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Thursday, March 17, 2016

Allahpathy अल्लाह का शुक्र कीजिए अपनी तकलीफ़ें दूर करने के लिए

एक सच्चा कि़स्सा, प्रेरक घटना
जैस्मीन ने अपनी सहेली की सलाह पर हमसे काॅन्टेक्ट किया। 

उसने हमें बताया कि वह बहुत दुखी है। उसने हमें अपने शौहर के बर्ताव और उसकी आदतों के बारे में बताया, जिनसे वह दुखी थी। हमने कहा कि हम आपको गाइडेन्स देंगे और आप इस अज़ाब से निकल आएंगी, इन्-शा अल्लाह!
परसों रात यानि 2 फ़रवरी 2016 की रात को 1ः20 पीएम पर, जैस्मीन ने व्हाट्स एप पर मैसेज करके कहा कि देखिए मौलाना साहब! यह वक़्त हो रहा है और वह अभी तक घर नहीं आए। रोज़ ही घर लेट आते हैं। मैं आपको यह बात बताना भूल गई थी कि उनकी सबसे बड़ी आदत यह है।’
कल जैस्मीन ने काॅल करके माफ़ी चाही कि साॅरी मौलाना साहब, मैंने आपको इतनी रात में मैसेज करके परेशान किया, लेकिन मैं आपको बताना चाहती थी कि मेरी सबसे बड़ी प्राॅब्लम यह है कि वह देर रात को घर लौटते हैं।
मैंने कहा कि जैस्मीन, यह तुम्हारी सबसे बड़ी प्राॅब्लम तो क्या, यह तुम्हारी सबसे छोटी प्राॅब्लम भी नहीं है लेकिन तुम अपने इसे अपने एटीटयूड की वजह से प्राॅब्लम समझ रही हो। हक़ीक़त यह है कि प्राॅब्लम तुम्हारे दिमाग़ में है।
जैस्मीन बोली-‘मैं समझी नहीं।’ 
मैंने कहा कि इसी मुल्क में ऐसी औरतें हैं, जिनके शौहर फ़ौजी हैं और वे मुल्क की सरहदों पर ड्यूटी दे रहे हैं। वे छः महीने में घर आते हैं। अगर उनके शौहर रोज़ घर आने लगें लेकिन रात को डेढ़ दो बजे घर लौटें तो वे इस पर ख़ुश होंगी कि डेढ़ दो बजे की कोई बात नहीं, अपना शौहर रोज़ रात को घर तो आ जाता है।
यह सुनकर जैस्मीन बेइखि़्तयार क़हक़हा लगाकर हंस पड़ी और फिर काफ़ी देर तक हंसती ही रही।
जैस्मीन बोली कि मेरी सहेली ने आपके बारे में सही कहा था कि आपसे अपनी परेशानी बताने के बाद वह परेशानी ही नहीं लगती।
मैंने फिर उसे एक मिसाल और दी। मैंने कहा कि जिन औरतों के शौहर सऊदी अरब हैं। वे साल में एक बार घर आते हैं। उनकी बीवियां इस बात पर बहुत ख़ुश होंगी, अगर उनके शौहर का काम यहीं लग जाए और वे रोज़ रात को घर आ जाया करें। वे कहेंगी कि अगर उनके शौहर तीन बजे भी आया करें तो यह उनके लिए ख़ुशी की बात होगी।
जो बात उनके लिए ख़ुशी की होगी, वही बात तुम्हें दुख दे रही है। एक ही बात एक को ख़ुशी और दूसरे को ग़म क्यों दे रही है?, 
सिर्फ़ इसलिए कि उस बात को लेकर दोनों का नज़रिया और एटीट्यूड अलग अलग है।
सो अपने मियां को वक़्त का पाबन्द करने का ख़याल छोड़ दो और और उसकी शिकायत भी छोड़ दो। उसकी इस बात पर अल्लाह का शुक्र अदा करो कि तुम्हारा शौहर रोज़ रात को अपने घर आ जाता है।
जैस्मीन हंसे ही जा रही थी। मुझे भी हंसी आने लगी और हंसते हंसते ही जैस्मीन ने काॅल ख़त्म करने की इजाज़त चाही। उसने सलाम किया और बात पूरी हुई।
यह है अल्लाहपैथी का करिश्मा। अल्लाहपैथी कहती है कि हर बात को आप दो पहलुओं से देख सकते हैं।
1. शिकायत का पहलू
2. शुक्र का पहलू
जब आप किसी बात को शिकायत के पहलू से देखते हैं तो आप अज़ाब (कष्ट) महसूस करते हैं।
और जब आप उसी बात को शुक्र के पहलू से देखते हैं तो आप को ख़ुशी महसूस होती है। ख़ुशी की हालत में अज़ाब महसूस नहीं हो सकता क्योंकि जो दो चीज़ें एक दूसरे के खि़लाफ़ हों, वे एक वक़्त में एक ही जगह जमा नहीं हो सकतीं। जैसे कि रात के वक़्त दिन मौजूद नहीं हो सकता।
अब आपका काम यह चुनाव करना है कि आप बात को किस पहलू से देखते हैं?
इसके बाद अंजाम पहले से तय है।
अगर आप अज़ाब से नजात, कष्ट से मुक्ति चाहते हैं तो हर बात को शुक्र के पहले से देखने की ‘आदत’ डेवलप कीजिए। अज़ाब दूर हो जाएगा।
अल्लाह ने क़ुरआन में अपने इसी क़ानून की तालीम दी है-
अल्लाह तुम्हें अज़ाब क्यों देगा अगर तुम उसका शुक्र करते हो और उस पर ईमान रखते हो, अल्लाह शाकिर और अलीम है।

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