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Allahpathy:THE BLESSING MONEY BAG THAT WOULD HELP EVERYONE TO BE RICH IN THE MONTH OF RAMADAN

By Hazrat Hakeem Mohammad Tariq Mahmood Chughtai Dear Readers! I Bring to you precious pearls and do not hide anything, you shou...

Friday, April 8, 2022

इस्मे आज़म की पहचान और उससे काम लेने का आसान तरीक़ा DR. ANWER JAMAL

 कह दीजिए कि वह अल्लाह अहद (एक) है।

अल्लाह अस्समद है। (यानी आत्मनिर्भर, दूसरों पर निर्भर होने से बेनियाज़ है और self sufficient है।)

न उसने किसी को (मनुष्यों की तरह) जन्म दिया और न ही उसे किसी ने जन्म दिया।

और न ही कोई उसके कुफ़ू (बराबरी) का है।

#Quran #surahikhlas

हम सूरह इख़्लास की पहली आयत के बारे में आपको बता चुके हैं।

दूसरी, तीसरी और चौथी आयत भी बिल्कुल क्लियर है। 

अल्लाह अस्समद है यानी हर चीज़ और हर इंसान अपनी ज़रूरत की पूर्ति के लिए अल्लाह पर निर्भर है लेकिन वह किसी पर निर्भर नहीं है। अपनी मुराद की पूर्ति के लिए लोग उसकी तरफ़ तवज्जो करते हैं।

कोई भी उसकी हस्ती में से नहीं निकला कि उसका अंश या वंश हो और न ही वह ख़ुद किसी में से निकला कि वह किसी का वंश या बेटा हो।

कोई भी अल्लाह के कुफ़ू का नहीं है यानी कोई भी उसके जोड़ और बराबरी का नहीं है। मैंने अपने बच्चों को बताया कि जैसे शैख़ अदब अली अपनी बेटी बाला ख़ातून का निकाह उस्मान से करते हैं तो वह उन्हें एक दूसरे के जोड़ और बराबरी का देखकर ही उनका निकाह करते हैं। एक इंसान के 'कुफ़' यानी बराबरी के कई इंसान होते हैं लेकिन कोई भी अल्लाह के कुफ़ू का नहीं है।

हैरत की बात यह है कि सूरह इख़्लास की चारों आयतें 'अल्लाह' के वुजूद का परिचय देती हैं और इसी के साथ ये चारों आयतें #अल्लाह नाम के बारे में भी पूरी उतरती हैं।

1. अल्लाह नाम अहद है यानि यह नाम एक होकर एक है। अल्लाह नाम दो शब्दों से मिलकर नहीं बना।

2. अल्लाह नाम अपना अर्थ देने में दूसरे किसी शब्द पर निर्भर नहीं है। यह नाम अपना अर्थ देने के लिए अपने आप में काफ़ी है।

3. न अल्लाह नाम किसी शब्द या धातु से निकला है और न अल्लाह नाम से किसी शब्द ने जन्म लिया है।

4. कोई भी दूसरा नाम अल्लाह नाम के कुफ़ू (बराबरी) का नहीं है। अपनी तरह का यह अकेला नाम है।

इस नाम की हैरत में डालने वाली ख़ासियत यह है कि अगर इस नाम से एक एक हरफ़ हटाते रहें, तब भी यह नाम अपने अंदर अल्लाह की हस्ती की तरफ़ ठीक ठीक इशारा और अर्थ देता रहता है।

जैसे कि अल्लाह नाम में से अलिफ़ हटा दें तो लिल्लाह للہ रहता है। जिसका अर्थ 'अल्लाह का' है।

अब इसमें से एक और हरफ़ लाम हटा दें तो 'लहु' शब्द बचता है। जिसका अर्थ है 'उसी का'।

अब इसमें से फिर एक हरफ़ लाम हटा दें तो 'हु' बचता है और 'हु' का अर्थ है 'वह'।

इन चारों शब्दों से क़ुरआन मजीद में आयतें शुरू होती हैं और वहाँ ये चारों शब्द अल्लाह के वुजूद की तरफ़ इशारा देते हैं जैसे कि

1.अल्लाहु ला इलाहा इल्ला हुवल हय्युल क़य्यूम।

اَللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ١ۚ اَلْحَیُّ الْقَیُّوْمُ

-क़ुरआन मजीद 2:255

2.लिल्लाहि माफ़िस्समावाति वमा फ़िल् अर्ज़।

لله ما في السماوات وما في الأرض

-क़ुरआन मजीद 2:284

3.लहु माफ़िस्समावाति वमा फ़िल् अर्ज़ि वमा बैइनाहुमा वमा तहतस्सरा।

لَهٗ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَ مَا فِی الْاَرْضِ وَ مَا بَیْنَهُمَا وَ مَا تَحْتَ الثَّرٰى(۶)

-क़ुरआन मजीद, सूरह ताहा 6

4. हुवल्लाहुल् लज़ी ला इलाहा इल्ला हू।

ھُوَ اللّٰہُ الَّذِیْ لَآاِلٰہَ اِلَّا ھُوَ

-क़ुरआन मजीद, सूरह हश्र 22

अरबी के हरफ़ 'हा' (H) की वजह से अल्लाह नाम अपने आख़री हरफ़ तक रब के वुजूद की तरफ़ इशारा देता है। इसीलिए अल्लाह के नामों की तासीर पर रिसर्च करने वाले बहुत से ज़िक्र करने वालों ने 'हू' को इस्मे आज़म #IsmeAzam लिखा है।

इस्मे आज़म अल्लाह का वह सबसे बड़ा नाम है जो अधिकतर आलिमों से पोशीदा है और उस नाम की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि उसके साथ जो भी दुआ माँगी जाती हे, वह क़ुबूल होती है, चाहे दुआ करने वाला कितना ही गुनाहगार हो।

अब यह इस्मे आज़म है या नहीं?

यह बात आप ख़ुद इसके साथ दुआ करके देख सकते हैं।

#इख़्लास और #यक़ीन के साथ इस बरकत वाले नाम के साथ दुआ करें और इस नाम की तासीर देखें।


*पार्ट 2*

#इस्मे_आज़म सीरीज़ का मक़सद यह है कि आपको दुआ की क़ुबूलियत में #आत्मनिर्भर बना दिया जाए। जब आपको कोई काम करना हो तो आपको किसी ज़िन्दा बुज़ुर्ग के पास या किसी वली की क़ब्र पर दुआ के लिए जाने की ज़रूरत न रहे। जो काम रूहानी ताक़त वाले बुज़ुर्गों ने किया है, वह आप कर लें। जैसे वे अपने काम करते थे, उनके तरीक़े पर आप भी अपने काम कर लें।

सिलसिला ए #नक़्शबंदिया के एक बड़े #इमाम #सूफ़ी और पेशवा हुए हैं। उनका नाम है #बायज़ीद बुस्तामी (रहमतुल्लाहि अलैह)।

आज भी पूरी दुनिया में उनका नाम इज़्ज़त से लिया जाता है।

वह क्या करते थे?

वह रोज़ रात को

#SurahAlIkhlas #QulHuwalLaHuAhad 16,000 बार पढ़ते थे यानी लगभग पूरी रात वह एक ही सूरत पढ़ते थे।

एक दिन उनकी माँ ने उन्हें आराम देने की नीयत से और उन्हें लिटाने के लिए कहा कि बायज़ीद! ज़रा अपना बाज़ू तकिए की तरह मेरे सिर के नीचे रखो ताकि मुझे आज आराम की नींद आ जाए। उनका मक़सद यह था कि बायज़ीद लेट जाएगा और यह सो जाएगा।

बायज़ीद अपनी माँ का हुक्म मानने वाले बेटे थे। सभी वली ऐसे ही थे। मां बाप का हुक्म नज़रअंदाज़ करके कोई भी अल्लाह का वली नहीं बन सकता।

माँ के कहने पर बायज़ीद आ गए और अपनी माँ के सिर के नीचे हाथ रखकर लेट गए और जब माँ सो गई तो भी वह जागते रहे और उन्होंने उसी पोज़िशन में लेटे लेटे ही अपने हाथों की उंगलियों पर गिनते हुए 16,000 बार सूरह #इख़्लास पूरी पढ़ी। जोकि उनका रोज़ रात का नियम था। उन्होंने अपना नियम पूरा किया। जो भी आदमी अपने माँ-बाप की ख़िदमत करे, अपनी आदतें अच्छी करे और लगभग पूरी रात इबादत करे तो उसे अल्लाह का वली बनना ही है। उसकी दुआओं को पूरा होना ही है।

आप उनके नियम का 16वाँ टुकड़ा अदा कर लें।

आप बस एक हज़ार बार सूरह इख़्लास पढ़ें। यह क़ुरआन की 112वीं सूरह है और इसमें सिर्फ़ 4 आयतें हैं। इसमें इस्मे आज़म है।

अब आपकी हर मुराद पूरी होगी।

बस एक ख़ास काम आपको करना है और वह काम यह है कि अगर आप ग़रीब हैं और मालदारी के लिए आप यह मुबारक सूरह पढ़ें तो पहले आप ग़रीबी को कुछ देर के लिए छोड़ दें। कम से कम उतनी देर के लिए, जितनी देर आप यह सूरह पढ़ें। ग़रीबी से निकलने का मतलब ग़रीबी के ख़याल से निकलना है और ऐसा तब होगा, जब आप अमीरी के ख़याल में घुस जाएं। 

ग़रीबी और अमीरी को लिबास की तरह बदला जा सकता है।

आप ख़याल करें कि आप मालदार हैं और अब अपने ख़याल में वे काम करें जो आप मालदार बनने के बाद करेंगे। आप ये काम ऐसे करें मानो आप सचमुच ऐसा कर रहे हैं। इससे आपको ख़ुशी मिलेगी। यह ख़ुशी का एहसास ही आपके #माइंड को #यक़ीन दिलाएगा कि यह सच है। जब आपके माइंड को यक़ीन आ जाता है कि यह सच है तो उससे माइंड में एक नक़्श, एक पैटर्न बन जाता है और फिर माइंड उसे आपकी ज़िन्दगी में साकार कर देता है। आपको जानना ज़रूरी है कि #परमेश्वर #अल्लाह ने आपको #आत्मनिर्भर बनाया है। हरेक बच्चे और हरेक बच्ची को आत्मनिर्भर बनाया है। हरगिज़ यह न करें कि गर्भ में या गोद में बेटी देखें और उसे मार दें या उसका सही इलाज न कराएं कि यह मर जाए और न बेटों को मारें कि हम ग़रीब रह जाएंगे।

दुबई ग़रीब था। दुबई के शैख़ ने अक़्ल से काम लिया। आज दुबई में सोने की कारें चलती हैं और एटीएम मशीन से सोने के बिस्किट निकलते हैं और वहाँ लोग कुत्ते की जगह शेर पालते हैं।

मक्का दुबई से भी ज़्यादा रिच है, जहाँ सबसे पहले सूरह इख़्लास पढ़ी गई। वहाँ भी बहुत ग़रीबी थी। वहाँ के लोग खिलाने के डर से अपनी लड़कियों को मिट्टी में ज़िंदा गाड़ देते थे। उनके पास खाने के लिए काफ़ी फ़ूड नहीं होता था। यह ग़रीबी हक़ीक़त में विश्वास की ख़राबी और रब की दी हुई योग्यताओं से काम न लेने और छोटी छोटी बात पर बड़ी बड़ी लड़ाईयां लड़ने का अंजाम थी। सूरह इख़्लास ने इनका इलाज किया।

आप रात को बिल्कुल आख़िर में पाक साफ़ होकर अपने धनी #ग़नी होने का #तसव्वुर (#इमेजिनेशन) करते हुए सूरह इख़्लास पढ़ें। इससे आपमें एनर्जी लेवल बढ़ेगा। इमेजिनेशन करने और उसके साथ गिनती का ध्यान रखने से आपके ब्रेन के दोनों हिस्से काम करते हैं। इस ख़ास तरीक़े से आपका पूरा ब्रेन काम करता है क्योंकि आपका #leftbrain logical है और #rightbrain emotional है। इस ख़ास तरीक़े में आप इमोशन और लॉजिक (यानी काउंटिग) दोनों से एक साथ काम ले रहे हैं। 

इससे आपके नफ़्स में बदलाव आ रहा है और अल्लाह कहता है कि जब कोई अपने आप में बदलाव ले आता है तो अल्लाह उसे बदल देता है। देखें सूरह रअद आयत 11

إِنَّ اللَّهَ لا يُغَيِّرُ مَا بِقَوْمٍ حَتَّى يُغَيِّرُوا مَا بِأَنْفُسِهِمْ

[الرعد: 11]

यानी आपको अपने अंदर बदलाव लाने में भी आत्मनिर्भर बनाया गया है। आप चाहें तो अपने अंदर अभी बदलाव ला सकते हैं।

ऐसे ही एक बेरोज़गार ख़ुद को कल्पना में रोज़ी कमाते हुए और सैलरी लेते हुए देखे और सूरह इख़्लास पढ़े।

अगर एक कुंवारी लड़की निकाह जल्दी चाहती है तो अपने निकाह का मंज़र देखे कि वह निकाह के फॉर्म पर साइन कर रही है और साइन के नीचे डेट लिख रही है। वह जिस डेट को अपना निकाह चाहती है। वही डेट लिखे। यह सब अल्लाह से अच्छा गुमान करना है। अल्लाह के लिए आसान है कि वह इस गुमान को सच कर दे।

मुझे इंटरनेट पर सूफ़ियों के क़ादरी सिलसिले के एक वज़ीफ़े की एक इमेज नज़र आई। मैंने उसमें एडिट करके यह ख़ास तरीक़ा बढ़ा दिया है।

यह अमल करते ही आप बिना किसी से बात किए और बिना ध्यान बंटाए सो जाएं। इससे आपका #सब्कॉन्शियस_माइंड पूरी रात आपके तसव्वुर को हक़ीक़त में बदलने के लिए काम करेगा।

इन् शा अल्लाह!

हर आदमी की हरेक ज़रूरत को पूरा करने के लिए बस यही एक रूहानी अमल काफ़ी है क्योंकि यह इस्मे आज़म का अमल है। 

आप यह रूहानी अमल और #अल्लाहपैथी का यह ख़ास तरीक़ा अपने सब भाई बहनों को बता दें।

हरेक धर्म का और हरेक उम्र का छोटा बड़ा आदमी पाक साफ़ होकर यह अमल कर सकता है। नापाकी की हालत में यह अमल न करें। जो आयतें पढ़नी हैं, वे ये हैं:

क़ुल हुवल्लाहू अहद

अल्लाहुस् समद

लम यलिद वलम यूलद

वलम यकुन्-लहू कुफुवन अहद



सूरह इख़्लास का अर्थ यह है:

(हे ईश दूत!) कह दोः अल्लाह अहद (अकेला) है।

अल्लाह अस्समद (निरपेक्ष और सर्वाधार) है।

न उसकी कोई संतान है और न वह किसी की संतान है।

और न उसके बराबर कोई है।

अर्थ केवल समझने के लिए लिखा है। इसे वज़ीफ़े में नहीं पढ़ना है।

#atmanirbharta_coach #wellness_series #allahpathy #रूहानीअमल  #mission_mauj_ley #اعمال_قرآنی

*पार्ट 3*

#Allahpathy की #ismeAzam series में आगे...

आम तौर से एक बच्चा तक इस्मे आज़म वाली आयतें पढ़ता है जैसे कि जब वह आयतुलकर्सी और #सूरह_इख़्लास पढ़ता है लेकिन वह रिकग्नाइज़ नहीं कर पाता कि वह दुनिया का सबसे बड़ा ख़ज़ाना पा चुका है।

वह उससे ज़्यादा काम भी नहीं ले पाता क्योंकि इसके लिए #तसव्वुर की तख़्लीक़ी क़ूव्वत (कल्पना की सृजनात्मक शक्ति) की एक्सरसाईज़ ज़रूरी है।

#सूफ़ी और रूहानी आमिल जब भी कोई ज़िक्र या #रूहानीअमल करते हैं तो वे तसव्वुर ज़रूर करते हैं। इसीलिए उनके #ज़िक्र में और उनके अमल में तासीर होती है। जब एक आदमी अल्लाह के किसी भी मुबारक नाम के साथ अपनी मुराद का तसव्वुर (imagination) जोड़कर उससे अपनी हाजत पूरी करने की कुंजी पा लेता है, तब अगर वह तलाश करता है तो उसे #इस्मे_आज़म भी मिल जाता है।

यह रब की तरफ़ से एक सम्मान होता है। इससे उसकी रब के नामों की मारिफ़त में और ज़्यादा इज़ाफ़ा होता है और उसकी #रूहानी ताक़त में भी।

मैंने अपनी तालीम में #powerofimagination पर बहुत ज़ोर दिया है।

यही वह #masterkeysystem है, जिससे आप #isme_azam की तासीर ले सकते हैं वर्ना इस्मे आज़म की आयतें सब मुस्लिम पढ़ते हैं बल्कि #वैदिक सनातन धर्म वाले भी अपने धर्मग्रंथों में वह नाम पढ़ते हैं और #ईसाई और #यहूदी तक पढ़ते हैं 

... लेकिन यहूदी #तौरात की वजह से इस्मे आज़म को अच्छी तरह पहचानते हैं और वे उससे काम लेने के बहुत उम्दा तरीक़े जानते हैं। उनकी वैज्ञानिक तरक़्क़ी की ख़ास वजह उनका इल्मे इस्मे आज़म 'ही है/भी है।' जो मानना आसान लगे, आप मान लें।

इस तरह आप जान लेंगे कि मसला इस्मे आज़म मिलने का नहीं है बल्कि #हिदायत मिलने का है। हिदायत में उस तरीक़े की हिदायत भी आ गई है जिससे इस्मे आज़म से काम लिया जा सके।

#क़ुरआन में अल्लाह से अच्छा गुमान रखना ईमान की और #अल्लाह से बुरे गुमान रखना मुनाफ़िक़ों की निशानी बताई गई है और उनके बुरे गुमानों की वजह से उन्हें भयानक अज़ाब मिलना बताया है, जिससे आप रब की नज़र में गुमान यानी कल्पना की अहमियत का अंदाज़ा कर सकते हैं।

وَيُعَذِّبَ ٱلْمُنَٰفِقِينَ وَٱلْمُنَٰفِقَٰتِ وَٱلْمُشْرِكِينَ وَٱلْمُشْرِكَٰتِ ٱلظَّآنِّينَ بِٱللَّهِ ظَنَّ ٱلسَّوْءِ ۚ عَلَيْهِمْ دَآئِرَةُ ٱلسَّوْءِ ۖ وَغَضِبَ ٱللَّهُ عَلَيْهِمْ وَلَعَنَهُمْ وَأَعَدَّ لَهُمْ جَهَنَّمَ ۖ وَسَآءَتْ مَصِيرًا

अर्थात् और (वह) यातना दे #मुनाफ़िक़ पुरुषों तथा स्त्रियों को, जो बुरा विचार रखने वाले हैं अल्लाह के संबंध में। उन्हीं पर बुरी आपदा आ पड़ी तथा अल्लाह का प्रकोप हुआ उनपर और उसने धिक्कार दिया उन्हें तथा तैयार कर दिया उनके लिए नरक और वह बुरा जाने का स्थान है।

-सूरह फ़तह आयत 6

जब एक आदमी के मोबाईल की बैल बजती है और उसका दिल धड़कने लगता है कि कहीं से कोई बुरी ख़बर न आई हो तो उसमें यह मुनाफ़िक़ का गुण है और इस गुण की वजह से वह ज़िन्दगी में कष्ट पा रहा है, उसे पता नहीं है। अगर उससे कहो कि अल्लाह से हमेशा अच्छा गुमान रखो तो वह इस बात को हल्के में लेता है और नज़रअंदाज़ कर देता है।

जो कोई इस्मे आज़म की तासीर पाना चाहे, वह मेरी इस बात  को बहुत ज़्यादा अहमियत दे। यहाँ तक कि उसे हर तरफ़ से आदमी घेरकर कहें कि हम तुम्हारे हाथ पैर तोड़ देंगे तो अपनी कल्पना में उन्हीं के हाथ पैर टूटे हुए देखे और इस्मे आज़म वाली आयत या इस्मे आज़म की दुआ पढ़े। अगर इस कल्पना के साथ वह #SurahLahab भी पढ़ेगा तो उसकी तासीर ज़ाहिर होगी जबकि इस सूरह में इस्मे आज़म नहीं है।

मेरा गुमान है कि अब आप समझ गए होंगे कि '#हुवा' इस्मे आज़म है और इससे तासीर वही आदमी ले सकता है, जो अपने दिल में अपनी पसंद के ख़याल को देर तक टिका सके। जो अपने दिल को बुरे यक़ीन, बुरे गुमान और वसवसों से पाक करता रहे यानि दिल पर नज़र रखे और बुरे ख़याल को #लाहौल पढ़कर हटाता रहे।

ऐसे ही आदमी को #अल्लामा_इक़बाल ने ख़ुद आगाह कहा है। जो ख़ुदी को पहचानता है, वह इस्मे आज़म से अपने हक़ में काम ले सकता है।

अब आप यह इमेज देख लें जिसमें अल्लाह के नाम से और क़ुरआन से बरकत हासिल करने वाले #रूहानी बुज़ुर्गों ने तसव्वुर और गुमान की ताक़त के साथ #आयतुलकुर्सी पढ़ने का एक ख़स तरीक़ा यह बताया है: 

#atmanirbharta_coach #mission_mauj_ley

#welness_series #अल्लाहपैथी  #मिशनमौजले 

#अमलियात

Wednesday, March 16, 2022

क़ुरआन की बरकत से सिरदर्द दूर होने का सच्चा वाक़या

#allahpathy #aamale_qurani #tibbe_ruhani 

मंसूर भाई: Jamal sahab kalonji par kya padh kar dam karen bimari se shifa k liye?

#आत्मनिर्भरता_कोच: भाई, असल चीज़ शिफ़ा की नीयत है। जब एक आदमी शिफ़ा की नीयत से कलौंजी खाता है तो वह शिफ़ा की तरफ़ क़दम बढ़ाता है।

#क़ुरआन_मजीद में शहद और ताज़ा पानी में भी शिफ़ा का बयान आया है। हदीसों में #sanamakki #ajwadates और तलबीना में भी शिफ़ा बताई गई है।

आदमी ख़ुद से सिर्फ़ कलौंजी पर निर्भर न रहे बल्कि क़ाबिल हकीम से सलाह लेकर #herbs का इस्तेमाल करे जोकि सहाबा का तरीक़ा था।

इसके साथ सूरह फ़ातिहा पढ़े क्योंकि इसका एक नाम #शाफ़िया अर्थात #शिफ़ा/#आरोग्य देने वाली है।

आप इस सूरह के साथ क़ुरआन में से वे 37 आयतें भी जोड़ लें जिनमें

'ला इलाहा इल्ला हुवा

आया है। इन आयतों में #हुवा #इस्मे_आज़म है।

जैसे कि आयतुलकुर्सी में, जोकि सब आयतों की सरदार है और इसका मक़ाम बहुत बुलंद है क्योंकि इस एक आयत में ही 18 जगह अल्लाह का ज़िक्र है और इसमें अल्लाह के अल्-हय्यू और अल्-क़य्यूम नाम भी आएहैं। जो जिंदगी को क़ायम रखने में बहुत उम्दा हैं।

इनके साथ वे आयतें भी जोड़ लें जिनमें शिफ़ा और सलाम का ज़िक्र आया है।

इतना काफ़ी है।

अगर और ज़्यादा पावर चाहें तो इनके साथ वे आयतें भी पढ़ें, जिनमें रहस्यमय हुरूफ़े मुक़त्तिआत आए हैं जैसे कि '#काफ़हायाऐनसाद' '#हामीमऐनसीनक़ाफ़' आदि। क्योंकि इन हुरूफ़ का क़ुरआन की हिफ़ाज़त में बहुत दख़ल है। 

इस पूरे संकलन को #ruqyah कहेंगे।

यह एक #bestruqyah है।

#Alhamdulillah 

इन सबको 7 बार पढ़कर कलौंजी, शहद या पानी पर और दवा पर फूंक करके खाएं और ख़ुद पर भी सुबह शाम दम करें।

इन् शा अल्लाह इन आयतों से आपको अज़ीम #बरकत हासिल होगी। जिसे आप और सब देखेंगे।

इन्हें न सिर्फ़ शिफ़ा और सलामती के लिए बल्कि हरेक मक़सद और मुराद के लिए पढ़ा जा सकता है और इनसे जल्दी काम के असबाब बन जाते हैं।

सब मक़सद की नीयत एक साथ भी की जा सकती है।

#नीयत बहुत अहम है।

काम नीयत पर निर्भर है।

ये आयतें सभी बुज़ुर्गों के डेली रूटीन के #वज़ीफ़े में शामिल हैं।

#अल्लाहपैथी #اعمال_قرآنی #atmanirbharta_coach 

#shama_shabistane_raza #dua #quran 

#Wazifa

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Part 2

#Allahpathy

Mansoor Lko : Jamal sahab, hum gunahgaro ka Iman or Aqeeda itna pukhta nhi ki ek mamuli se kale Dane par yaqeen kar sake isliye aap k bataye tarike se hamne sirf 11-11 martaba surah fatiha or ayetalkursi padh kar #kalonji par dam karke apne Bhai ko dava k sath di to uske sar ka dard, jo pichhle 3 din se ho rha tha aur Kai tarha ki dava khane k baad bhi koi aaram nhi tha, #alhamdulillah sirf 15-20 minute me ghayab ho gaya.

#atmanirbharta_coach: मंसूर भाई, मैं आपकी क़द्रदानी की वजह से सचमुच आपसे ख़ुश हूँ। आपके सामने एक समस्या थी और अल्लाह क़ुरआन और हदीस में उसकी शिफ़ा के असबाब का इल्म दे चुका है और मैं उस इल्म को और अपने 37 साल के तजुर्बात को आम कर रहा हूँ तो आपने उस पर ध्यान दिया और उस इल्म को बरतकर अपने भाई का सिरदर्द दूर किया।

अल्हम्दुलिल्लाह!

इससे हमारे सभी पाठकों के ईमान में इज़ाफ़ा होगा। ख़ास तौर से भाई Khalid Hussain Advocate जैसे लोगों को भी आपके बयान से अपनी उस बेअसल आपत्ति का जवाब और सुबूत मिल चुका है, जो वह मुझे एक कमेंट में लिख चुके हैं कि #क़ुरआन पढ़ने से कुछ नहीं होता।

मैं कहता हूँ कि क़ुरआन पढ़ने से बीमारी दूर होती है और शिफ़ा मिलती है। आपका तजुर्बा इसका सुबूत है।

जैसा कि आपने ख़ुद को गुनाहगार कहा और यह भी लिखा कि आपका यक़ीन इतना पुख़्ता नहीं है कि कलौंजी के एक मामूली से दाने पर यक़ीन कर सकें कि इतना छोटा सा दाना हमारी बीमारी दूर कर सकता है।

आपकी बात बिल्कुल सही है। अपने गुनाहों को देखना और अपने ईमान को कमज़ोर या कच्चा पाना आम मुस्लिमों का एक आम लक्षण है।

जब भी आपको ऐसा लगे कि मेरी बीमारी में #कलौंजी या #talbinah क्या कर लेगा?

या मेरी बेरोज़गारी, गिरफ़्तारी, रिहाई, क़र्ज़, लड़ाई, दुश्मनी, मुक़द्दमे या निकाह और बच्चे की पैदाईश और उसके सुधार में या मेरे मसले में नबियों की बताई हुई यह चीज़ या उनकी बात क्या कर लेगी?

या मेरी दुआ ही क्या कर लेगी?

क्योंकि मैं गुनहगार हूं और मेरा ईमान कमज़ोर है तो आप 

#हस्बियल्लाहु_ला_इलाहा_इल्ला_हुवा_अलैहि_तवक्कल्तु_वहुवा_रब्बुल_अर्शिल_अज़ीम'

सुबह शाम 7-7 बार पढ़ें और इसे चलते फिरते हुए भी बहुत पढ़ें और अपने मक़सद की दुआ करें। इस आयत में #इस्मे_आज़म है और #अल्लाह का नाम है और इसमें उसके #अर्श (सिंहासन) का #ज़िक्र है, जहाँ से हुक्म जारी होता है और फिर वह हुक्म पूरे यूनिवर्स में फैलता है।

बुज़ुर्गों ने अपना तजुर्बा यह बताया है कि चाहे आदमी सच्चे दिल से इसे पढ़े या झूठे दिल से, उसकी परेशानी दूर हो जाएगी।

...और होनी भी चाहिए क्योंकि इस #आयत में #greatestname #IsmeAzam #Huwa #ismezaat #Allah और उसके सिफ़ाती नाम के साथ, #रब के साथ मौजूद है।

मुझे इस आयत का कॉन्बिनेशन बहुत पसंद है।

जब से मैंने इसे पढ़ना शुरू किया है, तब से मुझे लगातार राहत और ज़्यादा राहत है।

#अल्हम्दुलिल्लाह 

#अल्लाहपैथी #आत्मनिर्भरता_कोच #tibbe_ruhani #aamale_qurani #shama_shabistane_raza #अमलियात #عملیات

Sunday, March 6, 2022

Ruhani Amal for Gallstones

 पित्ताशय की पथरी के लिए इस्मे आज़म


Wednesday, February 9, 2022

बेडरूम में सफलता का उपदेश: ख़ुशी बढ़ाएं, ग़म मिटाएं और अपनी ज़िंदगी से ज़ालिम हटाएं सिर्फ़ 'देखकर'

 बेडरूम में सफलता का उपदेश

कल मैंने अपने बेडरूम में अपने बच्चों को जमा करके उनकी एक क्लास ली। मैंने उनसे कहा कि बेटा आप मुझसे उर्दू और दीन सीख लो। जो बात मैं आपको बता दूंगा, वह आपको कोई दूसरा न बताएगा क्योंकि मुझे भी किसी ने ये बातें इतने कम वक़्त में नहीं बताईं। ये बातें जानने में मेरे 40 साल लग गए हैं।
फिर अकमल ख़ान,अमन ख़ान, अब्दुल्लाह ख़ान और एक बेटी को मैंने बैठा लिया। दो छोटी बेटियां अना इस्मुल्लाह (5 साल) और हया (3 साल)  खेलती हुई घर में भागी फिर रही थीं। उनकी समझ में ये बातें न आतीं।
बड़ा बेटा अनस ख़ान घर से बाहर किसी काम से गए थे और सबसे बड़ी बेटी स्टडी रूम में स्टडी कर रही थीं।
मैंने कहा कि जहाँ हम मौजूद हैं। इसके चारों तरफ़ यूनिवर्स में दूर दूर तक प्लैनैट्स फैले हुए हैं। अगर आप अपनी कल्पना में एक झाड़ू से इन सबको समेट लें और मिटा दें तो आपको अपनी कल्पना में क्या दिखेगा?
अकमल ने कहा कि बस स्पेस दिखेगा।
मैंने कहा कि ठीक है। इसे सूफ़ी ख़ला बसीत (दूर तक फ़ैला हुआ अंतरिक्ष) कहते हैं। अब आप इस स्पेस को भी मिटा दें और अगर कुछ भी शक्ल नज़र आए तो उसे भी हटा दें। ऐसा ही करते रहें यहाँ तक कि कल्पना में कोई रूप रंग या स्पेस भी नज़र न आए।
अब आपको अपनी कल्पना में क्या नज़र आ रहा है?
अकमल ने कहा कि कुछ भी नहीं।
मैंने कहा कि आप अपनी कल्पना में अब उस वक़्त तक पहुंच गए हो, जब यह दुनिया नहीं थी, कुछ भी नहीं था। तब भी अल्लाह (परमेश्वर) था। और वह अपने होने को जानता था कि '#मैं_हूँ'
मैंने कहा कि अल्लाह का नाम सुनकर आपके मन में क्या शक्ल बनी?
मेरे 10 साल के बेटे अमन ख़ान ने कहा कि एक रौशनी नज़र आ रही है।
मैंने कहा कि यह तुम्हारी कल्पना है। अल्लाह इस रौशनी जैसा नहीं है। जो तुम अपनी कल्पना में इस वक़्त देख रहे हो। अपनी इस कल्पना को मिटा दो।
उसके बारे में जो भी कल्पना हो, वह बस एक कल्पना है।  हर कल्पना से ध्यान हटा लो और इतना काफ़ी समझो कि 'वह' है। उसका होना ही हक़ है। हक़ वह है जो कभी नहीं बदलता।
फिर उसने चाहा कि वह अपनी पहचान के लिए दुनिया बनाए तो यह यूनिवर्स बना। फिर उसने इस फैले हुए यूनिवर्स को समेट कर एक छोटा रूप बनाया तो आदम (अलैहिस्सलाम) बने। अल्लाह ने उनमें अपनी रूह में से फूंका। इससे आदम अपने होने के प्रति कॉन्शियस हो गए कि मैं हूं। हमारी सबसे बड़ी दौलत यही 'मैं हूँ' है क्योंकि यह हक़ है। आदम की औलाद में भी हरेक के पास यह दौलत है। एक बच्चे को जवानी में और फिर उस जवान को बुढ़ापे में पहचानना मुमकिन नहीं है क्योंकि बच्चे की जवानी में और फिर बुढ़ापे में खाल, बाल और वज़न सब कुछ बदल जाता है। एक बच्चे की बुढ़ापे तक लगभग हर सेल (कोशिका) बदल जाती है लेकिन उसके अंदर 'मैं_हूँ' नहीं बदलता। उसे अपने बचपन में #पतंग उड़ाना याद रहता है। उसे हर उम्र में किए हुए अपने काम याद रहते हैं। इंसान में 'मैं हूँ' (#अहम्) रब की ज़ात का एक रेफ़्लेक्शन है, उसके गुणों का नहीं। जैसे आसमान में सूरज होता है लेकिन वह तालाब में भी दिखता है और हक़ीक़त में तालाब में सूरज होता नहीं लेकिन तालाब में दिखने वाला रेफ़्लेक्शन आसमान के सूरज से जुड़ा होता है कि अगर आसमान में सूरज न हो तो तालाब में भी सूरज न दिखे। इसी तरह इंसान ख़ुदा से, क्रिएटर गॉड से जुड़ा हुआ है। इंसान चाहे तो वह ख़ुद को देखकर ख़ुदा को पहचान सकता है।
हमें ख़ुदा से जुड़ना नहीं है क्योंकि हम उससे कटे हुए नहीं हैं। यह मुमकिन ही नहीं है कि हम उससे कट जाएं।
हमें ख़ुदा को तलाश नहीं करना है क्योंकि वह खोया नहीं ‌है। यह मुमकिन नहीं है कि ख़ुदा खो जाए और न यह मुमकिन है कि ख़ुदा हमें खो दे। हम ख़ुदा से जुड़े हुए हैं। हमें ख़ुदा मिला हुआ है। चाहे हमें पता हो या पता न हो। फ़र्क सिर्फ़ हक़ीक़त जानने और न जानने का है। हम जानें या न जानें हक़ीक़त यही रहेगी। जब यहाँ कुछ न था, तब ख़ुदा था और अब भी ख़ुदा है, जब यहाँ सब है और जब यह सब मिट जाएगा। तब भी ख़ुदा बाक़ी रहेगा।
कभी आपने सोचा है कि ये सब चीज़ें कहाँ हैं?
यह पूरा यूनिवर्स ख़ुदा के इल्म में है। वह इन्हें देख रहा है तो ये सब चीज़ें वुजूद में हैं। जैसे मैं चाहूं कि एक पहाड़ हो, उस पर हरियाली हो और उन पेड़ों के बीच में बहुत से हिरन खेल रहे हों तो मेरी कल्पना में पहाड़, पेड़ और हिरन, सब तुरंत बन जाते हैं और जब तक मैं उन्हें देखता रहता हूँ, वे चीज़ें बाक़ी रहती हैं और जब मैं उनसे अपनी तवज्जो हटा लेता हूँ तो वे सब चीज़ें मिट जाती हैं। मेरे देखने से जो चीज़ें बनीं, वे मेरे देखने पर ही निर्भर हैं। ऐसे ही यह यूनिवर्स और इसकी हर चीज़ ख़ुदा के इल्म (ज्ञान) में है और यह उस अल्-मुसव्विर की कल्पना से बनी है। यह उस अश्-शहीद (गवाह, साक्षी) के देखने से ही क़ायम है। उसी के विचार से सबसे पहले एक नेब्युला बना और फिर उसमें गति हुई। उस गति से वाईब्रेशन/लहरें, लहरों से कण और कणों से परमाणु बने। परमाणु मिले तो अणु बने। अणु दूर थे तो गैस बनी। अणु क़रीब आए तो द्रव बना। अणु और ज़्यादा क़रीब आए तो ठोस पदार्थ बने। एक ही विचार तरंग से एनर्जी बनी और एक ही एनर्जी से गैस, द्रव और ठोस हर चीज़ बन गई।
ख़ुदा को कुछ बनाना होता है तो वह सिर्फ़ चाहता है कि ऐसा हो और फिर वैसा होने का सिलसिला शुरू हो जाता है और एक मुद्दत बाद अपने ठीक वक़्त पर वह चीज़ बन जाती है, जो वह बनाना चाहता है।
यह पूरी कायनात महज़ इल्मी चीज़ है। जिसे ख़ुदा जान रहा है तो इसका वुजूद है। हर चीज़ उसके इल्म के घेरे में है।
यानी अब भी हक़ीक़त में सिर्फ़ वही है। वही हक़ है।
#हुवा_अल्-हक़
हक़ की तजल्ली (रेफ़्लेक्शन/विभूति) तुम्हारे अंदर है। जो कभी नहीं बदलती। इसीलिए तुम कभी अपने 'न होने' की कल्पना नहीं कर सकते। यह चेतना मास्टर की (master key) है। जो कुछ तुम इस चेतना में रखते हो। वह हालात बनकर बाहर आता रहता है। तुम इसमें मुहब्बत रखते हो तो मुहब्बत बाहर छलकती है और तुम इसमें नफ़रत रखते हो नफ़रत बाहर छलकती है। तुम्हारी आदतन सोच से तुम्हारे अंदर #साँचे #moulds बनते हैं। यूनिवर्सल एनर्जी तुम्हारी सोच के साँचों में ढलकर हालात के रूप में तुम्हारे सामने आती रहती है। तुम्हारे अंदर #मुहब्बत, माफ़ी, #मदद, #शुक्र, सब्र और ख़ुशी की #आदतन_सोच होगी तो यूनिवर्सल एनर्जी उनमें ढलकर उन्हीं के मुताबिक़ हालात बनाएगी और तुम्हें अपने हालात में अपने अंदर की भावनाएं नज़र आएंगी। तुम्हारे अंदर #नफ़रत, ग़ुस्सा, लालच, शक, मायूसी, #डर और #ग़म होंगे तो वे सब तुम्हारे हालात में रेफ़्लेक्ट होंगे। यह तय‌ है। तुम अपने हालात अच्छे बनाना चाहते हो तो इसकी शुरुआत आप अपने अंदर के आदतन विचार और भावनाएं बदलने करें तो आपको #सफलता मिल जाएगी।
हमारी चेतना नए डायमेंशन में जा रही है। जैसे हम सोते हैं तो हमें सपना हक़ीक़त लगता है और जब हम जागते हैं तो सपना एक #कल्पना लगता है और यह दुनिया हमें हक़ीक़त लगती है क्योंकि यह हमें पाँच सेंसेज़ से फ़ील होती है। ...लेकिन सपने के मुक़ाबले यह दुनिया ज़्यादा स्थायी है और जब हम मर जाएंगे तो हम एक ऐसे डायमेंशन में जागेंगे, जो दुनिया के मुक़ाबले ज़्यादा बेहतर और ज़्यादा स्थायी    (ख़ैरुंव व अब्क़ा) होगा।
तब दुनिया की ज़िन्दगी एक सपना लगेगी और जो इस दुनिया में बेईमान और ज़ालिम बने थे, वे‌ पछताएंगे कि हाय, हम महज़ काल्पनिक चीज़ों पर ही रीझकर बेईमान हो गए और ज़ुल्म कर बैठे। ... लेकिन वे अपने कर्मों को भुगतेंगे क्योंकि उनके कर्मों से उनके विचार और उनकी भावनाएं उनके और सबके सामने आ गई होंगी और इस दुनिया का मक़सद यही है कि हरेक अपने आपको अपने कर्मों के आईने में पहचान ले। जैसे हरेक पेड़ अपने फलों से पहचाना जाता है। वैसे ही हरेक आदमी अपने कर्म से पहचाना जाता है‌।
तुम्हारे कर्म अच्छे हों, इसके लिए तुम्हें डर व ग़म से, ग़ुस्से व लालच से दिल पाक रखना होगा। तुम जल्दबाज़ी न करना और जब अच्छे काम करो तो कभी शक न करो कि इनसे कुछ भला होगा या नहीं? और न ही कभी मायूस होओ कि अब तक कुछ नतीजा नहीं मिला। कहीं ये सब काम बेकार तो नहीं जा रहे हैं।
हरगिज़ नहीं।
हर बीज अपने मौसम पर फूटता है और हर पेड़ अपने मौसम पर फल लाता है। जब धूल की परतें जमा होकर चट्टान बनती हैं तो उन चट्टानों में कुछ बीज दब जाते हैं। फिर चाहे लाख साल गुज़र जाएं तो भी वे बीज अपने वक़्त पर फूटकर बाहर निकलते हैं और उन पर फूल और फल आते हैं। मैं जब देहरादून, मसूरी, जम्मू और श्रीनगर के पहाड़ों पर गया तो मैंने पहाड़ी जंगल की ठोस चट्टानों के अंदर से पेड़ निकलते देखे।
जैसा बीज था वैसा ही पेड़ निकला। कंटीले पेड़ के बीज से कंटीला पेड़ निकला और फलदार पेड़ के बीज से फलदार पेड़ निकला।
तुम्हारे दिल के विश्वास वे‌ बीज हैं, जिनसे तुम्हारे कर्मों के पेड़ और फल निकलेंगे। तुम काँटे चाहते हो तो जो चाहे करो और तुम अच्छे फल (फ़लाह, कल्याण) चाहते हो तो तुम अपने दिल में अच्छे विश्वास जमाओ।
जिन बातों को तुम बार-बार सुनते और बोलते हो, वे नेचुरली तुम्हारे दिल के विश्वास #subconsciousbeliefs बन जाते हैं।
इसीलिए बार बार नमाज़ और नमाज़ में क़ुरआन और दुआएं पढ़ी जाती हैं ताकि तुम्हारे #अवचेतन_मन के विश्वास अच्छे हो जाएं। इसी को दीन में ईमान कहते हैं। #अल्लाह पर ईमान रखो और अपने #ईमान को अच्छा बनाओ। एक वक़्त पर हर चीज़ तुम्हारे पक्ष में आकर खड़ी हो जाएगी, इन् शा अल्लाह!
हरेक अपने ईमान में जीता है और उसी में वह मरता है।
जो ईमान रखता है कि मैं ग़रीब हूँ, मैं मज़लूम हूँ। फिर वह अमीर बनने और इंसाफ़ पाने कोशिश और दुआ करता है तो उसकी कोशिश और दुआ को उसका ईमान फ़ेल कर देता है और वह ग़रीबी में और पीड़ा में जीता है। उस पर ज़ालिम मुसल्लत रहते हैं। वह ग़रीबी में ज़ुल्म सहता हुआ ही मर जाता है। अगर उसकी मेहनत से उसके पास कुछ रूपया आ जाता है तो वह उसके पास नहीं रुकता। वह अपनी आत्मा के विश्वास के अनुसार ग़रीब ही रहता है। ग़रीबी के हालात मानसिक नज़रिए से आ रहे हैं। मानसिक नज़रिए को बदलकर ग़रीबी की जड़ काटी जा सकती है। ग़रीबी एक मानसिक रोग है।‌ ऐसे ही मज़लूम होने के एहसास #victimhood में जीना एक #मानसिक_रोग है और इससे वही हालात और ज़्यादा पैदा होते हैं। इससे ज़ालिम को क़ाबू मिलता है क्योंकि अपने मज़लूम होने का यक़ीन ज़िन्दगी में ज़ालिम को दावत देता है कि आ जाओ। मेरा #नज़रिया तुम्हारी डिमांड करता है। इस डिमांड को रोक दो। ज़ालिम की सप्लाई रुक जाएगी क्योंकि यह दुनिया डिमांड और सप्लाई के रूल पर चल रही है।
यह #क़ानूने_क़ुदरत है। अपनी ज़िंदगी में क़ुदरत के क़ानून की प्रैक्टिस करो।
नेमतों पर शुक्र करके ग़रीबी को और ज़ालिम की डिमाँड को रोका जाता है।
रब ने सूरह फ़ातिहा में शुक्र करना सिखाया है। सूरह फ़ातिहा नज़रिए को सही करती है।
इसीलिए सूरह फ़ातिहा में #शिफ़ा की शक्ति #healingpower है।
*पार्ट 2*

देखने की 2 तकनीकें
पिछली पोस्ट से आगे....
#ख़ुशहाली पाने और #ग़म दूर करने का तरीक़ा है ख़ास तरीक़े से देखना
पिछली पोस्ट लंबी थी, जिसमें मैंने आपको बताया है कि इंसान की #चेतना #ख़ुदी असल दौलत है और उसके हालात उसमें मौजूद विश्वासों और जज़्बातों का रेफ़्लेक्शन और साया हैं।
...और साये बदलते रहते हैं। आपको इन्हें बदलने की ताक़त देकर पैदा किया गया है। आपके हालात आपकी चेतना के अधीन हैं।
मैं आपको बता चुका हूँ कि क्रिएटर का एक नाम #अरबी में अश्-शहीद और #संस्कृत में #साक्षी है यानि देखने वाला गवाह। उसने देखने से ही यह दुनिया क्रिएट कर दी। आपके देखने से भी असर पड़ता है और आपके देखने से आप अपने हालात भी बदल सकते हैं।
देखने के 2 तरीक़े हैं:
1. किसी घटना को फ़र्स्ट पर्सन में ऐसे देखना मानो आप ख़ुद उसे भोग रहे हैं। (embodiment of your desire)

पूरी तरह #रिलैक्स्ड होकर पांचों सेंसेज़ से उसे रीयल फ़ील करना। यह तरीक़ा मैं लिख चुका हूँ। यह तब किया जाता है, जब किसी ग़रीब को अमीर, किसी बीमार को सेहतमंद और किसी बाँझ औरत को माँ बनना हो। जब किसी बदहाल को ख़ुशहाल बनना हो। 

2. किसी घटना को सेकंड पर्सन में ऐसे देखना मानो आप उस घटना से अलग हैं। (looking at yourself from a distance)

जब किसी ग़म को मिटाना हो तो इस तरीक़े से देखा जाता है।
मान लीजिए एक औरत को तलाक़ हो गया या किसी लड़की ने अपने माँ-बाप से छिपकर किसी लड़के से #फ़िल्मी स्टायल में टूटकर दिलोजान से #इश्क़ किया और यह #गुमान किया कि उसका #आशिक़ उसे बहुत चाहता है और वह उससे #शादी भी करेगा लेकिन वह लड़का अपना काम निकालकर किसी और लड़की की इज़्ज़त ठगने के मिशन पर निकल गया और अब इस तलाकशुदा या इस लुटी हुई  लड़की को ग़म खाए जा रहा है। किसी तरह इसका ग़म कम नहीं  हो रहा है। यह हर वक़्त ख़ुद को कोस रही है। हर वक़्त #shame #guilt #selfcriticism में पड़ी है। तब वह अपने आपको इस ख़ास तरीक़े से देखे मानो वह अपने आप से 3-4 मीटर दूर खड़ी है और अपने आपको देख रही है कि वह किस तरह सोग मना रही है। सिर्फ़ देखना है। कुछ और नहीं करना है। न कोई दुआ पढ़नी है। बस अपनी हालत को एक गवाह के रूप में देखना है। लगातार कुछ दिन इस तरह देखने से ग़म कम होता जाएगा और फिर ग़म पूरी तरह मिट जाएगा। लड़की नॉर्मल ज़िंदगी की तरफ और अपनी खुशियों की तरफ लौट आएगी।

#atmanirbharta_coach  
#शिफ़ा #bedroom_science #मानसिक_रोग #नज़रिया
#नॉर्मल_नागरिक_कांसेप्ट #अल्लाहपैथी #allahpathy 

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