Amal Se Zindagi Banti Hai Jannat Bhi, Jahanum Bhi Ye Khaki Apni Fitrat Mein Na Noori Hai Na Naari Hai Tarjuma By action life may become both paradise and hell, This creature of dust in its nature is neither of light nor of fire.
Friday, February 19, 2016
Saturday, February 6, 2016
जानिए, हिफ़ाज़त के लिए क्या ज़रूरी है? Al-Hafeez, Allahpathy
अल्लाह तआला ने कहा है कि
‘व-अम्मस्-साइला फ़-ला तन्हर’
यानि ‘और मांगने वाले को झिड़की न देना।’ (क़ुरआन 93,10)
हमने साइल को झिड़क दिया। नतीजा यह हुआ कि घर से बाहर निकले और हमारा एक्सीडेन्ट हो गया।
क़ुरआन की बात के खि़लाफ़ करने का अन्जाम कभी ख़ैर नहीं हो सकता।
‘मन अमिला सालिहन फ़लि नफ़्सिहि व-मन असाआ फ़-अलैइहा’
यानि जो नेकी करता है सो वह अपनी जान (की फ़लाह) के लिए करता है और जो बुराई करता है तो वह भी उसी पर पड़ती है। (क़ुरआन)
हमारी मोटर साइकिल का मडगार्ड और लाइट टूट गई। जिसकी मरम्मत में हमारे छः सौ नब्बे रूपये लग गए।
यह हमारी बुराई थी जो हमारे सामने आ गई।
इसी के साथ बात यह भी थी कि हमारी नीयत नेक थी। सो वह नेकी भी हमारे लिए ढाल बन गई और हमारे ख़राश तक न आई। मोटर सायकिल गिरने से पहले ही हम उससे न जाने कैसे ख़ुद ही उतर कर ज़मीन पर क़दम जमा कर खड़े हो गए। हमें ऐसा लगा जैसे किसी ने हिफ़ाज़त से पकड़ उतारा हो और फिर पूरे इत्मीनान से ज़मीन पर खड़ा कर दिया हो।
किसी सवारी पर बैठते वक़्त हम अल्लाह के नाम ‘या हफ़ीज़ु या सलाम’ हिफ़ाज़त की नीयत से काफ़ी पढ़ते हैं।
सो उस दिन भी पढ़े थे। यह भी एक नेकी थी।
हर फ़जऱ् नमाज़ के बाद हम आयतुल-कुर्सी भी पढ़ते हैं।
सुबह शाम और भी कुछ दुआएं हिफ़ाज़त, ग़लबे और बरकत के लिए हम पढ़ते हैं। अल्-हम्दुलिल्लाह!
हमारी नेकियां और बदी मिलकर एक अंजाम की सूरत इखि़्तयार कर गईं। जिसे हमने देख लिया और भुगत लिया।
इस भूमिका के बाद हम आपको कि़स्सा सुनाते हैं कि हक़ीक़त में हुआ क्या था?
आज से तक़रीबन एक साल पहले की बात है। हम आॅफि़स के लिए निकलने की तैयारी कर ही रहे थे कि एक पेशेवर फ़क़ीर दरवाज़े पर आ गया। वह एक टीन एजर था। उसने हरा कपड़ा सिर पर बांध रखा था। हमें बड़ा एहसास हुआ कि वह अभी नई उम्र में ही भीख मांगने के धंधे पर लग गया, जो कि इसलाम में हराम है।
इसी के साथ हमें यह शर्म भी महसूस हुई कि हिन्दू देखेंगे तो क्या सोचेंगे?
हम एक ऐसी काॅलोनी में रहते हैं, जिसमें 97 प्रतिशत हिन्दू भाई रहते हैं।
हम उन्हें कलिमा ए हक़ पहुंचाते हैं। उसका गश्त इसलाम की छवि को नुक़्सान पहुंचा रहा था। हम ठहरे दाई।
सो हमने उसे समझाया कि भाई तू भीख मांगने का धंधा मत कर। कहीं जाकर केले वग़ैरह का रेहड़ा लगा ले।
वह पूछने लगा कि केले कहां मिलते हैं?
बस हमें ग़ुस्सा ही तो आ गया। पूरे शहर में भीख मांगते हुए घूमता है और पूछता है कि केले कहां मिलते हैं?
हमने कहा कि तू कहां रहता है?
उसने कहा कि बाबा कालेशाह की खि़दमत में रहता हूं।
काला आम चैराहे पर एक बुज़ुर्ग की कच्ची पक्की सी क़ब्र हुआ करती थी। पास में कोर्ट और सरकारी आॅफि़स बहुत हैं। गांव से आने वाले देहाती ज़रूरतमन्द उनकी क़ब्र पर खड़े होकर दुआ कर लेते थे। वक़्त के साथ भीड़ बढ़ी तो जाति से फ़क़ीर बने हुए लोगों ने उसे चन्दे से सजा दिया और उसे पक्के मज़ार की शक्ल दे दी। वहां लाखों रूपये सालाना का चढ़ावा आने लगा। वह एक बिज़नेस प्वाइंट बन गया।
हम उधर से गुज़रते हैं तो हम शरई तरीक़े से सलाम करके ईसाले सवाब ज़रूर करते हैं और बस।
अब इस मज़ार पर हमारे देखते ही देखते साल में दो बार उर्स भी होने लगे और पब्लिक को भाने वाली क़व्वालियां भी होने लगीं। औरत-मर्द अदाकार और कलाकार भी आने लगे। चीफ़ गेस्ट प्रशासन के अधिकारी होते हैं। अनपढ़ फ़क़ीर इस दरगाह के सज्जादे हैं, वह उनकी बग़ल में बैठते हैं।
हमने पूछा कि तुझे नमाज़ की दुआएं याद हैं?
वह चुप रहा।
हमने कहा कि तुझे नमाज़ याद नहीं है तो तू बाबा कालेशाह की खि़दमत में क्यों रहने लगा, जबकि उन्होंने तुझसे कभी कहा नहीं कहा अपनी खि़दमत में रहने के लिए?
वह चुपचाप टुकुर टुकुर हमें देखने लगा।
हमारा ग़ुस्सा और ज़्यादा भड़क गया।
हम घर के अन्दर से एक डन्डा उठा लाए और आर्य समाजियों के से अन्दाज़ में उसे झिड़कते हुए धमकाया कि यहां से फ़ौरन भाग जा। फिर कभी यहां नज़र आया तो ठीक नहीं होगा।
वह नौजवान वहां से चला गया।
उसके जाते ही हमारे दिल में खटक हुई कि हमसे ज़रा सी चूक हो गई है। हमें उसे समझाना तो चाहिए था लेकिन झिड़कना नहीं चाहिए था।
बहरहाल हम तैयार होकर घर से बाइक पर निकले। रोड क्राॅस करके कोर्ट के गेट में दाखि़ल हुए। स्पीड 10 किमी. जैसी मामूली रही होगी। एक आदमी सामने आ गया। हाॅर्न ख़राब था। बचाने के चक्कर में बाइक पर से क़ाबू जाता रहा और वह फिसलते हुए आगे को घिसटी और सामने खड़ी एंगल राॅड में जा टकराई।
अल्लाह के यूनिवर्सल लाॅ पक्षपात नहीं करते। वे दाई-ग़ैरदाई और हिन्दू-मुस्लिम नहीं देखते।
जिसकी नीयत और आमाल का जोड़-घटा होकर जो कुल अंजाम बन रहा होता है। वह सूरते हाल उसे पेश आ जाती है।
इस तरह के वाक़यात हम सबकी जि़न्दगी में पेश आते हैं। जिनसे क़ुरआन का हक़ होना साबित होता रहता है और यह भी कि क़ुरआन ने हर उस बात से हमें आगाह कर दिया है, जिससे नुक़्सान हो सकता हो।
लिहाज़ा हम सबको अल्लाह की हिदायत ‘क़ुरआन’ के बताए तरीक़े पर पूरी होशमन्दी से चलना चाहिए। इसी में हमारी सलामती और फ़लाह है।
यह हमारा तजुर्बा है।
अल्-हम्दुलिल्लाह!