
यह गंदगी ज़मीन पर गिरती है। मिटटी में मिलकर पेड़ों की ख़ुराक बनती है और वह रंग-बिरंगे फूलों और फलों में बदल जाती है। बदन भी पाक और बदन से निकलने वाली गंदगी भी पाक हो जाती है।
इस तरह हम सबके बदन हर पल पाक होते रहते हैं। हमारी जि़न्दगी चलती रहती है। दरिया में या समन्दर में कोई मर जाता है तो वहां उसे मछलियां और मगरमच्छ खाकर पानी को पाक कर देते हैं।
सुबह का सूरज उगता है। उसकी किरणें पेड़ों की हरी पत्तियों पर पड़ती हैं। उनमें फ़ोटो सिन्थेसिस का अमल शुरू होता है। जिसके नतीजे में वे आॅक्सीजन छोड़ती हैं और कार्बन डाय आॅक्साइड ले लेती हैं। इस तरह पेड़ भी पाक हो जाते हैं और हवा भी। यह आॅक्सीजन फिर हमारे काम आ जाती है। जो हमें पाक करती है।
कायनात की हर चीज़ में पाकी का अमल चल रहा है। हर चीज़ अपनी बनावट से और अपने अमल से अल्लाह की पाकी का पता दे रही है। यह कायनात एक जि़न्दा कायनात है। इसे अपने रब की पाकी का शुऊर है। हर चीज़ उसकी पाकी (तस्बीह) बयान करती है लेकिन हम उनकी तस्बीह का शुऊर नहीं रखते।
जब हम शुऊर और आगाही (काॅन्शियसनेस और अवेयरनेस) के साथ जीते हैं और ज़्यादा से ज़्यादा और बार बार ऐसा करते हैं तो यह हमारी आदत बन जाती है।
तब हमारी ज़ुबान से बेइख्तियार निकलता है- ‘सुब्हानअल्लाह’
यह सुब्हानल्लाह ज़मीन से आसमान तक भर जाती है। सुब्हानल्लाह बहुत बड़ा अमल है। यह जिस दिल से निकलती है। वह भी बहुत बड़ा होता है।
जो लोग इस पाक बोल को बेशुऊरी के साथ भी बोलते हैं। उनके हाल बदलते हुए भी हमने देखे हैं, चाहे वह बदलाव कितना भी हो।
सच्चा वाक़या
बहुत साल पहले की बात है। एक बार ओमप्रकाश उर्फ़ महलू ने हमारे कहने से कलिमा पढ़ा और तभी ज़ुहर की अज़ान हो गई। हम उसे साथ लेकर मस्जिद गए। उसने सिर्फ़ नमाज़ की नक़ल भर की थी। उसे कोई दुआ या तस्बीह भी याद न थी। जब वह नमाज़ के बाद बाहर निकला तो हम यह देखकर हैरान रह गए कि मस्जिद में जाने से पहले उसके चेहरे पर जो परेशानी के निशान नज़र आ रहे थे, वे सब ग़ायब थे और उसके चेहरे पर सुकून नज़र आ रहा था।
यह असर था तस्बीह करने वाले नमाजि़यों के साथ महज़ उठने बैठने का।
इसलिए किसी की भी तस्बीह को हरगिज़ हरगिज़ हल्का या बेअसर न समझें।
...लेकिन मारिफ़त के साथ की गई तस्बीह की तासीर जुदा और कामिल होती है।
जब इंसान अक्सर वक्त नेचर में और अपने नफ़्स में अल्लाह की तस्बीह के अमल को जारी देखता है तो यही अवेयरनेस है।
अवेयरनेस यानि आगाही इंसान की रूहानी ताक़त है।
जिस चीज़ से इंसान ग़ाफि़ल होता है। वह उससे कट जाता है। वह जिस चीज़ के प्रति अवेयर होता है, वह चीज़ उसके दिल में नक्श हो जाती है।
अल्लाह की तस्बीह के प्रति सजगता, आगाही या अवेयरनेस से यह तस्बीह इंसान के दिल में नक्श हो जाती है और जो चीज़ उसके दिल में नक्श हो जाती है। वह उसका हाल बन जाती है।
ऐसे शख्स का दिल हरेक बुराई से पाक हो जाता है। वह किसी से न अपने नफ़्स के लिए मुहब्बत करता है और न नफ़रत करता है। न वह अपने लिए देता है और न वह अपने लिए रोकता है।
वह अल्लाह के लिए मुहब्बत करता है और अल्लाह के लिए बुग़्ज़ रखता है। वह जो देता है तो अल्लाह के लिए देता है और जो रोकता है तो अल्लाह के ही रोकता है।
ऐसे शख्स का ईमान पूरा हो जाता है, जैसा कि हदीस में कामिल ईमान वाले शख्स की पहचान बताई गई है।
ऐसे शख्स से ख़ैर के काम होते हैं और यह लोगों का मददगार होता है। यह अल्लाह की पाकी बयान करता है और जो लोग अल्लाह के बारे में बुरे गुमान रखते हैं या उसकी बुलन्द शान को नहीं जानते, यह उन्हें अल्लाह की पाकी के बारे में बताता है। वे भी तस्बीह करते हैं और उनकी जि़न्दगी से भी तंगी और घुटन रूख़सत हो जाती है।
ऐसे लोगों की सोहबत और तालीम से लोगों के दिलों से शक और शिर्क की बीमारी दूर हो जाती है। दिल के सेहतमंद होते ही इंसान के बदन से भी बीमारी दूर हो जाती है।
जिस आदमी की बीमारी किसी दवा से न जाती हो या उसकी बीमारी की वजह ही समझ में न आती हो, वह ऊपर बताए गए तरीक़े से तस्बीह के प्रति अवेयरनेस हासिल करे और ज़ुबान से सुब्हानल्लाह के अलावा ‘सुब्बुहुन-क़ुददूसुन’ का जि़क्र करे।
इससे उसके अंदर पाकी का अमल जो सुस्त पड़ा है, वह तेज़ हो जाएगा। जो बोल वह बोलेगा, उससे नूर यानि एनर्जी बनेगी, जो उसकी शिफ़ा के लिए काम करेगी और वह तन्दरूस्त हो जाएगा, इन्शाअल्लाह।
ग़रीबी, नशाख़ोरी, बुरी आदतें और घरेलू झगड़े भी एक दूसरी तरह की बीमारियां हैं। अल्लाह की तस्बीह से ये भी दूर हो जाती हैं।
जो भी आदमी जिस नीयत से अल्लाह की तस्बीह करेगा और उससे उम्मीद के साथ अपनी बेहतरी की दुआ करेगा। अल्लाह ग़ैब से उसके काम के लिए असबाब और रास्ते बना देगा। जिन्हें इस्तेमाल करके वह अपने मक़सद को पा लेगा, इन शा अल्लाह!
यह अल्लाह की ख़ास रहमत होती है, जो सिर्फ़ तस्बीह करने वालों के हिस्से में आती है।
अच्छे और नेक लोग उसके दोस्त बनते हैं। भलाई उसकी नेचर होती है। उसे लोग उसकी भलाई के लिए याद रखते हैं। वह अंदर से ख़ैर महज़ होता है। जो उसके अंदर होता है। वही उसके बाहर उसका हाल बनते हैं और वह ख़ैर होता है और ख़ैर ही देता है। जो वह देता है, वही उसकी तरफ़ बढ़कर पलटता है हमेशा। उसका बाद का दौर उसके पहले दौर से बेहतर होता चला जाता है।
तस्बीह नबियों का अमल है।
सारे फ़रिश्ते तस्बीह करते हैं।
ज़मीन व आसमान की हर चीज़ अल्लाह की तस्बीह करती है।
जब इंसान अल्लाह की तस्बीह करता है तो वह इस फैली हुई कायनात के एक एक ज़र्रे से हम-आहंग (एकलय) हो जाता है। यह ज़मीन उसे अपनी माँ की गोद और यह आसमान उसे माँ का आँचल महसूस होता है।
यह अहसास इंसान का बहुत क़ीमती सरमाया है। वह ख़ुद को महफ़ूज़ और मुहब्बत की जगह महसूस करता है तो यही अहसास उसकी जि़न्दगी के हालात में ढलकर उसकी हक़ीक़त (रिएल्टी) बन जाता है।
हर तरफ़ से उसे मुहब्बत मिलती है और उसे हिफ़ाज़त के असबाब बिला मशक्क़त मामूली तवज्जो से मिलते रहते हैं।
तस्बीह के फ़ायदे बेशुमार हैं। उन सबका बयान आज तक कोई इंसान नहीं कर पाया है। मुख्तसर यह है कि तस्बीह से इंसान में वुसअत (विशालता) आती है और उसका बातिन और ज़ाहिर पाक हो जाता है।
तस्बीह के असर की पहचान क्या है?
अल्लाह की तस्बीह की तासीर को आदमी बड़ी आसानी से पहचान लेता है। तस्बीह से पहले इंसान को अपने अंदर घुटन, बेचैनी, चिड़चिड़ापन, अंधेरा और मायूसी महसूस होती है। उसे ऐसा लगता है जैसे उसकी जि़न्दगी बेमक़सद है और यह दुनिया एक बेकार जगह है, जिसका कोई मक़सद नहीं है। उसे हरेक आदमी बेकार, मक्कार और मतलब का यार लगता है। उसकी सोच बिखरी हुई रहती है। वह अपनी मजऱ्ी से किसी चीज़ को पाना मक़सद बना लेता है। वह उस चीज़ को नहीं पाता तो परेशान रहता है और जब पा लेता है तो वह चीज़ अपनी कशिश (आकर्षण) खो देती है। वह तब भी परेशान ही रहता है क्योंकि हक़ीक़त में वह अंदर से परेशान होता है।
अल्लाह की तस्बीह इंसान की पैदाइश का मक़सद है। जब वह तस्बीह करता है तो वह अपने मक़सद को पूरा करता है। जिससे उसके दिल को राहत और सुकून मिलता है। जब वह अंदर से पुरसकून होता है तो उसके ज़ाहिरी मामले भी आसानी से पूरे होते हैं और उनसे भी उसे ख़ुशी हाससिल होती है। उसे अपना नफ़्स फूल की तरह हल्का महसूस होता है। उसकी तवज्जो एक रब की तरफ़ लगी रहने से उसे यकसूई (एकाग्रता) हासिल होती है। उसे इन्शराहे क़ल्ब यानि दिलजमई नसीब होती है। उसे अपना मक़सद और उसे पाने का रास्ता बिल्कुल सीधा और साफ़ नज़र आता है। वह ख़ुद को बा-मक़सद पाता है और इस दुनिया को वह अपने अमल की बिल्कुल सही जगह पाता है। जहां वह अपने नफ़्स को अल्लाह की तस्बीह के ज़रिये पाक व मुतमईन बनाने का अमल लगातार करता रहता है। तस्बीह उसकी तरक्क़ी का ज़रिया बनती है। अपनी तरक्क़ी देखकर मोमिन ख़ुश होता है। यह ख़ुशी अल्लाह की तरफ़ से मोमिन को नक़द ईनाम होता है। ख़ुशी से ख़ुशहाली आती है और मोमिन तंगी, घुटन और ग़म व डर से बतदरीज (क्रमिक रूप से) नजात पा जाता है।
तस्बीह का दायमी तरीक़ा
इसका एक तरीक़ा तो आगाही यानि अवेयरनेस है।
दूसरा तरीक़ा जि़क्र है यानि सुब्हानल्लाह कहना।
किसी भी तरीक़े को पहले और बाद में या दोनों को एक साथ ही किया जा सकता है।
ईनाम देने वाले की तरफ़ इंसान के अंदर मुहब्बत का जज़्बा यानि नेचुरल अट्रैक्शन होता है।
अल्लाह की तरफ़ दायमी तवज्जो (अखण्ड ध्यान) बना रहे, इसका तरीक़ा नेचर पर, ज़मीन पर, आसमान पर और ख़ुद अपने नफ़स पर ध्यान देना है। जिनमें हर वक्त अल्लाह तसर्रूफ़ करता रहता है। नेचर अल्लाह की फि़तरत का परिचय है। हर चीज़ ख़ुदा का ईनाम है और हर तरफ़ बेशुमार ईनाम हैं। यह ईनाम की दुनिया है।
इंसान के लिए ज़मीन से गेहूं, चावल और सब्ज़ी की शक्ल में अनगिनत ईनाम निकल रहे हैं। इंसान के लिए पानी में मछली, मूंगा और मोती जैसे अनगिनत ईनाम पड़े हैं। आसमान से पानी और धूप-ताप के ईनाम बरस रहे हैं। हक़ीक़त यह है कि अल्लाह ने इंसान पर अपने ज़ाहिरी व बातिनी (दिखने वाले और न दिखने वाले) ईनाम पूरे कर दिए हैं।
देखें क़ुरआन, 31ः20
यह अल्लाह की रहमत है, जो सबके लिए आम है।
अल्लाह की रहमत और उसके ईनाम की तरफ़ बार बार ध्यान देने से इंसान के दिल में अल्लाह की तरफ़ तवज्जो यानि ध्यान बना रहता है और यह ध्यान बिना किसी कोशिश के भी क़ायम रहता है, चाहे वह कोई भी काम करे या वह किसी से भी बात करे।
हम अपनी माँ से, बीवी से या बच्चे से, जिससे भी मुहब्बत करते हैं। उसकी तरफ़ हमारे अंदर ध्यान बना रहता है। कभी हम उसकी एक सिफ़त (गुण) का ध्यान करते हैं और कभी दूसरे और अपने घर-बाहर के काम भी करते रहते हैं।
तस्बीह की तरफ़ तवज्जो देना यानि आगाही या अवेयरनेस
जब हम अल्लाह की तस्बीह के बारे में अवेयर होते हैं तो हमें हर तरफ़ उसकी तस्बीह होती हुई नज़र आती है।
अल्लाह कमी और कमज़ोरी से पाक है।
अल्लाह की इस कायनात में उसकी बनाई हर चीज़ अपने फ़ाइनल माॅडल पर है। सूरज है तो वह अपने फ़ाइनल माॅडल पर है। उससे अच्छे सूरज का तसव्वुर नहीं किया जा सकता। ज़मीन है तो वह अपने फ़ाइनल माॅडल पर है, इससे अच्छी ज़मीन का तसव्वुर नहीं किया जा सकता। हवा है तो वह अपने फ़ाइनल माॅडल पर है। इससे अच्छी हवा का तसव्वुर नहीं किया जा सकता है। ऐसे ही इंसान का बदन ऐसा है कि इसमें जो चीज़ है, बेहतरीन है।
जब हम किसी भी चीज़ पर नज़र डालते हैं तो वह अपने बनाने वाले के इल्म और क़ुदरत का पता देती है और वहां हमें अल्लाह की तस्बीह नज़र आती है।
हवा के साथ आॅक्सीजन हमारे अन्दर जाती है। फेफड़ों के ज़रिये वह ख़ून में मौजूद हीमोग्लोबीन तक पहुंचती है। हीमोग्लोबीन आॅक्सीजन को लेकर दिल से होता हुआ पूरे बदन की रगों में दौड़ता है। हरेक सेल तक वह आॅक्सीजन को पहुंचाता है। सेल आॅक्सीजन को लेकर अपने अंदर की ज़हरीली गैस और टाॅक्सिन्स को रिलीज़ करती है। वह सब कचरा लेकर ख़ून दिल से होता हुआ फेफड़ों तक आता है और वहां वह उस बेकार ज़हरीले कचरे को छोड़ देता है। जब हम साँस बाहर छोड़ते हैं तो गंदगी बाहर निकल जाती है और हमारा बदन पाक हो जाता है।
यह है अल्लाह का बदन पाक करने का सिस्टम।
ऐसे ही आप अपने खाने और पचाने के सिस्टम को देखिए। शहद, पानी और दूध व फल जो भी पाक चीज़ आप खाते हैं। उसे चबाने और निगलने के लिए जो चीज़ें होनी चाहिएं थीं, वे सब हमारे बदन में होती हैं। हरेक जानवर और परिन्दे के बदन में होती हैं। वे दांत चोंच और केमिकल्स हम सबको कोई कम्पनी सप्लाई नहीं करती। उसके बाद बहुत काॅम्पलिकेटिड अमल से गुज़र कर खाना हज़्म हो जाता है और काम न आने वाली चीज़ें आसानी से बदन से बाहर निकल जाती हैं।
यह गंदगी ज़मीन पर गिरती है। मिटटी में मिलकर पेड़ों की ख़ुराक बनती है और वह रंग-बिरंगे फूलों और फलों में बदल जाती है। बदन भी पाक और बदन से निकलने वाली गंदगी भी पाक हो जाती है।
इस तरह हम सबके बदन हर पल पाक होते रहते हैं। हमारी जि़न्दगी चलती रहती है। दरिया में या समन्दर में कोई मर जाता है तो वहां उसे मछलियां और मगरमच्छ खाकर पानी को पाक कर देते हैं।
सुबह का सूरज उगता है। उसकी किरणें पेड़ों की हरी पत्तियों पर पड़ती हैं। उनमें फ़ोटो सिन्थेसिस का अमल शुरू होता है। जिसके नतीजे में वे आॅक्सीजन छोड़ती हैं और कार्बन डाय आॅक्साइड ले लेती हैं। इस तरह पेड़ भी पाक हो जाते हैं और हवा भी। यह आॅक्सीजन फिर हमारे काम आ जाती है। जो हमें पाक करती है।
कायनात की हर चीज़ में पाकी का अमल चल रहा है। हर चीज़ अपनी बनावट से और अपने अमल से अल्लाह की पाकी का पता दे रही है। यह कायनात एक जि़न्दा कायनात है। इसे अपने रब की पाकी का शुऊर है। हर चीज़ उसकी पाकी (तस्बीह) बयान करती है लेकिन हम उनकी तस्बीह का शुऊर नहीं रखते।
जब हम शुऊर और आगाही (काॅन्शियसनेस और अवेयरनेस) के साथ जीते हैं और ज़्यादा से ज़्यादा और बार बार ऐसा करते हैं तो यह हमारी आदत बन जाती है।
तब हमारी ज़ुबान से बेइख्तियार निकलता है- ‘सुब्हानअल्लाह’
यह सुब्हानल्लाह ज़मीन से आसमान तक भर जाती है। सुब्हानल्लाह बहुत बड़ा अमल है। यह जिस दिल से निकलती है। वह भी बहुत बड़ा होता है।
जो लोग इस पाक बोल को बेशुऊरी के साथ भी बोलते हैं। उनके हाल बदलते हुए भी हमने देखे हैं, चाहे वह बदलाव कितना भी हो।
सच्चा वाक़या
बहुत साल पहले की बात है। एक बार ओमप्रकाश उर्फ़ महलू ने हमारे कहने से कलिमा पढ़ा और तभी ज़ुहर की अज़ान हो गई। हम उसे साथ लेकर मस्जिद गए। उसने सिर्फ़ नमाज़ की नक़ल भर की थी। उसे कोई दुआ या तस्बीह भी याद न थी। जब वह नमाज़ के बाद बाहर निकला तो हम यह देखकर हैरान रह गए कि मस्जिद में जाने से पहले उसके चेहरे पर जो परेशानी के निशान नज़र आ रहे थे, वे सब ग़ायब थे और उसके चेहरे पर सुकून नज़र आ रहा था।
यह असर था तस्बीह करने वाले नमाजि़यों के साथ महज़ उठने बैठने का।
इसलिए किसी की भी तस्बीह को हरगिज़ हरगिज़ हल्का या बेअसर न समझें।
...लेकिन मारिफ़त के साथ की गई तस्बीह की तासीर जुदा और कामिल होती है।
जब इंसान अक्सर वक्त नेचर में और अपने नफ़्स में अल्लाह की तस्बीह के अमल को जारी देखता है तो यही अवेयरनेस है।
अवेयरनेस यानि आगाही इंसान की रूहानी ताक़त है।
जिस चीज़ से इंसान ग़ाफि़ल होता है। वह उससे कट जाता है। वह जिस चीज़ के प्रति अवेयर होता है, वह चीज़ उसके दिल में नक्श हो जाती है।
अल्लाह की तस्बीह के प्रति सजगता, आगाही या अवेयरनेस से यह तस्बीह इंसान के दिल में नक्श हो जाती है और जो चीज़ उसके दिल में नक्श हो जाती है। वह उसका हाल बन जाती है।
ऐसे शख्स का दिल हरेक बुराई से पाक हो जाता है। वह किसी से न अपने नफ़्स के लिए मुहब्बत करता है और न नफ़रत करता है। न वह अपने लिए देता है और न वह अपने लिए रोकता है।
वह अल्लाह के लिए मुहब्बत करता है और अल्लाह के लिए बुग़्ज़ रखता है। वह जो देता है तो अल्लाह के लिए देता है और जो रोकता है तो अल्लाह के ही रोकता है।
ऐसे शख्स का ईमान पूरा हो जाता है, जैसा कि हदीस में कामिल ईमान वाले शख्स की पहचान बताई गई है।
ऐसे शख्स से ख़ैर के काम होते हैं और यह लोगों का मददगार होता है। यह अल्लाह की पाकी बयान करता है और जो लोग अल्लाह के बारे में बुरे गुमान रखते हैं या उसकी बुलन्द शान को नहीं जानते, यह उन्हें अल्लाह की पाकी के बारे में बताता है। वे भी तस्बीह करते हैं और उनकी जि़न्दगी से भी तंगी और घुटन रूख़सत हो जाती है।
ऐसे लोगों की सोहबत और तालीम से लोगों के दिलों से शक और शिर्क की बीमारी दूर हो जाती है। दिल के सेहतमंद होते ही इंसान के बदन से भी बीमारी दूर हो जाती है।
जिस आदमी की बीमारी किसी दवा से न जाती हो या उसकी बीमारी की वजह ही समझ में न आती हो, वह ऊपर बताए गए तरीक़े से तस्बीह के प्रति अवेयरनेस हासिल करे और ज़ुबान से सुब्हानल्लाह के अलावा ‘सुब्बुहुन-क़ुददूसुन’ का जि़क्र करे।
इससे उसके अंदर पाकी का अमल जो सुस्त पड़ा है, वह तेज़ हो जाएगा। जो बोल वह बोलेगा, उससे नूर यानि एनर्जी बनेगी, जो उसकी शिफ़ा के लिए काम करेगी और वह तन्दरूस्त हो जाएगा, इन्शाअल्लाह।
ग़रीबी, नशाख़ोरी, बुरी आदतें और घरेलू झगड़े भी एक दूसरी तरह की बीमारियां हैं। अल्लाह की तस्बीह से ये भी दूर हो जाती हैं।
जो भी आदमी जिस नीयत से अल्लाह की तस्बीह करेगा और उससे उम्मीद के साथ अपनी बेहतरी की दुआ करेगा। अल्लाह ग़ैब से उसके काम के लिए असबाब और रास्ते बना देगा। जिन्हें इस्तेमाल करके वह अपने मक़सद को पा लेगा, इन शा अल्लाह!
यह अल्लाह की ख़ास रहमत होती है, जो सिर्फ़ तस्बीह करने वालों के हिस्से में आती है।
अच्छे और नेक लोग उसके दोस्त बनते हैं। भलाई उसकी नेचर होती है। उसे लोग उसकी भलाई के लिए याद रखते हैं। वह अंदर से ख़ैर महज़ होता है। जो उसके अंदर होता है। वही उसके बाहर उसका हाल बनते हैं और वह ख़ैर होता है और ख़ैर ही देता है। जो वह देता है, वही उसकी तरफ़ बढ़कर पलटता है हमेशा। उसका बाद का दौर उसके पहले दौर से बेहतर होता चला जाता है।
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